संग्रहाध्यक्ष, केन्द्रीय संग्रहालय,पन्ना ( मध्यप्रदेश )
सारांश
मध्यप्रदेश के भोपाल सम्भाग में स्थित रायसेन जनपद के विभिन्न ग्रामों से प्राप्त जैन पुरावशेषों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत आलेख में प्रस्तुत किया गया है।
—सम्पादक
मध्यप्रदेश के हृदय भाग में अवस्थित रायसेन जिला भोपाल सम्भाग में २२० ४७’ से २२० ३३’ उत्तरी अक्षांश एवं ७७० २१’ से ७८० ४९’ पर विस्तृत है। इसका अधिकांश भाग मालवा के पठार में है, कुछ भाग नर्मदा घाटी में पड़ता है। रायसेन जिले की सीमायें पश्चिम में सीहोर, उत्तर में विदिशा, पूर्व एवं उत्तर—पूर्व में सागर जिला एवं दक्षिण—पूर्व में नरिंसहपुर एवं दक्षिण में होशंगाबाद एवं सीहोर जिले की सीमा है। रायसेन जिले का नामकरण जिला मुख्यालय में प्रसिद्ध दुर्ग के नाम पर रखा गया, जिसकी स्थापना रायिंसह द्वारा की गयी थी। जिले के भौगोलिक विभाजन में विंघ्य की श्रेणी का भाग, उत्तर का मालवा का पठार, दक्षिण का नर्मदा घाटी का भाग है। िवध्य की श्रेणी का भाग, उत्तर का मालवा का पठार, दक्षिण की नर्मदा घाटी का भाग है। िंवध्य की श्रेणियों में अधिकांशत: ऊँची श्रेणी, गढ़ी क्षेत्र की ७७५.४ मीटर समुद्र तल से ऊँची है। मुख्य िवध्य की श्रेणियों में औसत ऊँचाई ६२५.२ मीटर है। मालवा के पठार पर गौहरगंज, बेगमगंज, तहसीलें हैं। बरेली तहसील का उत्तर—पश्चिम भी शामिल है। नर्मदा घाटी में उदयपुरा एवं सिलवानी तहसील के भाग हैं, इस जिले से प्रागैतिहासिक काल से मराठा काल तक के अवशेष मिले हैं। इस जिले की देवरी जागीर, सिलवानी, रामगढ़, चान्दना, मडखेडा टप्पा, देवरी, उदडमऊ, डूगरिया, मल्हारपुरा, पाटन, भोजपुर, अमरावद, इकलावान, आंकलपुर, पिपलिया गज्जू, टिगरिया, वैजलपुर, खुकरिया, सरई, मुरारी, आनापुरी, सेमरी खोजरा, जामगढ़, नयागांव कला, जीराबाड़ा, बरेली, अमरावदकला, मोडिया, खरगोन, बाड़ी खुर्द, आदि स्थानों से जैन पुरावशेष मिले हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है—
भोजपुर
भोजपुर गौहरगंज तहसील में भोपाल से ३० कि.मी. दूरी पर बेतवा नदी के तट पर स्थित है। यह २३० ०६’ उत्तरी आक्षांश एवं ७७० ३८’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। भोजपुर जैन शिल्प का केन्द्र था। यहाँ जैन मंदिर का बाहरी भाग कालान्तर में पुन: र्नििमत किया गया था। इसके शिखर और गर्भगृह की छत के ध्वस्त होने से अब खुला अन्तराल दिखाई देता है। निश्चित ही राजा भोज के समय का है। यहाँ से जैन तीर्थंकर शान्तिनाथ, सुपार्श्वनाथ तथा पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के अतिरिक्त अन्य जैन प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं। भोजनपुर के जैन मंदिर से सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ की ४.