अध्यापिका– बालिकाओं! तुम्हेँ चंदनबाला अथवा रानी चेलना जैसा आदर्श बनना चाहिये
सुप्रभा- बहन जी! आज हमें आप संक्षेप में चेलना रानी का जीवनवृत्त बतालइए
अध्यापिका– अच्छा सुनो!वैशाली के रजा चेटक की सात कन्याएं थीं,जो रूप और गुणों में सर्वत्र प्रसिद्ध थीं ” उनमें सबसे बड़ी प्रियकरिणी ‘त्रिशला’ थीं,जो कि कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ को ब्याही थीं “जिन्हें भगवान महावीर कि माता होने का सोभाग्य प्राप्त हुआ था
पाँचवी कन्या चेलना,छठी ज्येष्ठा और सातवीं चंदना थीं ” चेलना सम्यकदृष्टि थी और राजा श्रेणिक बौद्ध धर्मानुयायी थे अतः समय-समय पर धार्मिक विसंवाद होते रहते थे,राजा श्रेणिक रानी को बौद्धधर्मी बनाना चाहते थे और रानी चेलना राजा को जैनधर्मी बनाना चाहती थीं
इसी सन्दर्भ में रानी चेलना ने बौद्ध भिक्षुओं को ढोंगी साबित करने हेतु अपमानित कर दिया और उनके रहने की झोपड़ी में आग लगवा दी,तब वो साधु उठकर भागे और राजा के पास शिकायत ले आये ” राजा ने भी प्रतिशोध चुकाने के लिए एक दिन वन में ध्यानस्त एक मुनिराज के ऊपर शिका री कुत्ते छोड़े किन्तु मुनि के ध्यान के प्रभाव से वे कुत्ते शांत हो गए, तब राजा ने क्रोधित होकर मुनिराज के गले में एक मारा हुआ सर्प डाल दिया ” राजा श्रेणिक के उस समय परिणामों के संक्लेश विशेष से सांतवे नरक की तेतीस सागर प्रमाण आयु का बन्द हो गया
अनन्तर तृतीय दिवस रात्रि में राजा श्रेणिक द्वारा रानी को सूचना मिलते ही वह उसी समय राजा के साथ उस स्थल पर आईं और मुनिराज का उपसर्ग निर्वाण किया ” उस समय मुनिराज ने दोनों को समान रूप से “सद्धर्मवृद्धिरस्तु” ऐसा आशीर्वाद दिया ” इस उपसर्ग सहिष्णुता और समभावना से राजा अत्यधिक प्रभावित हुए और सम्यग्दृष्टि बन गये
कालान्तर में उन्हें भगवान महावीर के समवसरण में साक्षात् केवली प्रभु के दर्शन का लाभ मिला ” वे राजा श्रेणिक भगवान महावीर के समवसरण के मुख्य श्रोता थे और उन्होंने भगवान से साठ हजार प्रश्न किये
सुप्रभा- बहन जी ! मुख्य श्रोता का मतलब क्या है ?
अध्यापिका– भगवान की दिव्य वाणी पूर्वाहन्,मध्याह्न और अपराह्न् ऐसे तीन कालों में तीन-तीन मुहूर्त तक खिरती है किन्तु मुख्य श्रोता के आने पर कदाचित् असमय में भी खिर जाती है “
सुप्रभा– बहन जी ! मुख्य श्रोता का मतलब क्या है ?
अध्यापिका– भगवान की दिव्य वाणी पूर्वाहन्,मध्याह्न और अपराह्न् ऐसे तीन कालों में तीन-तीन मुहूर्त तक खिरती है किन्तु मुख्य श्रोता के आने पर कदाचित् असमय में भी खिर जाती है
सुप्रभा- तो क्या भगवान पक्षपाती नहीं होगें ?
अध्यापिका– नहीं बेटी ! भगवान तो वीतरागी हैं,उनके सर्वथा मोह का नाश हो जाने से राग और द्वेष का लेश भी नहीं है ” केवल उन भव्य जीवों के पुण्य के प्रभाव से ही वैसा हो जाता है ” देखो ! विपुलाचल पर्वत पर भगवान का समवसरण अनेकों बार आया था,उसमें भी वहाँ के भव्य जीवों का ही पुण्य विशेष था ” भव्यों के पुण्योदय से ही भगवान का विहार होता है एवम् वाणी खिरती है ” इच्छा से कभी भी नहीं खिरती है “
सुप्रभा- राजा श्रेणिक वीर प्रभु के इतने भक्त होकर भी नरक जाएगे ?
अध्यापिका– हाँ ! आयु के बँधने के बाद छूट नहीं सकती है किन्तु फिर भी राजा श्रेणिक ने प्रभु के समवसरण में सोलह कारण भावनाओं द्वारा अत्यंत विशुद्धि प्राप्त करके तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर लिया है और सांतवे नरक कि तैतीस सागर कि आयु को काम करके प्रथम नरक कि चौरासी हज़ार वर्ष मात्र कि आयु को कर लिया है जो कि माध्यम आयु है ” आज ये राजा श्रेणिक नरक मे है ” २१ हजार वर्ष का पंचम कल,२१ हजार वर्ष का छठा काल पुनः इतना ही छठे और पंचम काल के समाप्त होने पर आगे उत्सर्पिणी काल के चतुर्थ काल कि आदि में ए “महापद्य” नाम के प्रथम तीर्थंकर होंगे ”
इन राजा श्रेणिक ने क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद ही उसे राजगृह नगर के अन्दर और बाहर ऊँचे – ऊँचे अनेक जिनमन्दिर बनवाये थे और उनके भक्त मंत्री,पुरोहित और प्रजाओं ने भी समस्त मगध देश को जिन्मंदिरों से युक्त कर दिया था ” वहाँ नगर,ग्राम,घोष,पर्वतों के अग्रभाग,नदियों के तट और वनों के अन्त प्रदेशों में सर्वत्र जिनमन्दिर ही जिनमन्दिर दिखाई देते थे ” ये परम जिनभक्त हो गये थे “
सुप्रभा– बहन जी ! रानी चेलना को धन्य है कि जिन्होंने अपने पति को मित्यात्व से निकालकर सम्यग्दृष्टि बना दिया और तो क्या,वे आगे महानतीर्थंकर होंगे !
ऐसे ही चंदना भी कुमारावस्था में भयंकर कष्टों से नहीं घबराकर ब्रह्मचर्य की रक्षा करते हुई अनन्तर भगवान के समवसरण में आर्यिका बनकर आर्यिकाओं में शिरोमणि गणिनी हो गई थीं ” ऐसे ही चेलना की सभी बहनों का जीवन आदर्शपूर्ण रहा है ” सचमुच में आजकल हम जैसी कन्याओं के लिए इन सबका उदाहरण रखना बहुत ही जरुरी है “