तीर्थंकर प्रभु अंतिम नरायु, पाकर आयू का अंत करें।
फिर काल अनंतानंतों तक, परमानंदामृत पान करें।।
जो प्रभु की आयु नमें वे क्रम से, नर सुर की पूर्णायु धरें।
छ्यासठ हजार त्रयशत छत्तिस, भव क्षुद्र सभी निर्मूल हरें।।१।।
श्री आदिनाथ सुकुमार काल, है बीस लाख वर्ष पूरव।
है त्रेसठ लाख पूर्व का राज्य, समय छद्मस्थ सुहजार बरस।।
केवली काल हज्जार बरस, कम एक लाख पूरब माना।
चौरासीलाख पूर्व आयु को, वंदत सुख संपति नाना।।२।।
जिन अजित अठारह लाख पूर्व, कौमार काल, पुनि राज्य काल।
पूर्वांग एक युत त्रेपन लाख, सुपूर्व पुन: छद्मस्थ काल।।
यह बारह वर्ष पुन: सु बारह, वर्ष एक पूर्वांग शून्य।
केवली काल इक लाख पूर्व, पूर्णायु बहत्तर लाख पूर्व।।३।।
संभव जिनका कौमार काल, है पंद्रह लाख पूर्व माना।
अरु राज्य चवालिस लाख पूर्व, पूर्वांग चार युत सरधाना।।
छद्मस्थ सु चौदह वर्ष केवली, एक लाख पूरब में कम।
चौदह सु वर्ष पूर्वांग चार, पूर्णायु साठ लख पूर्व नमन।।४।।
अभिनंदन का कौमार्य पूर्व, बारह सु लाख पच्चास सहस।
है राज्य आठ पूर्वांग छत्तीस, लाख पूर्व पच्चास सहस।।
छद्मस्थ अठारह वर्ष केवली, एक लाख पूरब में कम।
अठरह सुवर्ष पूर्वांग आठ, पूर्णायु पचास लख पूर्व नमन।।५।।
श्रीसुमति कुमार पूर्व दसलख, अरुराज्य द्विदश पूर्वांग सहित।
उन्तीस लाख वर्ष पूरब, छद्मस्थ बीस ही वर्ष कथित।।
इक लाख पूर्व में बीस वर्ष, बारह पूर्वांग कम केवलि का।
पूर्णायू चालिस लाख पूर्व, वंदत नशती अपमृत्यु घटा।।६।।
पद्मप्रभु का कौमार पूर्व, लख सात पचास हजार कहा।
इक्किस लख सहस पचास पूर्व, सोलह पूर्वांग तक राज्य रहा।।
छद्मस्थ माह छह पुनि केवलि, इक लाख पूर्व में कम जानो।
छह माह, सोलह पूर्वांग पूर्ण, आयु लख तीस पूर्व मानो।।७।।
सुपार्श्वनाथ जिन कौमार्य पांच, लख पूर्व राज्य पूर्वांग बीस।
चौदह लख पूर्व तथा छद्मस्थ, काल नौ वर्ष हुआ व्यतीत।।
नौ वर्ष बीस पूर्वांग हीन, इक लाख पूर्व केवलि जानो।
पूर्णायु बीस लख पूर्व नमूं, दीर्घायु स्वास्थ्य मिलता मानो।।८।।
चंदा प्रभु का कौमार्य दोय, लाख सहस पचास पूर्व जानो।
छह लाख पचास हजार पूर्व, चौबिस पूर्वांग राज्य मानो।।
छद्मस्थ मास त्रय केवलि में, त्रिमास चौबिस पूर्वांग हीन।
इक लाख पूर्व है पूर्णायू, दश लाख पूर्व नमते प्रवीण।।९।।
जिन पुष्पदंत कौमार्य पूर्व, पच्चास सहस पुनि राज्य काल।
पच्चास सहस पूरब अट्ठाइस, पूर्वांग पुन: छद्मस्थ काल।।
चउ वर्ष बाद केवलि चउ, वर्ष अट्ठाईस पूर्वांग हीन।
इक लाख पूर्व पूर्णायु द्विलख, पूरब वंदत ही दु:ख क्षीण।।१०।।
शीतल जिनका कौमार्य पूर्व, पच्चीस सहस पुनि राज्य काल।
