भारत के सभी धर्मों के मूल में ‘अहिंसा परमो धर्म:’ की मूल भावना समाहित है। जीव हिंसा क्रूरता का परिचायक है। धर्म की मूल धारणा को स्वीकारें और जीव हिंसा से बचें, यही पावन संदेश निहित है सभी धर्मों में…..
राजा अभिषेक जैन, छात्र इंजीनियिंरग कालेज, जबलपुर
रूपदेखा: प्रस्तावना शाकाहार का अर्थ व धर्म में महत्त्व शाकाहार से लाभ तथा माँसाहार से हानि आधुनिक भौतिक वस्तुओं के पीछे छिपी कटु वास्तविकता माँसाहार की रोकथाम उपसंहार।
प्रस्तावना
माँसाहार आज विश्वव्यापी समस्या बनता जा रहा है तथा इसके साथ मानव—समाज व उसकी सभ्यता व संस्कृति के अस्तित्व का महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़ गया है। आज बढ़ती हुई भौतिकवादी विचारधारा के कारण मनुष्य स्वाद के लिए अधिक से अधिक वस्तुओं का सेवन करना चाहता है तथा सुख प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु इस मृगतृष्णा में वह यह भूल गया है कि वह है क्या? उसकी प्रकृति, उसका स्वभाव क्या हैं ? वह सच्चा आत्मिक सुख कैसे प्राप्त कर सकता है? मनुष्य प्राकृतिक रूप से एक शाकाहारी प्राणी है। रंग, रूप, आकार, व्यवहार व आँतरिक तथा बाह्य संरचना की दृष्टि से माँसाहारी जन्तुओं से भिन्नता इस बात को स्पष्ट रूप से प्रमाणित करती है। कहा गया है कि ‘‘जैसा खाओ अन्न, वैसा रहे मन’’ परन्तु निरीह व मासूम जन्तुओं की हत्या से प्राप्त माँस का सेवन करने से मानव की सात्विक प्रवृत्ति नष्ट होती जा रही है। ‘‘भावना पाषाण को भगवान बना देती है, साधना अभिशाप को वरदान बना देती है। विवेक के स्तर से नीचे उतरने पर, व्रूरता इंसान को शैतान बना देती है।।’’ और इस प्रकार से मानव में तामसिक गुणों व शैतानियत की वृद्धि हो रही है। आज विश्व के विभिन्न देशों के नागरिकों के मध्य जो तनाव, परस्पर ईष्र्या व द्वेष की भावना व अंधी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। उसका एक प्रमुख कारण माँस का सेवन करना है। माँस के एक टुकड़े को गले के मार्ग में प्रविष्ट कराने की भूल सर्वनाश के रास्ते पर अगला कदम बढ़ाना है। शाकाहार का अर्थ व धर्म में महत्त्व— वे समस्त वस्तुएँ जो जमीन के ऊपर पेड़ और पौधों से खाने की प्राप्त होती हैं, शाकाहारी कहलाती हैं, जैसे, अनाज, दालें, फल, सब्जी गाय, भैंस, बकरी का दूध इत्यादि। वस्तुत: वनस्पति से प्राप्त उत्पाद ही शाकाहार है। इसके विपरीत प्राणियों को मारकर या मरे हुए का माँस माँसाहार के अन्तर्गत आता है।
‘धर्म’ के सन्दर्भ में केवल एक—दो धर्म ही नहीं, अपितु भारत के समस्त धर्म बल्कि विश्व के सभी धर्मों व महापुरुषों ने हर प्राणी मात्र में उस परम पिता परमात्मा की झलक देखने को कहा है वह अिंहसा को परमो धर्म माना है। अधिकांश धर्मों में तो विस्तारपूर्वक माँसाहार के दोष बताए हैं तथा उसे आयुक्षीण करने कला व पतन की ओर ले जाने वाला कहा है। अपने इन्द्रिय सुख को ही जीवन का परम ध्येय समझने वाले कुछ लोग अपने स्वार्थवश यह प्रकट करते हैं कि उनके धर्म में माँसाहार निषेध