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Tag: Anekant Patrika

Home Posts Tagged "Anekant Patrika"

श्रावक और उनके षड् आवश्यक कर्त्तव्य!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

श्रावक और उनके षड् आवश्यक कर्तव्य श्रावक शब्द का अर्थ श्रावक शब्द का सामान्य अर्थ श्रोता या सुनने वाला है। जो जिनेन्द्र भगवान के वचनों को एवं उनके अनुयायी गुरूओं के उपदेश को श्रद्धापूर्वक सावधानी से सुनता है, वह श्रावक है कहा भी गया है| ‘‘अवाप्तदृष्टयादि विशुद्धसम्पत् परं समाचारमनुप्रभातम्। श्रृणोति य: साधुजनादतन्द्रस्तं श्रावकं प्राहुरमीर जिनेन्द्रा:।।’’१…

श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में दान परम्परा!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में दान परम्परा शुद्ध धर्म का अवकाश न होने से धर्म में दान की प्रधानता है। दान देना मंगल माना जाता था। याचक को दान देकर दाता विभिन्न प्रकार के सुखों की अनुभूति करता था। अभिलेखों के वण्र्य—विषय को देखते हुए यह माना जा सकता है कि दान देने के कई प्रयोजन…

वैदिक संस्कृति और जैन संस्कृति!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

वैदिक संस्कृति और जैन संस्कृति संस्कृति शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक कृ धातु से क्तिन् प्रत्यय् करने पर निष्पन्न होता है अतः संस्कृति शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- सम्यक् प्रकार से किया गया कार्य। संस्कृति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग यजुर्वेद में दृष्टिगत होता है- आच्छिन्नस्य ते देव सोम सुवीर्यस्य रायस्पोषस्य ददितारः स्याम। ‘सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा1‘ अर्थात्…

ध्यान का स्वरूप एवं उसके भेद तथा गुण-दोष विवेचन!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

ध्यान का स्वरूप एवं उसके भेद तथा गुण-दोष विवेचन ध्यान शब्द भ्वादि गण की परस्मैपदी ध्यै धातु से ल्युट् प्रत्यय करने पर निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ सोचना, मनन करना, विचार करना, चिन्तन करना, विचार-विमर्श करना आदि है । वस्तुत: एकाग्रता का नाम ध्यान है ऐसा एक भी क्षण नहीं रहता है, जब व्यक्ति किसी…

तत्त्वार्थसूत्र में ध्यान एक विश्लेषण!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

तत्वार्थसूत्र में ध्यान एक विश्लेषण भारतीय संस्कृति की अविच्छिन्न और विशाल परम्परा में विभिनन मतवादों या आचार-विचारों का अदभुत समन्वय है। यद्यपि वे विभिन्न आचार-विचार अपनी विशिष्टताओं के कारण अपना अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं। तथापि उनमें एकसूत्रता भी पर्याप्त है। कितने ही ऐसे तत्त्व हैं जो प्रकारान्तर से एक दूसरे के पर्याय अथवा एक दूसरे…

कर्मसिद्धान्त के कतिपय तथ्यों का विवेचन—विश्लेषण!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

कर्मसिद्धान्त के कतिपय तथ्यों का विवेचन—विश्लेषण प्राचार्य अभयकुमार जैन (से.नि.) जीवतत्त्व को प्रभावित करने वाली किसी एक सत्ता को सभी आस्तिक दर्शन स्वीकारते हैं; क्योंकि इसे स्वीकारे बिना जीवों में दिखने वाली विषमता, विविधता तथा विभिन्न कालों में घटित होने वाली विभिन्न अवस्थाओं के बीच सामन्जस्य हो पाना किसी भी प्रकार संभव नहीं है सभी…

मंगल एवं मंगलाचरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

मंगल एवं मंगलाचरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन ‘ मंगल ‘ शब्द कल्याणकारी एवं शुभ सूचक शब्द है । किसी भी शुभकार्य के प्रारंभ में मंगलरूप आचरण करना मंगलाचरण है । ग्रंथ जन हितार्थ लिखा एवं पढ़ा जाता है । अत: उसको प्रारम्भ करते समय मंगलाचरण का निर्वाह किया जाता है । मंगलाचरण में अपने इष्टदेव को…

जैन दर्शन में गुणस्थान और ध्यान का सम्बन्ध!

December 9, 2020jambudweepAnekant Patrika

जैन दर्शन में गुणस्थान और ध्यान का सम्बन्ध ”मुकेश जैन, शोधअध्येता जैन परम्परा में ध्यान.- अपने आप में एक मौलिक, अनुभूत तथा एक व्यवस्थित अवधारणा है । इस परम्परा की एक विशेषता है कि वह अतीन्द्रिय अनुभूति भी अनायास या उसके मार्ग में अव्यवस्था, अक्रम स्वीकार नहीं करती । उसकी अनुभूति? शब्दातीत अवर्णनीय भले ही…

आचार्य समन्तभद्र का आप्त मीमांसा!

December 8, 2020jambudweepAnekant Patrika

आचार्य समन्तभद्र का आप्त मीमांसा जिनोपदेश को सर्वोदय तीर्थसर्वन्तवत्तदुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मिघोऽनपैक्षम्। सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव।। (युक्त्यनुशासनम्—६१) उद्धोषित करने वाले महान् र्तािकक आचार्य समन्तभद्र ने ईसा की द्वितीय—तृतीय शताब्दी में भारत भूमि को अलंकृत किया था।तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग २ पृष्ठ १८३ (अखिल भारतीय दिग. जैन विद्वत्परिषद्)। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व…

सिद्ध क्षेत्र सिद्धवर कूट तीर्थ का वैभव!

June 4, 2020jambudweepAnekant Patrika

सिद्ध क्षेत्र सिद्ध वरकूट तीर्थ का वैभव संसाराब्धेरपाररय तरणे तीर्थमिष्यते “आ. जिनसेन आदिपुराण 4/8 आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में कहा है कि जो इस अपार संसार समुद्र से पार करे उसे तीर्थ कहते हैं। ऐसा तीर्थ जिनेन्द्र भगवान का चरित्र ही हो सकता है। अत: जिनेंद्र भगवान का चरित्र तीर्थ है। पावनानि हि जायन्ते स्थानान्यपि…

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