३. ‘ मंगल’ शब्द की निरूक्ति पूर्वक कथन –आचार्य वीरसेन स्वामी जी ने मंगल शब्द की निरुक्ति करते हुए लिखा है-
४. निक्षेप की अपेक्षा मंगल का कथन – नामादि के द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को न्यास या निक्षेप कहा जाता है । प्रमाण और नय के अनुसार प्रचलित हुए लोक- व्यवहार को निक्षेप कहते हैं । अनिर्णित वस्तु को निर्णित करने वाला निक्षेप कहलाता है । निक्षेप के छह भेद हैं – नाम, स्थापना, द्रव्य क्षेत्र, काल और भाव ।षट्खण्डागम, खण्डे १, पुस्तक १, (टीकाकत्री- आ. ज्ञानमति माता) पृष्ठ-३० इन छह निक्षेप की अपेक्षा मंगल का कथन इस प्रकार है
6. अनुयोग की अपेक्षा मंगल का. कथन – इस अनुयोग में मंगल क्या है? मंगल किसका? किसके द्वारा मंगल किया जाता है? मंगल कहाँ होता है? कितने समय तक मंगल रहता है? मंगल कितने प्रकार का है? – इन सभी प्रश्नों का उत्तर -समाधान किया गया है ।षट्खण्डागम, खण्ड १?एपुसाक १, (टीकाकत्री- आ. ज्ञानमति माता) पृष्ठ-४०
मंगल क्या है? जीव द्रव्य मंगल है ।
मंगल किसका है? जीव द्रव्य का मंगल है ।
किसके द्वारा मंगल किया जाता है? – औदयिक भावों के द्वारा मंगल किया जाता है अर्थात् पूजा-भक्ति अणुव्रत-महाव्रत आदि प्रशस्त रागरूप औदयिक भाव-परिणाम भी मंगल में कारण होते हैं ।
मंगल कहाँ होता है ?– जीव में मंगल होता है ।
कितने समय तक मंगल रहता है? नाना जीवों की अपेक्षा हमेशा मंगल रहता है और एक जीव की अपेक्षा अनादि अनन्त, और सादि-सान्त तक मंगल रहता है ।
मंगल कितने प्रकार का है – मंगल सामान्य की अपेक्षा एक प्रकार का है । मुख्य, गौण की अपेक्षा मंगल दो प्रकार का है । द्रव्य मंगल और भाव मंगल दो प्रकार का हैं । लौकिक और पारमार्थिक की अपेक्षा मंगल के दो प्रकार हैं । निश्चय व व्यवहार की अपेक्षा मंगल के दो प्रकार है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के भेद से तीन प्रकार का मंगल है । अरिहंत, सिद्ध साधु और अर्हन्त के भेद से मंगल चार प्रकार का है । सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और तीन गुप्ति के भेद से पांच प्रकार का है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा मंगल के छह भेद हैं । पंचपरमेष्ठी की अपेक्षा मंगल पांच प्रकार का कहा जा सकता है । नवदेवता की अपेक्षा मगल नव प्रकार का सिद्ध होता है । अथवा जिनेन्द्र देव को नमस्कार करने की जितनी पद्धतियाँ हैं, मंगल के उतने भेद हो सकते हैं ।