नहीं है परन्तु यह असत्य है। हिन्दु धर्म :— हिन्दु धर्म में एकमत से सभी जीवों को ईश्वर का अंश माना है व अहिंसा, क्षमा, दया आदि गुणों को अत्यन्त महत्व दिया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह में माँस खाने वाले, माँस का व्यापार करने वाले व माँस के लिए जीव हत्या करने वाले तीनों को दोषी बताया है। उन्होंने कहा है कि जो दूसरों के माँस से अपना माँस बढ़ाना चाहता है वह कभी चैन से नहीं रह पाता। जिस प्राणी का वध किया जाता है वह यही कहता है ‘‘माँस भक्षयते यस्माद् भक्षयिष्ये तमप्यहम्’’ अर्थात् आज वह मुझे खाता है। कल मैं उसे खाऊँगा।
श्रीमद् भगवत गीता में भी शाकाहार को श्रेष्ठ आहार कहा है। अथर्ववेद में कहा गया है—य आमं माँस भवन्ति पौरूषयें ये कवि:।
गर्भात् खायन्ति केशवास्तनितो नारायमसि।।अर्थात् जो कच्चा या पका माँस खाते हैं, उनका यहाँ से हम नाश करते हैं।
इस्लाम धर्म :— सभी सूफी संतों ने नेक जीवन, दया, गरीबी व सादा भोजन तथा माँस न खाने पर बहुत जोर दिया है। स्वयं भी वे शाकाहारी थे, शेख इस्माइल, ख्वाजा मौइनुद्दीन चिश्ती, हजरत निजामुद्दीन औलिया, शाह, अब्दुल करीम आदि का मार्ग आत्म संयम, शाकाहारी भोजन व सब के प्रति प्रेम था, उनका कथन था कि ‘‘ता बयार्बी दर बहिश्ते अद्न जा, शक्कते बनुमाए व खल्मे खुदा’’ यानि अगर तू सदा के लिए बहिश्त में निवास पाना चाहता है तो खुदा की खल्कत (सृष्टि) के साथ दया व हमदर्दी का व्यवहार कर।
ईसाई धर्म :— ईसा मसीह को आत्मिक ज्ञान विषैपस्टिक से प्राप्त हुआ था जो माँसाहार के सख्त विरोधी थे। ईसा मसीह की शिक्षा के दो प्रमुख सिद्धान्त है।‘तुम जीव हत्या नहीं करोगे।’ और ‘अपने पड़ोसी से प्यार करो। उन्होंने कहा है— ‘‘यदि तुम शाकाहारी भोजन को अपना आहार बनाओगे तो तुम्हें जीवन व शक्ति मिलेगी, लेकिन यदि तुम मृत भोजन (माँसाहार) करोगे तो वह तुम्हें भी मृत बना देगा।
सिख धर्म :— गुरूवाणी के लिए ‘अन्न पानी थोड़ा खाया’ का आदर्श रखती है। गुरू अर्जुन देव जी ने सच्चा प्रेम करने वालों को हंस व अन्य को बगुला कहा है। उन्होंने कहा है हंस हीरे मोती खाता है व बगुला मेंढक मछली। ‘‘हंसा हीरा तोती तुगुणा, बगु डउा भालन जावे।’ (आदिग्रन्थ पृष्ठ ३६६) हिंसा की मनाही के बारे में गुरूवाणी स्पष्ट रूप से कहती है। हिंसा तउ मन ते न छूटी जीए दइआ नहीं पाली (आदिग्रन्थ पृष्ठ १२५३) सभी गुरुद्वारों में लंगर में अनिवार्यत: शाकाहार ही बनता है।
जैन धर्म :— अिंहसा जैन धर्म का सबसे मुख्य सिद्धान्त है। जैन ग्रंथों में हिंसा के १०८ भेद किये गए हैं हिंसा के विषय में सोचना तक पाप माना गया है। ऐसे धर्म में जहाँ जानवरों को बाँधना, दुख पहुँचाना उनको मारना व भार अधिक लादना पाप माना जाता है। वहाँ माँसाहार का प्रश्न ही नहीं उठता।
