Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
भगवान महावीर स्वामी वन्दना
June 3, 2020
कविताएँ
jambudweep
श्री महावीर स्वामी वन्दना
दोहा
चिन्मूरति चिंतामणि, चिंतित फलदातार।
मैं वंदूं नित भक्ति से, सुखसंपति साकार।।१।।
(चाल-श्रीपति जिनवर करुणा……)
जय जय श्री सन्मति रत्नाकर! महावीर! वीर! अतिवीर! प्रभो!
जय जय गुणसागर वर्धमान! जय त्रिशलानंदन! धीर प्रभो!।।
जय नाथवंश अवतंस नाथ! जय काश्यपगोत्र शिखामणि हो।
जय जय सिद्धार्थतनुज फिर भी, तुम त्रिभुवन के चूड़ामणि हो।।२।।
जिस वन में ध्यान धरा तुमने, उस वन की शोभा अति न्यारी।
सब ऋतु के फूल खिलें सुन्दर, सब फूल रहीं क्यारी क्यारी।।
जहँ शीतल मंद पवन चलती, जल भरे सरोवर लहरायें।
सब जात विरोधी जन्तूगण, आपस में मिलकर हरषायें।।३।।
चहुँ ओर सुभिक्ष सुखद शांती, दुर्भिक्ष रोग का नाम नहीं।
सब ऋतु के फल फल रहे मधुर, सब जन मन हर्ष अपार सही।।
कंचन छवि देह दिपे सुंदर, दर्शन से तृप्ति नहीं होती।
सुरपति भी नेत्र हजार करे, निरखे पर तृप्ति नहीं होती।।४।।
श्री इन्द्रभूति आदिक ग्यारह, गणधर सातों ऋद्धीयुत थे।
चौदह हजार मुनि अवधिज्ञानी, आदिक सब सात भेदयुत थे।।
चंदना प्रमुख छत्तीस सहस, संयतिकायें सुरनरनुत थीं।
श्रावक इक लाख श्राविकाएँ, त्रय लाख चतुःसंघ संख्या थी।।५।।
प्रभु सात हाथ, उत्तुंग आप, मृगपति लांछन से जग जाने।
आयू बाहत्तर वर्ष कही, तुम लोकालोक सकल जाने।।
भविजन खेती को धर्मामृत, वर्षा से सिंचित कर करके।
तुम मोक्षमार्ग अक्षुण्ण किया, यति श्रावक धर्म बता करके।।६।।
मैं भी अब आप शरण आया, करुणाकर जी करुणा कीजे।
निज आत्म सुधारस पान करा, सम्यक्त्व निधी पूर्णा कीजे।।
रत्नत्रयनिधि की पूर्ती कर, अपने ही पास बुला लीजे।
‘‘सज्ज्ञानमती’’ निर्वाणश्री, साम्राज्य मुझे दिलवा दीजे।।७।।
गीताछंद
महावीर प्रभु को जो भविक जन, वंदते शुचि भाव से।
निर्वाण लक्ष्मीपति जिनेश्वर, को नमें अति चाव से।।
वे भव्य नर सुर के अतुल, संपत्ति सुख पाते घने।
फिर अन्त में शुचि ‘‘ज्ञानमति’’, निर्वाण लक्ष्मीपति बने।।८।।
Tags:
Jain Poetries
Previous post
ज्ञानसुधामृत
Next post
भगवान पुष्पदंतनाथ वन्दना
Related Articles
जीवन का मूल्य
December 17, 2014
jambudweep
भगवान वासुपूज्य वन्दना
June 3, 2020
jambudweep
एक चिट्ठी—अपनी प्यारी बेटियों के नाम
October 20, 2014
jambudweep
error:
Content is protected !!