सोचता है पथिक सच तो कह रहा है, जिसे कठोर समझ रहा था, वह तो है नरम-नरम। स्वादिष्ट भोजन खाकर भी कड़क बात कठोर बात बोलता हूं, अपनी वाणी को नहीं तोलता हूँ। पथिक ने पर्वत से कहा-हे मेरे शिक्षक पर्वतराज! तुमने बताई आज पते की बात। अब मैं मृदु बनूँगा, कोमलता को धारण करूँगा। अपने मधुर व्यवहार से शत्रु के दिल को जीतूँगा। हे भाई-अब मैंने यह जान लिया है सकारात्म्क सोच बनाएंगे, सकारात्मक बनेंगे अपनी सोच को पासिटिव बनायेंगे। मृदुता भाव धारण करके मनुष्य सारे गुण पा लेते हैं। आज भारतगौरव गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने सर्वप्रथम उत्तम मार्दव धर्म की जाप्य सभी भक्तों से करवाई। ॐ ह्रीं उत्तम मार्दव धर्मांगाय नम:। उत्तम मार्दव धर्म क्या है-मृंदोर्भाव: मार्दव: अर्थात् मृदुता का भाव मृदुता है। यह मार्दव धर्म मानरूपी शत्रु का मर्दन करने वाला है, यह आठ प्रकार के मद से रहित होता है और चार प्रकार के विनय से सहित होता है। रावण भी एक दिन मान के वश में आकर नष्ट हो गया। इसलिए मान का त्याग सभी को करना चाहिए। इसके पश्चात् माताजी ने गौतम गणधर वाणी जो चतुर्थकालीन वाणी हैं, आज दूसरी अध्याय में पूज्य माताजी ने कृतिकर्म विधि बताई-अहोरात्र के नित्य के साधुओं के २८ कृतिकर्म होते हैं। १ कृतिकर्म में २ प्रणाम, १२ आर्वत, ४ शिरोनति होती है। माताजी ने विस्तार से कृतिकर्म पर प्रकाश डाला है। माताजी ने सभी को प्रेरणा दी, इसको सीखना जैन समाज के लिए आवश्यक है। यही मेरी प्रेरणा और मंगल आशीर्वाद है।