शाकाहार से लाभ तथा माँसाहार सये हानि :— भोजन का उद्देश्य केवल उदरपूर्ति, स्वास्थ्य प्राप्ति अथवा स्वाद की पूर्ति ही नहीं है, अपितु मानसिक व चारित्रिक विकास करना भी है। यह पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि मानव की प्रकृति शाकाहारी है। लेकिन आधुनिकता की होड में अपनी संस्कृति, आचार, विचार सब को दकियानुसी कहने वाले इस झूठी धारण के शिकार हो रहे हैं कि शाकाहारी भोजन से आवश्यक प्रोटीन व अन्य उचित पोषक तत्व प्राप्त नहीं होते। यह मात्र भ्रांति है। आधुनिक शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों की खोजों से साफ पता चलता है कि शाकाहारी भोजन से न केवल उच्च कोटि के प्रोटीन प्राप्त होते हैं, बल्कि विटामिन, खनिज,केलोरी, आदि भी अधिक प्राप्त होते हैं। शाकाहारी भोजन अधिक संतुलित होता है जो शाकाहारियों को माँसाहारियों की अपेक्षा ज्यादा सबल, स्वस्थ व दीर्घायु प्रदान करता है। कुछ अल्पज्ञानी व्यक्तियों जिन्हें अपनी विद्या पर बड़ा घमंड है कहते हं कि नवीनतम खोजें यह प्रमाणित करती हैं कि जंतुओं की तरह वनस्पति को भी काटने या छेड—छाड करने से दुख पहुँचता है और यह भी हिंसा है, क्योंकि यही खोजें इस तथ्य को भी प्रमाणित करती हैं कि वनस्पति को दिया जाने वाला दुख अत्यन्त की कम (नगण्य) होता है और इसे हिंसा नहीं कहा जा सकता। र्आिथक दृष्टि से भी यदि राष्ट्रीय व व्यक्तिगत स्तर पर देखा जाए तो शाकाहार, माँस से अधिक सस्ता और उतना ही पौष्टिक है। प्राय: ऐसा कहा जाता है कि अण्डों से बहुत कम खर्च में प्रोटीन प्राप्त हो जाता है, परन्तु वास्तव में यदि अण्डे से प्राप्त १ ग्राम प्रोटीन की कीमत की तुलना शाकाहारी वस्तुओं से प्राप्त १ ग्राम प्रोटीन के मूल्य से की जाए तो वह कई गुना अधिक निकलती है।
आर्थिक दृष्टि से यह भी सारांश निकाला गया है कि १ किलोग्राम प्रोटीन प्राप्त करने के लिए पशु को ७ से ८ किलो तक प्रोटीन खिलाया जाता है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि १ पशु माँस कैलोरी प्राप्ति के लिए पशु को ७ वनस्पति कैलोरी की खुराक देना पडती है। अमेरिका के कृषि विभाग ने जो आँकडे बनाए हैं, उससे पता चलता है कि जितनी भूमि एक औसत पशु को चराने के लिए चाहिए उतने से पाँच परिवारों को काम चल सकता है। प्रोफ़ेशर जार्ज बोर्गस्टौर्म के अनुमान के अनुसार केवल अमेरिका में पशु जगत जितनी वनस्पति पूड खर्च करता है, उतनी में विश्व की आधी आबादी पेट भर सकती है। भूतपूर्व मंत्री श्री बूटा सिंह ने संसद में बताया था कि ‘‘भारत में अधिकृत बूचड़खानों में २० लाख पशु प्रतिवर्ष कटते हैं। इनका कत्ल करने का अर्थ है प्रतिवर्ष गोबर व मूत्र से प्राप्त २ करोड़ टन प्राकृतिक खाद का उत्पादन खोना जो उपयोगी और एकदम मुफ्त है।’’ आज देश में खाद्यान्नों की बढ़ती हुई कीमतों का कारण यही है क्योंकि हमें अतिरिक्त रासायनिक खाद विदेशों से आयात करना पड़ रही है। यदि यह अमानुषिक कार्य बंद हो जाए जो व्यर्थ जाने वाली विदेशी मुद्रा बचेगी व खाद उद्योगों पर लगने वाला धन दूसरे क्षेत्रों में विनियोग हो सकेगा। साथ माँसाहार हमारे लिए घातक व असाध्य रोगों को जन्म देने वाला है, इस पर जो बड़े—बड़े निष्कर्ष डॉक्टरों व वैज्ञानिकों ने निकाले हैं वे इस प्रकार हैं : स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्व बपैलों में की गई शोध से यह प्रकाश में आया है कि अमेरिका में ४७००० से भी अधिक बच्चे ऐसे जन्म लेते हैं जिन्हें माता—पिता के माँसाहारी होने के कारण कई बीमारियाँ जन्म से होती हैं।
