याद रखना और भूल जाना मानव जीवन के दो अहम पहलू हैं। मनुष्य जीवन में जितना याद रखना जरूरी है उतना ही भूलना भी आवश्यक है। मनुष्य यदि भुलक्कड़ नहीं होता तो दु:खों के बोझ से उसका दम घुट जाता और मनुष्य का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता। हकीकत में आज के तनावग्रस्त जीवन में भूलना एक वरदान है। आइये जीवन को आनन्दमय बनाने के लिये हमें क्या भुलना चाहिए ? इस पर विचार करें—
समय सदा एकसा नहीं रहता। जीवन में सुख के साथ दु:ख अपमान और कष्ट का आना स्वाभाविक है। जीवन का यही क्रम है।इसलिये तो कहा है कि— अगर जीना है तो जहर भी पीना ही पड़ेगा।हकीकत में दु:ख, अपमान और कष्ट हमें नया दृष्टिकोण और प्रेरणा देते हैं, ताकि हम उनको भूलकर जीवन का आनन्द ले सके। प्रेरणा प्राप्त करने के लिये तो अतीत के झरोखे में झांकना उचित है परन्तु अतीत को सर्वस्व मानकर उसमें खोजना उचित नहीं है। अतीत के दुखों को बार—बार याद करने से हमारा वर्तमान भी दु:खद बनता है। जैसे रात के बाद दिन आता है उसी तरह दु:ख के बाद सुख का आना भी निश्चित है। अत: वर्तमान के सुखों का आदर स्वागत कर भविष्य को आशावान बनाया जा सकता है। तात्पर्य यह है कि अतीत के अप्रिय प्रसंगो को भुलाकर अर्थात् स्मृति से निकल कर ही हम जीवन को सुखी बना सकते हैं। कविवर बच्चन के शब्दों में—
जो बीत गई सो बात गई,
अम्बर के आंचल को देखो कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे, पर बोलो टूटे तारों पर।
अम्बर कब शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई।
गलती कभी भी किसी से भी सम्भव है, क्योंकि गलती करना मनुष्य का स्वभाव है। मनुष्य यदि गलती नहीं करे तो वह देवता कहलाएगा। परन्तु मनुष्य तो मनुष्य है देवता नहीं। दूसरों के द्वारा की गई भूलों को दिमाग में रखने से हमें गुस्सा आता रहेगा और हम तनाव से ग्रस्त रहेंगे जिससे हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अत: हमें सुखी रहने के लिये दूसरों की भूलों को भूलकर मस्त रहना चाहिए। इसी में हमारा फायदा है। कहा भी है—औरों की भूलों को भूलें, अपनी भूल सुधार।
सुख और दु:ख की तरह मान और अपमान जीवन के अहम हिस्से हैं। कई बार हमें जीवन में अपमान भी सहना पड़ता है, पर मनुष्य अपमान पसन्द नहीं करता। अपमान से उसके हृदय में शुल सर चुभती है और वह तिलमिला उठता है। अपमान को याद रखने से बदले की भावना पनपती है। जिससे मनुष्य बदला लेने के लिये हर समय बेचैन रहता है और उसी में अपनी शक्ति खर्च करता है जिससे वह अपने काम की ओर पूरा ध्यान नहीं दे पाता और काम को पूरी शक्ति के साथ नहीं कर पाता जिससे उसका विकास अवरूद्ध हो जाता है। इस तरह अपमान की घटना को याद रखने में स्वयं का ही नुकसान होता है। मनोवैज्ञानिक को तो यहां तक कहना है कि यदि अपमान को भूलने की क्षमता आप में नहीं है। तो किसी न किसी अंश में आप उस अपमान के हकदार है। अत: हमें अपमान को भूलकर अपनी शक्ति का उपयोग उन कामों में करना चाहिए जो हमें तरक्की देकर आगे बढ़ा सके।
कई बार हम व्यर्थ की बातों को याद रखकर उनमें उलझ जाते हैं। हकीकत में व्यर्थ की बातों का दिमाग में रखना सरदर्द मोल लेना है। अत: केवल अति आवश्यक बातों को याद रखकर व्यर्थ की बातों को भूल जाना चाहिए। दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं ? अथवा क्या कहते हैं ? इस पर गौर कर हम सजग तो रह सकते हैं, परन्तु दूसरों से सुनी हुई व्यर्थ की बातों को याद रखकर हम अपने साथ अन्याय नहीं कर सकते। व्यर्थ की छोटी—छोटी बातों को भूल जाना ही उचित है। सुनो सबकी, करो मन की,की कहावत का जीवन में उपयोग कर जीवन को सही दिशा में मोड़ा जा सकता है।
हम जिनसे सहयोग की अपेक्षा करते हैं, कई बार वे ही लोग सहयोग न कर असहयोग करते हैं जिससे हमें दु:ख होता है। व्यक्ति सामान्यता ऐसे प्रसंगों को भूल नहीं पाता। परन्तु दुनिया स्वार्थी है स्वार्थ रहने तक ही वह सहयोग करती है। इस बात को समझकर असहयोग को दुख न मानकर हमें असहयोग के क्षणों को भुला देना चाहिए। जैसे को तैसा की भावना को दिमाग में रखकर यदि आपने दूसरों के साथ असहयोग का व्यवहार किया तो कई लोग आपके दुश्मन बन जायेंगे जिससे आपका जीना दूभर हो जायेगा। अत: असहयोग को भुलाकर जो सम्भव हो वह करें और आगे बढ़े। निष्कर्ष—प्रकृति के दिये हुए भूलने के गुण को ध्यान में रखते हुए ऊपर वर्णित बातों को भूलकर ही हम सच्चे जीवन का आनन्द ले सकते हैं। जीवन में घटित होने वाली सभी बातें न तो याद रखी जा सकती है न उन्हें याद रखना हमारे हित में हैं। अत: भूलिये और मस्त रहिये।