तर्ज-आए महावीर भगवान………………..
प्रश्न – कैसा उत्सव आया आज, क्यों धूम मची मंदिर में।
बतला दो मेरे भ्रात, क्यों मची मन्दिर में।।
उत्तर – सुन ले मेरी बहना आज, क्यों धूम मची मंदिर में।
है प्रभु पाश्र्वनाथ निर्वाण, का उत्सव इस मंदिर में।।
प्रश्न – निर्वाण कहाँ से पाया, कहाँ प्रभु ने ध्यान लगाया।
क्या बात है उनमें खास, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा.।।
उत्तर – सम्मेदशिखर पर जा प्रभु, पारस ने ध्यान लगाया।
वहीं से प्राप्त किया शिवधाम, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रश्न – भैय्या मैं पूछूँ तुमसे, निर्वाण किसे कहते हैं?
इससे होता है क्या लाभ, क्यों धूम मची मंदिर में।।।।सुन.।।
उत्तर – आठों कर्मों से आत्मा, जब छूट बने परमात्मा।
कहते उसको ही निर्वाण, वही उत्सव है मंदिर मे।।सुन.।।
पद सिद्ध का तब मिल जाता, त्रैलोक्यपती बन जाता।
होता शाश्वत सुख का लाभ, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रश्न – इक बात और बतलाओ, लाडू रहस्य समझाओ।
क्यों इसे चढ़ाते आज, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा.।।
उत्तर – लाडू सर्वोत्तम माना, पकवानों में पकवाना।
यह है सब खुशियों का राज, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रभु के निर्वाण दिवस पर, लाडू ही चढ़ाते हैं सब।
तुम भी लाडू चढ़ा लो आज, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रश्न – इक प्रश्न उठा है मन में, भैय्या पूछूँ तुमसे मैं।
क्यों है पाश्र्व अधिक विख्यात, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा.।।
उत्तर – उपसर्ग सहे पारस ने, इसलिए जान लिया सबने।
क्षमा गुण से हुए विख्यात, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रश्न – किस नगरी में जन्मे वे, क्या नाम पिता माता के।
कहाँ दीक्षा ली थी जाय, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा.।।
उत्तर – काशी में जन्म लिया था, पितु अश्वसेन माँ वामा।
वन अश्व में तप किया जाय, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रश्न – इक प्रश्न सहज उठता है, प्रतिमा पर फण रहता है।
उस फण का क्या है राज, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा.।।
उत्तर – कमठासुर ने पारस पर, उपसर्ग किया जाकर जब।
आये नागयुगल बन देव, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
इक ने फण पर बैठाया, इक ने फण छत्र लगाया।
वही बनी पाश्र्व पहचान, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
प्रश्न – सम्मेदशिखर से कितने, तीर्थंकर मोक्ष गए हैं।
क्यों तीर्थ अधिक वह ख्यात, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा.।।
उत्तर – प्रभु वासुपूज्य आदीश्वर, नेमी व वीर को तजकर।
जिनवर बीस गए निर्वाण, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
वहाँ सबसे ऊँचा मंदिर, हैं पाश्र्व चरण जहाँ सुन्दर।
उससे तीर्थ हुआ विख्यात, वही उत्सव है मंदिर में।।सुन.।।
तिथि मोक्षसप्तमी आई, पूजन इसलिए रचाई।
समझो तुम सब भी यह बात, क्यों धूम मची मंदिर में।।कैसा .।।
निर्वाण महोत्सव करके, सम्मेदशिखर को नम के।
चढ़ाएं लाडू प्रभु के पास, यही उत्सव है मंदिर में।।कैसा .।।
हम यही भावना भाएं, पारस प्रभु के गुण गाएं।
उन सम क्षमा प्रकट हो आज, यही उत्सव है मंदिर में।।कैसा .।।