१९८५ के नोबेल पुरुस्कार विजेता डॉ. ब्राउन व गोल्टस्टीन ने यह प्रमाणित किया है कि हृदय रोग कोलेस्ट्राल की अधिक मात्रा से होता है जो अण्डे व माँस में सर्वाधिक पाई जाती है। माँस का सेवन करने वाले व्यक्ति हृदय रोग, पथरी, गुर्दे के रोग आदि से जल्दी ग्रसित हो जाते हैं। हुजा नामक कबीले से ९० से ११० साल के उम्र वाले लोगों के अध्ययन से यह पता चला है कि इतनी अधिक उम्र में भी स्वस्थ रहने का कारण शाकाहारी होना है। ग्वालियर के दो शोधकर्ताओं डॉ. जसराज सिंह व डॉ. सी. के. उपास ने जेल के ४०० बंदियों पर शोध करके बताया है कि उनमें २५० माँसाहारी बंदियों में ८५ प्रतिशत चिड़चिड़े स्वभाव के व १५० शाकाहारी बंदियों में ९० प्रतिशत शांत स्वभाव के हैं। अमरीकी डॉक्टरों का कहना है शाकाहारियों के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है तथा वहाँ रोगों से संबन्धित, प्रतिवर्ष आने वाले ४०,००० अधिक केस अण्डे व माँस खाने से उत्पन्न होते हैं। एक हेल्थ ऐजुकेशन काउंसल के अनुसार विषाक्त भोजन से होने वाली ९० प्रतिशत मौतों का कारण माँसाहार है। जर्मनी के प्रोफेसर एग्नरबर्ग का निष्कर्ष है कि ‘‘अण्डा ५१.८३ प्रतिशत कफ पैदा करता है व शरीर के पोषक तत्वों को असंतुलित कर देता है।’’ आधुनिक भौतिक वस्तुओं के पीछे छिपी कटु वास्तविकता :— आज के इस प्रतिस्पर्धा के युग में मानव एक दूसरे से अधिक सुन्दर व आकर्षित दिखना चाहता है तथा अधिकाधिक ऐशो आराम से जीवन व्यतीत करना चाहता है। लेकिन इसके लिए वह जिन फैशन की वस्तुओं व सौन्दर्य प्रसाधन का उपयोग कर रहा है, उसके निर्माण के पीछे की वास्तविकता क्या है, वह इससे अनभिज्ञ है।
इनके निर्माण के पीछे मूक प्राणियों की निर्मम तथा दहलपूर्ण हत्या का जो रहस्य छिपा है, वह इस प्रकार है—
1-एक रेशम की साड़ी बनाने के लिए लगभग ५०,००० कीड़ों की हत्या की जाती है।
2- सेंट में खुशबू के लिए कई बिच्छुओं का तड़फा—तड़फाकर मार डाला जाता है।
3-मुलायम चमड़ा जिससे आपके महंगे जूते, पर्स, बेल्ट आदि बनाए जाते हैं, प्राप्त करने के लिए जिंदा पशुओं को तेज खोलते हुए पानी धार से गुजारा जाता है। मधुमक्खियों के छत्ते लिपिस्टिक के लिए मोम प्राप्त करते समय लगभग ३०,००० मधुमक्खियाँ मर जाती हैं।
4-आपके बालों की मुलायम बनाने के लिए शेम्पू के परीक्षण के लिए सैकड़ों खरगोशों की मुलायम आँखे फाड दी जाती हैं। शीघ्र दूध निकालने के लिए प्रयुक्त आक्सीटोसिन नामक इंजेक्शन से पशुओं में भयानक प्रसव के जैसी पीड़ा होती है।
5- मिठाइयों पर जो चाँदी का वर्व लगाया जाता है उसे बैलों की आँतों के बीच चाँदी रखकर पीट—पीटकर बनाया जाता है। दैनिक उपयोग में आने वाली कई साबुनों में चर्बी मिलाई जाती है व कई टूथ पेस्टों में हड्डी व अन्य अशुद्ध पदार्थ मिलायें जाते हैं।
