भरहावणिरुंदादो अडगुणरुंदो य दुसय उच्छेहो।
होदि महाहिमवंतो हिमवंतवियं वणेिह कयसोहो१।।१७१७।।
महहिमवंते दोसुं पासेसुं वेदिवणाणि रम्मािण।
गिरिसमदीहत्ताणिं वासादीणं च हिमवगिरिं।।१७२३।।
सिद्धमहाहिमवंता हेमवदो रोहिदो य हरिणामो।
हरिकंता हरिवरिसो वेरुलिओ अड इमे वूकंडा।।१७२४।।
हिमवंतपव्वदस्स य कूडादो उदयवासपहुदीिण।
एदाणं वूकंडाणं दुगुणसरूवाणि सव्वािण।।१७२५।।
जंणामा ते कूडा तंणामा वेंतरा सुरा होंति।
अणुवमरूवसरीरा बहुविहपरिवारसंजुत्ता।।१७२६।।
महाहिमवान् पर्वत का विस्तार भरतक्षेत्र से आठ गुणा और ऊँचाई दो सौ योजन प्रमाण है। वह हिमवन्त के समान ही वनों से शोभायमान है।।१७१७।।
महाहिमवान् पर्वत के दोनों पाश्र्वभागों में रमणीय वेदी और वन हैं। इनकी लम्बाई इसी पर्वत के बराबर और विस्तारादिक हिमवान् पर्वत के समान है।।१७२३।।
इस पर्वत के ऊपर सिद्ध, महाहिमवान्, हैमवत, रोहित्, हरि, हरिकान्त, हरिवर्ष और वैडूर्य, इस प्रकार ये आठ कूट हैं।।१७२४।।
हिमवान् पर्वत के कूटों से इन कूटों की ऊँचाई और विस्तारप्रभृति सब दुगुणा-दुगुणा है।।१७२५।।
जिन नामों के वे कूट हैं, उन्हीं नाम वाले व्यन्तरदेव उन कूटों पर रहते हैं। ये देव अनुपम रूपयुक्त शरीर के धारक और बहुत प्रकार के परिवार से संयुक्त हैं।।१७२६।।