तर्ज-बार-बार तोहे क्या समझाऊँ…….
माता मोहिनी – बार-बार समझाऊँ बेटी, मान ले मेरी बात।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।
मैना – भोली भाली माता मेरी, सुन तो मेरी बात।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।
माता मोहिनी – तूने तो बेटी अब तक, संसार न कुछ देखा है।
फिर भी मान लिया क्यों इसको, यह सब कुछ धोखा है।।
खाने और खेलने के दिन, क्यों करती बर्बाद।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।१।।
मैना – प्यारी माँ! इस नश्वर जग में, कुछ भी नया नहीं है।
जो कुछ भोगा भव भव में, बस दिखती कथा वही है।।
ग्रन्थों से पाया मैंने, हे माता ज्ञान का स्वाद।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।१।।
माता मोहिनी – ये सुन्दर गहने मैना, मैं तुझको पहनाऊँगी।
अपनी गुड़िया सी पुत्री की, शादी रचवाऊँगी।।
सजधज कर जब बनेगी दुलहन, शरमाएगा चाँद।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।२।।
मैना – तेरी प्यारी बातों में माँ, मैंना नहिं आयेगी।
सोने चाँदी के गहनों को, वह न पहन पाएगी।।
रत्नत्रय का अलंकार बस, मुझे पहनना मात।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।२।।
माता मोहिनी – मेरे बस की बात नहीं, तेरे भाई-बहन समझाना।
सब रोकर बोले हैं जीजी, को लेकर ही आना।।
तू ही मेरे घर की रौनक, तू मेरी सौगात।
तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।३।।
मैना – माँ मैंने अपने मन में, दृढ़ निश्चय यही किया है।
गृह पिंजड़े से उड़ने का, मैंने संकल्प लिया है।।
तू प्यारी माँ देगी आज्ञा, मुझे है यह विश्वास।
हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।३।।
माता मोहिनी – आज है पुत्री शरदपूर्णिमा, तेरा जनमदिन आया।
आज के दिन तूने अपना, यह निर्णय मुझे सुनाया।।
पत्थर दिल करके बेटी मैं, देती आज्ञा आज।
सुखी रहे मैना मेरी, यह ही है आशीर्वाद।।४।।
मैना – आज ही सच्चा जनम हुआ है, मेरा मैंने माना।
शरदपूर्णिमा का महत्त्व अब, ठीक से मैंने जाना।।
ब्रह्मचर्य सप्तम प्रतिमा ले, मैंने किया गृह त्याग।
दीक्षा ग्रहण कर मुझको, असली मिलेगा साम्राज।।४।।
माता मोहिनी – जनम से जिनके धन्य हुई है, शरदपूर्णिमा रात।
संयम के द्वारा उसी, पूनो का सार्थक प्रभात।।
जग वालों ! देखो वही कन्या, ज्ञानमती कहलाई।
आज उन्हीं के द्वारा जग ने कितनी निधियाँ पाईं।।
सदी बीसवीं की ये गणिनी, प्रमुख हुई विख्यात।
हम सब सजाएँ इनकी, पूजा की थाली आओ आज।।५।।