पच्चास हजार पूर्व नंतर, छद्मस्थ वर्ष त्रय तप: काल।।
त्रय वर्ष हीन पच्चीस हजार, पूर्व केवलि का समय कहो।
इक लाख पूर्व पूर्णायु नमत, दीर्घायु मिले तनु स्वस्थ लहो।।११।।
श्रेयांसनाथ कौमार्य वर्ष, इक्कीस लाख पुनि राज्य काल।
ब्यालिस लख वर्ष पुन: दो वर्ष, मात्र तप का छद्मस्थ काल।।
केवली समय दो वर्ष न्यून, इक्कीस लाख ही वर्ष कहा।
पूर्णायु चुरासी लाख वर्ष, वंदत आकस्मिक दु:ख दहा।।१२।।
जिन वासुपूज्य कौमार्य अठारह, लाख वर्ष नहिं राज्य किया।
प्रभु बाल ब्रह्मचारी छद्मस्थ, काल इक वर्ष व्यतीत किया।।
इक वर्ष हीन चौवन लाख, वर्षों तक केवलि भगवान रहे।
पूर्णायु बहत्तर लाख वर्ष, वंदत ही आधी व्याधि दहें।।१३।।
जिन विमलनाथ कौमार्य वर्ष, पंद्रह लख नंतर राज्य काल।
वह तीस लाख वर्ष नंतर, त्रय वर्ष मात्र छद्मस्थ काल।।
त्रय वर्ष हीन पंद्रह सु लाख, वर्षों तक केवलि काल आप।
पूर्णायु वर्ष है साठ लाख, मैं वंदूं नाशूँ सकल ताप।।१४।।
जिनवर अनंत कौमार्य वर्ष है, सात लाख पच्चास सहस।
है राज्य वर्ष पंद्रह सु लाख, छद्मस्थ तपस्या दोय बरस।।
लख सात उनंचास सहस नवसौ, अट्ठानवे वर्ष केवलि का।
पूर्णायु वर्ष है तीस लाख, वंदत पाऊँ भवदधि नौका।।१५।।
श्री धर्मनाथ कौमार्य काल, दो लाख पचास हजार बरस।
है राज्य काल पण लाख बरस, छद्मस्थ तपस्या एक बरस।।
दो लाख उनचास हजार नौ सौ, निन्यान्वे बरस केवली का।
पूर्णायु है दश लाख बरस, मैं वंदत पाऊँ फल नीका।।१६।।
श्री शांतिनाथ कौमार्य काल, पच्चीस हजार बरस सुखप्रद।
मंडलेश्वर पच्चिस सहस बरस, चक्रित्व पचीस हजार बरस।।
तप सोलह वर्ष पुन: चौबीस, हजार सु नवसौ चौरासी।
केवली काल के वर्ष नमूं, आयू इक लाख बरस तक की।।१७।।
जिन कुंथुनाथ कौमार्य सु तेइस, सहस सात सौ पचास वर्ष।
इनते ही बरस मंडलेश्वर, फिर इतने ही चक्रीश बरस।।
तप सोलह वर्ष पुन: तेईस, हजार सात सौ चौंतिस तक।
इनते वर्षों केवली नमूं, पूर्णायु पंचान्वे सहस बरस।।१८।।
अरनाथ प्रभू कौमार्य सहस, इक्कीस वर्ष पुन राज्य काल।
इतना ही समय मंडलेश्वर, पुन: इतना ही चक्रित्व काल।।
तप सोलह वर्ष केवली बीस, हजार सु नवसौ चौरासी।
ये वर्ष पुन: पूर्णायु चुरासी, हजार सहस गुण की राशी।।१९।।
श्री मल्लिनाथ कौमार्य काल, सौ वर्ष न उनने राज्य किया।
ब्रह्मचारी रह दीक्षा लेली, छद्मस्थ काल छह दिवस लिया।।
फिर चौवन सहस आठ सौ, निन्यानवे वर्ष ग्यारह महिने।
चौबिस दिन तक केवली आयु, पचपन हजार बरस गिनने।।२०।।
मुनिसुव्रत जिन कौमार्य सात, हज्जार पाँच सौ वर्ष कहा।
पुनि राज्य काल पंद्रह हजार, वर्षों तप ग्यारह माह रहा।।
केवली काल चौहत्तर सौ, निन्यान्वे वर्ष माह इक है।
पूर्णायू तीस हजार वर्ष, वंदत मनुष्य दीर्घायुष हैं।।२१।।
