अनंत जीवों के कलेवर का नाम मांस है। यह प्रत्यक्ष में महानिंद्य एवं अपवित्र है। मांस जीवों का वध करके तैयार किया जाता है, कच्चे-पक्के-सूखे सभी तरह के मांस में अनंतानंत जीव उत्पन्न हो जाते हैं जिसके खाने से बुद्धि नष्ट हो जाती है, दुर्गति अर्थात् नरकादि में जाना पड़ता है। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके नारकी जबरन उसके मुख में ठूंसते हैं यह सब मांस खाने का फल है। एक मांस लोलुपी की कहानी इस प्रकार है-बक नाम का एक राजा मांस लोलुपी था, वह प्रतिदिन मांस खाता था। एक दिन रसोईया ने एक मासूम बालक का मांस पकाकर उसे दिया। राजा को वह बहुत अच्छा लगा। प्रतिदिन ऐसा ही मांस भोजन में मुझे मिलना चाहिए, ऐसा उसने रसोइया से कहा। अब प्रतिदिन गाँव के छोटे-छोटे बच्चों को मारकर रसोइया राजा को मांस खिलाने लगा। एक मां का इकलौता पुत्र था, अब उसकी बारी थी, वह हृदय फाड़-फाड़कर करुण कंदन करती थी। भीम ने उसकी करुणापूर्ण आवाज सुनी और उसके संकट को दूर करने का संकल्प लिया। अर्थात् उस पुत्र के बदले इस संकट का निवारण करने के लिए भीम स्वयं वहाँ पर गये, भीम और बक राजा का आपस में युद्ध हुआ। दुष्ट मांसभक्षी को भीम ने क्रोध में आकर उसकी पीठ पर एक लात मारी, पश्चात् उसका पांव पकड़कर उसको पछाड़कर जमीन पर गिराया। मरकर वह तैंतीस सागर की आयु वाले घोर नरक में गया। मांस अण्डे तो क्या, शक्कर की बनी हुई मछली आदि आकार की बनी मिठाई भी खाने से मांस का दोष लगता है। जैसे-बाजार की रबड़ी, चाट आदि जो रात-दिन खुले रहते हैं, कई दिन की बनी वस्तुएं जिस पर मच्छर-मक्खियाँ बैठते हैं, मर जाते हैं, सब मांस जैसे पिंड बन जाते हैं। इसके अलावा बहुत दिनों के बड़ी, पापड़, अचार, मुरब्बा भी खाने योग्य नहीं हैं। इसके अलावा बिस्कुट, डबल रोटी आदि भी वस्तुए हैं इन्हें खाने से मस्तिष्क कमजोर होता है। इस प्रकार मांस खाने वाले क्रूर हिंसक, निर्दयी कहलाते हैं। इसलिए माँस कभी नहीं खाना चाहिए। इसी पर एक लौकिक कथा है- जंगल में मुनिराज जी उपदेश दे रहे थे कि हे संसार के प्राणियों! अगर तुम सुख चाहते हो तो मांस खाने का त्याग करो। महाराज जी का उपदेश सुनकर कई लोगों ने मांस खाने का त्याग कर दिया, वहीं पर एक भील बैठा हुआ उपदेश सुन रहा था। मुनिराज ने कहा-रे भील! तू भी मांस खाने का त्याग कर। उसने कहा कि हे स्वामिन्! मेरे तो मांस ही भोजन है, मांस के बिना मैं रह नहीं सकता हूँ। मुनिराज ने कहा कि तू कौवा का मांस खाने का त्याग कर, जीवन भर के लिए वह नियम लेकर घर गया और सुख से रहने लगा। कुछ दिनों बाद अशुभ कर्म का उदय आया कि वह बीमार पड़ गया, वैद्य जी आये, दवाई में कौवा का मांस बताया उसने कहा-मैंने तो मुनिराज जी से नियम लिया था, मैं मांस नहीं खाऊँगा। सबने समझाया लेकिन किसी की नहीं मानी। लोगों ने कहा कि उसके साले को बुला दो, साला जंगल से आ रहा था कि एक देवी रो रही थी, उसने पूछा-हे देवी! क्यों रो रही है, उसने कहा कि जो कौवा का मांस त्याग किया है उस भाई को यदि कौवा का मांस खिलाओगे तो वह मेरा पति नहीं होगा, वह नीच गति में चला जायेगा। वहाँ पहुँचकर बहुत समझाया कि कौवा का मांस खा लो जीजा जी, उसने कहा-मैं नहीं खाऊँगा। तब वह साला बोला कि तुम कौवा का मांस त्याग करने से देव बनोगे। उसने कहा-मेरे सारे मांस का त्याग है, इतना कहते ही उसके प्राण निकल गये और ऊँचा देव हो गया। वह साला उसी जंगल में आया, वह देवी फिर रो रही थी। उसने पूछा-अब क्यों रो रही हो? उसने कहा कि तूने कौवे का मांस त्याग करने को कहा था सो उसने सारे मांस का त्याग कर दिया, इससे वह ऊँचा देव हो गया। इससे आचार्य कहते हैं कि प्रत्येक प्राणियों को मांस का त्याग करना चाहिए।