(१)
बूढ़े हुए माँ—बाप अब ये, गए तो फिर ना आयेंगे।
टिमटिमाते दीप हैं ये, एक दिन बुझ जायेंगे।।
कितना है ऐहसान तुम पर जब हिसाब लगाओगे।
ऐहसान का बदला चुकाने, सौ जन्म कम पड़ जायेंगे।।
(२)
भूलकर के जवानी के जोश में, इन्हें आप जो तड़पायेंगे।
तो आप भी अपनी औलादों से, यही दुख पायेंगे।।
माँ बाप के प्रति फर्ज को, बेटे ही अगर भूल जायेंगे।
तुम ही बताओ फिर कहाँ, बुढ़ापे में माँ—बाप जायेंगे।।
(३)
माँ—बाप का प्रेम और त्याग तो, निस्वार्थी होता है सदा।
जिस दिन बनेंगे आप माँ—बाप तभी ये जान पायेंगे।।
आज के बच्चे हुए हैं स्वार्थ में अंधे इस कदर।
माँ–बाप से करें सौदा, उनकी सेवा क्या कर पायेगे।।
(४)
ईश्वर की प्रतिमूर्ति हैं ये, इनको करो वंदन नमन।
‘नयन’ इनकी सेवा ये सब उन्नति के द्वार खुल जायेंगे।।
इनके चेहरों पर अगर, खुशियाँ जो तुम ले आओगे।
तो तुम्हारे जीवन के हरपल, खुशियों से भर जायेंगे।।
(५)
घर में माँ—बाप बीमार हैं, किसी को फिकर नहीं।
उनकी सेवा, दवा—दारू का, कोई जिकर नहीं।।
जब भी चर्चा चलती है घर में, बहुओं और बेटों में।
विषय होता है जेबर जमीन जायजाद का, उनका जिकर नहीं।।
(६)
आग लगा दू ऐसी दुनियां में, कभी—कभी मन में आता है।
बच्चों का माँ—बाप से जिसमें, कैसा स्वार्थी नाता है।।
जिनने अपने जीवन का एक—एक पल, उनकी सेवा में लगा दिया।
बूढ़े होने पर अपने माँ—बाप को, वही जवान बेटा धमकाता है।।
(७)
चाँद पर जाये या जाये मंगल पर, या कहीं और चला जाये।
भले ही कितनी तरक्की करले इंसान नित नए तरीके अपनाये।।
जब तक ये इन्सानियत का अपना फर्ज नहीं निभायेगा।
सभी तरक्की व्यर्थ है इसकी, यह पिछड़ा ही कहलायेगा।।
(८)
भौतिक सुखों में करे तरक्की, दिन पर दिन इंसान।
पर नैतिकता में बहुत ही, पिछड़ गया नादान।।
तन पर तो सोना लदा, पर मन हुआ काँति हीन।
ज्यों चंदा आकाश में, पर हो चमक—विहीन।।