मिट्टी में दबा सोना कभी पीतल या खदान में पड़ा हीरा कभी काँच का टुकड़ा नहीं हो सकता। बाहरी वस्तुएँ किसी की मूल प्रकृति नहीं बदलतीं, कुछ समय के लिए उनकी चमक को फीका अवश्य कर देती हैं। सदियों से पूज्य शासननायक देवाधिदेव भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर, जो सम्प्रति बिहार प्रदेश के नालंदा जनपद में अवस्थित है, ने भी इन २६०० वर्षों में काल के कई थपेड़े खाये हैं किन्तु यह तीर्थ उत्थान-पतन के झंझावातों को झेलकर आज भी अक्षुण्ण बना हुआ है। नवीनतम संकट १९५० के दशक में आये हुए कतिपय इतिहासज्ञों ने अनुमानों एवं जैनेतर साहित्य में उपलब्ध भौगोलिक संदर्भों के साथ समय बिठाने की जुगत में वैशाली के समीप स्थित वासुकुण्ड/क्षत्रिय कुण्ड/कुण्डग्राम को महावीर जन्मभूमि घोषित कर दिया। विगत शताब्दियों में न्यूनाधिक ह्रास तो हुए किन्तु अस्मिता का संकट नहीं आया। नये निर्माण, जीर्णोद्धार, विकास कभी कम, कभी ज्यादा हुए किन्तु तीर्थ के प्रबंधकों का शीर्ष नेतृत्व ही यह कह दे कि यह जन्मभूमि ही नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ।खैर! सम्मेदशिखर आन्दोलन में एक नारा हम सबने उद्घोषित किया था
बस यही बात यहाँ लागू होती है। देश की ९५³ नहीं ९९³ दिगम्बर जैन समाज अत्यन्त श्रद्धा, भक्ति एवं समर्पण के साथ महावीर जन्मभूमि के रूप में नालंदा स्थित कुण्डलपुर की वंदना करती रही है और करती रहेगी, ऐसे में तीर्थ पूर्णत: सुरक्षित है एवं जब पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की चरणरज इस पावनधरा पर पड़ गई तो तीर्थ का विकास हो ही गया। देश की पत्र-पत्रिकाओं में एक अभियान चलाकर पहले वैशाली को, फिर वैशाली के समीप किसी वासोकुण्ड को, जन्मभूमि घोषित किया गया।जब धर्मनिष्ठ प्रबुद्ध समाज ने इस मुहिम को अनदेखा कर दिया तो फिर मर्यादाविहीन होकर नाना प्रकार के लांछन एवं आरोप संतों, विद्वानों एवं कार्यकर्ताओं पर लगाये जाने लगे। धर्म एवं सत्य के पक्षधर इन कार्यकर्ताओं/ विद्वानों पर इससे कोई फर्क पड़ने का सवाल ही नहीं पड़ता।
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:, प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्या:।
विघ्नै: पुन: पुनरपि प्रतिहन्यमान्या, प्रारभ्य चोत्तमजना: न परित्यजंति।।
मैं कुण्डलपुर के विरोधी मित्रों से यह आग्रह करूँगी कि भाषा पर संयम रखें एवं यह जानें कि-
१. वर्तमान जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) सदियों से पूजित है एवं जो सदियों से पूजित है वह निर्विकल्प भाव से उसी रूप में पूज्य है।
२. यह आस्था का प्रश्न है केवल इतिहास का नहीं। यदि इसे इतिहास-भूगोल का प्रश्न बना देंगे तो दर्जनों नये विवाद पुन: सामने आ जायेंगे। फिर क्या करेंगे? जरा विचार करें।
३. वैशाली सिंधु देश की राजधानी थी तो विदेह का कुण्डलपुर वैशाली के अन्तर्गत कैसे हो सकता है?
४. विदेह की सीमा रेखाएं उस काल में क्या थीं? किसी को पता नहीं। यदि मगध के समीप कुण्डलपुर नहीं हो सकता तो सिंधु में कैसे हो जायेगा?
५. वर्तमान में जिन शोधों की बात की जा रही है, वह सब अनुमान एवं जैनेतर ग्रंथों पर आधारित है। कोई निर्णायक/अकाट्य प्रमाण ऐसा नहीं मिला है जिसके आधार पर वर्तमान मान्यता को बदलने की संभावना टटोली जाये।
६. हमारे तीर्थों का निर्धारण दिगम्बर आगमों के आधार पर होगा, बौद्ध या अन्य ग्रंथों के आधार पर नहीं।
७. लगभग सभी प्रमुख आचार्य/उपाध्याय/मुनि/आर्यिका परम्परामान्य जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) को ही मान्यता प्रदान करते हैं। हमारी परम्परा भी यही मानती है। अंत में भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर को शत-शत नमन करते हुए मेरी यही भावना है कि पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से विकसित यह तीर्थ युगोें-युगों तक स्मरण किया जाता रहे।