चारित्र ही धर्म है
चारित्र ही धर्म है ‘‘भगवन्! धर्म क्या है ?’’ ‘‘वत्स! चारित्र ही धर्म है और वह साम्यभाव या शमभावरूप है।’’ ‘‘यह साम्य या शमभाव क्या है ?’’ ‘‘यह आत्मा का मोह और क्षोभ रहित परिणाम है।’’ ‘‘मोह और क्षोभ क्या बला है ?’’ ‘‘दर्शनमोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न हुआ जो अतत्त्व श्रद्धानरूप परिणाम है…