6- कंपनी वाली महंगी आइसक्रीमों में ६ प्रतिशत चर्बी लिसलिसे स्वाद के लिए मिलायी जाती है। (मेनका गाँधी)। जुएँ मारने वाले तरल पदार्थों से मस्तिष्क का कैंसर हो सकता है। डायबिटीज के इंसुलिन इंजेक्शन की दवा पशुओं के अग्नाशय से प्राप्त की जाती है।
7-अनेक होत्योपैथिक दवाइयाँ पशुओं की सिंह से बनायी जाती हैं। विभिन्न प्रकार के चॉकलेटों, टॉफियों, च्यूइंगम आदि का निर्माण गौ—माँस से किया जाता है। फर की टोपी आदि का निर्माण कराकुल मेमने को भेड के गर्भ से निकालकर किया जाता है। हजामत बनाने के लिए प्रयुक्त लोशनों का परीक्षण मिनी पिग की खाल पर किया जाता है। ‘लोरिस’ नामक जंतु के जिगर व आँखों को पीसकर सौंदर्य प्रसाधन बनाए जाते हैं।
माँसाहार की रोकथाम :—माँसाहार की भयावह समस्या का निराकरण के लिए जनता में जागरुकता की आवश्यकता है। आज लोग बिना सोचे समझे माँसाहार की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इसका मूलत: कारण है कि कुछ गिने चुने व्यक्ति ही माँसाहारों के कुप्रभावों से परिचित हैं। इसकी रोकथाम के लिए सरकार को माँस उत्पादन बंद करके शकाहार को पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत लाना चाहिए एवं कुछ विशेष योजनाएँ भी प्रारम्भ करना चाहिए। संचार के साधनों के माध्यम से माँसाहार के दुर्गुणों का विस्तृत रूप से प्रचार—प्रसार करना चाहिए। सामाजिक संस्थाओं की स्थापना द्वारा भी इस कार्य में प्रगति की जा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की खाद्य व कृषि परिषद को शाकाहारी उत्पादों को प्रोत्साहन व माँस, अण्डे आदि की अवहेलना करना चाहिए। इसी प्रकार की अन्य बड़ी संस्थाओं का निर्माण करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक कत्र्तव्य है कि वह माँसाहार के कुप्रभावों को जाने तथा उसे त्यागे एवं दूसरों को भी यह बातें बताकर माँस—त्याग का परामर्श दे। यह सोचना कि ‘‘मेरे अकेले के माँस—त्याग करने से यह समस्या क्या हल हो जाएगी।’’
सर्वथा असत्य है, क्योंकि हर आन्दोलन धीरे—धीरे ही क्रान्ति उत्पन्न करता है और दूसरी बात यह कार्य काफी पहले प्रारम्भ हो चुका है। पिछले चार दशक पूर्व अमेरिका में माँसाहार के अभक्ष्य होने का पता पड़ने पर उसकी खपत में २५ से ३७ प्रतिशत की कमी आई थी। आज अमेरिका में केवल शाकाहारियों की संख्या ५ करोड़ तक पहुँच चुकी है। ब्रिटेन में दस लाख से अधिक लोग पूर्णत: शाकाहारी है और संख्या लगातार बढ़ रही है। ब्रिटेन में १००० से अधिक ऐसे पूड शॉप हैं जहाँ केवल शाकाहारी व्यंजन पाए जाते हैं। परमवीर चक्र विजेता यदुनाथ सिंह व लंदन में बसे प्रोपर्टी डीलर परमजीत सिंह सिख होते हुए भी शाकाहारी है। इनसे प्रेरणा लेकर हमें शाकाहारी बनना चाहिए व हिंसा से र्नििमत वस्तुओं को भी त्याग करना चाहिए, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम वस्तुओं का उपभोग बंद कर दें। ‘ब्यूटी बिदाउट व्रूयेल्टी’ पूना एक ऐसी संस्था है, जिसने काफी खोज के बाद वस्तुओं की ऐसी सूची बनाई है, जिसमें केवल वनस्पति पदार्थ इस्तेमाल होते हैं। इसके माध्यम से हम सहायता ले सकते हैं। इस प्रकार यदि सम्मिलित रूप से जन—जागृति लाई जाए तो माँसाहार का विश्व से नामो—निशान तक मिटाया जा सकता है।
