जैनधर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए जिन्होंने अनेक भव्य जीवों के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। जन-जन में भगवान महावीर का अमर संदेश प्रचलित है – जिओ और जीने दो। उन्होंने प्राणी मात्र पर दया का भाव रखने का उपदेश दिया। उनके ५ प्रमुख सिद्धान्त-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह प्रत्येक मानव के लिए जीवन में कल्याणकारी हैं। पूज्य अभयमती माताजी ने इस पुस्तक में भगवान महावीर के द्वारा प्रतिपादित अनेक सिद्धान्तों को विषयगत करके विवेचन किया है। सर्वप्रथम उनका संक्षेप में जीवनवृत्त प्रस्तुत किया है। किस प्रकार उनके पाँच नाम हुए। उन्होंने मोक्षमार्ग के नेता बनकर मुक्ति का मार्ग क्या है, यह प्रतिपादित किया। अहिंसा, शाकाहार के प्रवर्तक भगवान महावीर जन-जन के लिए आराध्य हैं। केवल जैनधर्म ही नहीं, प्रत्येक धर्म के अनुयायी भगवान महावीर को अहिंसा के अवतारी हैं, ऐसा मानते हैं। अपरिग्रहवाद का सिद्धान्त आज वर्तमान में बहुत दुर्लभता से पालन करने वाले मिलते हैं क्योंकि जैन साधु ही पूर्णरूप से इसका पालन करते हैं। चक्रवर्ती की संपत्ति भी एक दिन छोड़कर जाना पड़ता है, तब आज के अर्थ की तो बात ही क्या है। जैनधर्म को अनेकांतवादी माना है क्योंकि एक वस्तु में अनेक धर्म होते हैं। जो परस्पर विरोधी होकर भी एकवस्तु में अविरोध रूप से रहते हैं। स्याद्वाद, अनेकांत जैनधर्म का प्राण है। व्यवहारनय, निश्चयनय, निमित्त-उपादान, शुद्धोपयोग, क्या है, कब होता है, किस अवस्था में होता है आदि अनेक विषयों के माध्यम से पूज्य आर्यिका अभयमती माताजी ने भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट वाणी का प्रतिपादन किया है। इस पुस्तक के माध्यम से अनेक विषयों को पढ़कर ज्ञानवर्धन किया जा सकता है। ये पुस्तक अल्प समय वालों के लिए अतीव उपयोगी व ज्ञानार्जन का साधन है।