नमिनाथ कुमारकाल पच्चिस, सौ वर्ष राज्य पण सहस वर्ष।
तप नौ बरस केवली दो, सहस चउसों इक्यानवे वर्ष।।
पूर्णायू दश हज्जार वर्ष, जो जिन आयुष को नमते हैं।
वे सब दुर्घटना अपमृत्यू को, टाल चिरायू बनते हैं।।२२।।
जिन नेमिनाथ कौमार्य तीन, सौ वर्ष पुन: नहिं राज्य किया।
ब्रह्मचारी रह दीक्षा ले ली, छप्पन दिन तक तप घोर किया।।
छह सौ निन्यान्वे वर्ष मास, दस चार दिवस केवली रहे।
पूर्णायू एक हजार वर्ष, हम वंदे शोक विषाद दहें।।२३।।
प्रभु पाश्र्वनाथ कौमार्य काल, बस तीस बर्ष नहिं राज्य किया।
प्रभु बाल ब्रह्मचारी दीक्षित, चउ महिने मौन विहार किया।।
उनहत्तर वर्ष आठ महिने, केवलि प्रभु धर्मुपदेश दिया।
सौ वर्ष आयु मैं वंदूं नित, जिससे प्रभु ने शिव सौख्य लिया।।२४।।
महावीर प्रभू कौमार्य काल, बस तीस बरस नहिं राज्य किया।
प्रभु बाल ब्रह्मचारी दीक्षा, लेकर तप बारह वर्ष किया।।
पुनि तीस वर्ष केवलज्ञानी, प्रभु समवसरण में उपदेशा।
पूर्णायु बहत्तर वर्ष नमूँ, नमते मृत्युंजय पद होता।।२५।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।२६।।
नाथ का काल कौमार्य जो वंदते।
देव बालक बनें संग उन खेलते।।तीर्थ.।।२७।।
राज्य का काल जो वंदते भाव से।
इंद्र आज्ञा उन्हों की सदा पालते।।तीर्थ.।।२८।।
जो नमें आप छद्मस्थ के काल को।
वे हि दीक्षा स्वयं ग्राह्य पद प्राप्त हों।।तीर्थ.।।२९।।
केवली काल नमते उन्हों के पुरा।
पग तले स्वर्ण पंकज खिलाते सुरा।।तीर्थ.।।३०।।
पूर्ण आयू प्रभू की सदा जो नमें।
मृत्यु को हन सदा काल तक जीवतें।।तीर्थ.।।३१।।
मल्लि वसुपूज्य सुत नेमि जिनपाश्र्वजी।
वीर जिन पाँच ये ब्रह्मचारी यती।।तीर्थ.।।३२।।
बालयति पाँच तीर्थेश जो वंदते।
ब्रह्म२ ऋषिदेव हों मुक्तिवर होवते।।तीर्थ.।।३३।।
पालने में भि प्रभु ज्ञान महिमा धरें।
साधु दर्शन करत तत्त्व३ शंका हरें।।तीर्थ.।।३४।।
गर्भ में आवते मास छह पूर्व ही।
इंद्र गण खूब उत्सव करें नित्य ही।।तीर्थ.।।३५।।
धन्य हो धन्य हो हे पिता धन्य हो।
धन्य विश्वेश्वरी मात जगवंद्य हो।।तीर्थ.।।३६।।
धन्य तुम रूप सौंदर्य अद्भुत खनी।
तीन जग में किसी से न उपमा बनी।।तीर्थ.।।३७।।
धन्य तुम जन्म कौमार्य अरु राज्य भी।
धन्य छद्मस्थता केवली काल भी।।तीर्थ.।।३८।।
धन्य हैं द्रव्य अरु क्षेत्र शुभ काल भी।
धन्य हैं भाव प्रभु आज तत्काल भी।।तीर्थ.।।३९।।
मैं नमूँ मैं नमूँ आपको भाव से।
‘ज्ञानमती’ पूर्ण हो आप गुण गावते।।तीर्थ.।।४०।।
तीर्थंकर के पुण्य की, महिमा अपरंपार।
गणधर गुरु नहिं कह सके, मैं क्या कहूँ अबार।।४१।।
मृत्युंजय स्तोत्र यह, पढ़ो पढ़ावो भव्य।
ज्ञानमती कैवल्य हो, पावो निजपद नव्य।।४२।।