उपसंहार :—उपर्युक्त समस्त विवरण यह स्पष्ट करता है कि शाकाहार ही सर्वश्रेष्ठ है। समस्त धर्मों तथा महापुरुषों ने हिंसा, कृरता, क्रोध, द्वेष व अकारण जीवों को कष्ट देने को गुनाह बताया है तथा अहिंसा, दया, क्षमा, करुणा व सत्य का मार्ग दिखाया है। प्रकृति ने जहाँ मानव के आहार के लिए अनेक वनस्पति व स्वादिष्ट पदार्थ बनाए हैं, उसकी सहायता व साध के लिए पशु—पक्षियों की सृष्टि की। संसार के सभी जीव जंतु हमारी ही भाँति उस परमपिता की संतान है। क्या वह परमपिता अपनी एक संतान द्वारा दूसरी संतान को मारने का अपराध सहन करेगा ? शुभ या अशुभ कोई भी कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता उसका पुरस्कार व दण्ड देर—सबेर अवश्य मिलता है। यह निश्चित व अटल सत्य है। आज विश्व के कोने—कोने से डाक्टर व वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि माँसाहार जहर है।
प्लेटों ने कहा है— अत: एक स्वस्थ राष्ट्र व सुखमय विश्व मानव का शाकाहारी होना आवश्यक है। फिर भी यदि मेरे माँसाहारी बंधु मुझसे सहमत न हों तो वे अगली बार माँस खाने से पूर्व एक बार बूचडखानें व मुर्गीखाने में जाकर इन मूक प्राणियों पर किये जाने वाले अत्याचार उनकी वेदना तथा उनके चेहरे के भावों को अपनी आँखों से अवश्य देखें और माँसाहार के समय अपने ही गले को धीरे—धीरे कटते, उसमें से रक्त धारा को बाहर निकलते, अपने ही आँसुओं से भरी आँखों से देखने की कल्पना करें, और फिर अपनी अंतरात्मा से पूछे कि हमारी श्रेष्ठता व मानवता इसी में है कि हम अपनी जीभ के स्वाद के लिए निरपराध प्राणियों का वह जीवन उनसे सदा के लिए छीन ले जो हम उन्हें दे नहीं सकते। माँसाहार सेवन नैतिक व चारित्रिक पतन का द्वार है। भूल सुधार के लिए हर पल उत्तम है, शास्त्रों के अनुसार ‘‘माँसाहार का परित्याग करने वाले को भी यज्ञ करने वाले के समान फल मिलता है।’’
आप के जानिये क्लिंटन की पुत्री शाकाहारी बनी— दैनिक स्वतंत्रमत में छपी एक न्यूज के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पुत्री चेल्सिया माँसाहार का त्याग कर शाकाहारी बनी यह जानकारी पीपुल्स फॉर एनिमल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स पत्र ने दी। एक किसान को बैल से प्रतिवर्ष २० हजार रुपयों की कमाई होती है। यह जानकारी एनीमल वैलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के आँकड़ों को देखकर एक मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने दी है। तम्बाखू युक्त पान मसालों के सेवन से कैंसर और दिल का दौरा बल्कि कम उम्र में ही लकवा जैसी घातक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। अमेरिका में ४ लाख व्यक्ति धूम्रपान से मरते हैं।