५ मीटर ऊँची र्मूित मिली है, जो कायोत्सर्ग मुद्रा में है। वक्ष स्थल पर मध्य में श्रीवत्स चिन्ह अंकित है। इनका लांछन हिरण पादपीठ के मध्य में उत्कीर्ण है, जिसके पाश्र्व में दहाड़ते हुये सिंह पादपीठ को संभाले प्रदर्शित है। इस प्रतिमा के दोनों पाश्र्व भागों में चंवरधारी अनुचर कटयावलम्बित मुद्रा में अंकित किये गये हैं। पूर्णतया र्मूित शिल्प के मापदण्डों पर बनाई गई है। किन्तु इसके शारीरिक अवयवों के अंकन में अनुपात की कमी है। कुंचित केश सुरुचिपूर्ण ढंग से अंकित किये गए हैं। प्रभामण्डल सादगीपूर्ण और चौकोर है। विशाल और जालागुलि कद, लम्बे कर्ण आदि महापुरुषों से अनुप्रमाणित हैं। पादपीठ के मध्य में अंकित चक्र चक्रवर्ती होने का द्योतक है। जैन ग्रंथों के अनुसार र्मूित राजपुरुष लक्षणों से युक्त है। शान्तिनाथ की प्रतिमा के दाहिने भाग में स्थापित दो मीटर ऊँचाई की कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा भी विशेषरूप से उल्लेखनीय है। इसके हाथ खण्डित हैं, पैरों के पाश्र्व में परम्परागत चंवरधारी अनुचर उत्कीर्ण है। पादपीठ पर दोसिंह अंकित हैं। प्रभामण्डल के स्थान पर परिचयात्मक लक्षण सप्तफण युक्त नाग अंकित हैं, जिसके शीर्ष भाग पर अद्र्धवृत्ताकार अलंकरण युक्त छत्र र्नििमत है, कुंचित केश, दीर्घ कणग् और अर्धोन्मीलित नेत्र इस र्मूित की विशेषताएँ हैं। यह र्मूित परमार काल की है। परमार कालीन भोजपुर के जैन मंदिर में पंचफण युक्त नाग लंबित जैन तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की र्मूित पार्श्वनाथ की र्मूित के तुल्य है। सम्प्रति यह अनुमान है, कि यह अन्यत्र से लाई गई है। भोजपुर के जैन मंदिर के द्वार पर एक अन्य जैन तीर्थंकर की पद्मासन प्रतिमा है। इस प्रतिमा में पाश्र्व के चंवरधारी अनुचर है। शीर्ष भाग में दो अन्य जैन प्रतिमाएँ योगासन में अंकित हैं। सर्वोच्च भाग में छत्र है। लता बल्लरियों से परिकर अलंकृत है, किन्तु यह प्रतिमा लांछन विहीन है, जिससे इसकी पहचान कठिन है, जैन मंदिर में स्थित इस तीर्थंकर प्रतिमा पर परमार वंशीय राजा भोज के शासन काल का लेख है। यहाँ से पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर परमार राजा नरवर्मन के शासन काल का लेख उत्कीर्ण है।
पिपलिया गज्जू
पिपलिया गज्जू गोहरगंज तहसील में मंडीदीप पोलाहा मार्ग पर २ कि.मी. दूरी पर मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह २३० ०५’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७० ०३’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। यहाँ कालीबाई नामक स्थान पर लगभग १३वीं शती ईस्वी की तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। पद्मासन मुद्रा में देव प्रतिमा की भाव भंगिमा, प्रतीक चिन्ह, परिकर की प्रतिमा अस्पष्ट है। सिर पर सर्पफणों के अवशेष दृष्टिगत हैं। वितान पर दोनों और हस्ति का अंकन है जिसके आधार पर पार्श्वनाथ प्रतिमा निरूपित की जा सकती है।
उड़द मऊ
उड़द मऊ उदयपुरा तहसील में उदयपुरा से ७ कि. मी.दूरी पर स्थित है यह २३००७’ उत्तरी अक्षांस ७८० ०२’ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। गांव में माताबाई के चबूतरे पर १२वीं १३वीं शती ईस्वी के जैन तीर्थंकर पादपीठ का भाग ६० १५ सेंमी. जिसमें बीच में देवी प्रतिमा पादपीठ (१६६ X ८३ X ६३ सें. मी.) में बीच में गज का अंकन है। बरेली—बरेली इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है, जो रायसेन से ८० किमी. दक्षिण पूर्व में घोर नदी के तट पर स्थित है। यह २३०००’ उत्तरी अक्षांस ७८० १८’ पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। यहां विश्राम भवन के पास तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा (१६र्६ ८र्३ ६३ सें. मी.) रखी है। यह प्रतिमा बलुआ पत्थर पर र्नििमत लगभग १० वीं शती ईस्वी की है। कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित तीर्थंकर प्रतिमा का निचला भाग भग्न है। पादपीठ के नीचे दो सिंह विपरीत दिशा में मुख किए बैठे हुए हैं। दाहिने पाश्र्व में परिचारक खड़ा है, वितान में कायोत्सर्ग जिन प्रतिमा दोनों ओर परिचारकों सहित खड़ी है। इसके अलावा दोनों और विद्याधर युगल, प्रभा मण्डल, अभिषेक करते गजराज, पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा, त्रिछत्र आदि प्रतिमाओं का अंकन है। तीर्थंकर के सिर के कुन्तलित केश जो कंधे तक फैले होने के कारण यह प्रतिमा तीर्थंकर आदिनाथ की है।
देवरी
देवरी उदयपुरा तहसील में उदयपुरा से १९ किमी. उत्तर पूर्व में स्थित है। यह २३००८’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०४४ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में तालाब के किनारे माताबाई के चबूतरे पर लगभग १२ वीं, १३वीं शती ईस्वी की तीर्थंकर प्रतिमा (३५ २४ १५ सें. मी.) रखी है।
अमरावद कला
अमरावद कला बरेली तहसील में बरेली से २६ कि.मी. पश्चिम में स्थित है। यह २२० ५८’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०.०६’ पूर्वी देशान्त पर अवस्थित है। गांव में छोटे भैय्या के घर से खुदाई में चार मस्तक रहित तीर्थंकर प्रतिमायें मिली हैं, जो पद्मासन तीर्थंकर (६ ५२ ३२ से. मी.) पद्मासन तीर्थंकर (५६ ३५ ३८ सें. मी.) पद्मासन तीर्थंकर (६२ ५८ ३४ सें. मी.) एवं मस्तक रहित तीर्थंकर प्रतिमा है। प्रतिमा लगभग ७वीं शती ईस्वी की है। पण्डा बाबा के चबूतरे पर तीर्थंकर प्रतिमाओं युक्त स्तम्भ (१८ ४५ ४५ सें. मी.) १२वीं शती ईस्वी का है। गांव में दुर्गा माता के चबूतरे पर बलुआ पत्थर पर र्नििमत प्रतिमाएं जिनमें लगभग १२ वीं शती ईस्वी की प्रतिमा तीर्थंकर का ऊपरी भाग तथा दरयाव सिंह ठाकुर की बाखल से लगभग १२ वीं शती ईस्वी की बलुआ पत्थर पर र्नििमत जैन मंदिर की द्वारशाखा (११ ३५ सें. मी.) ललाट बिम्ब पर तीर्थंकर पद्मासन में बैठे हैं, रखा है।
खुकरिया
खुकरिया गौहरगंज तहसील में खुकरिया उमरावगंज से ४ कि. मी. दूरी पर पूर्व में स्थित है। यह २३० ११’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७० ३८’ पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। गांव के बाहर मंदिर के समीप एक पेड़ के नीचे एक तीर्थंकर की यह प्रतिमा मध्यकालीन प्रतीत होती है।
टिगरिया
टिगरिया गौहरगंज तहसील में औबेदुल्लागंज से दक्षिण पश्चिम दिशा में कच्चे मार्ग पर ३ किमी. दूरी पर एवं छोटी पहाड़ी पर बसा है, यह २२० ५७’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७० ३५’ पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। इस गांव के दक्षिण—पूर्वी ओर वान्दरावान नामक स्थान पर प्राचीन मंदिर के गर्भगृह के सामने रखी तीर्थंकर महावीर (५४५ ११ सें. मी.) प्रतिमा हल्के पीले बलुआ पत्थर पर र्नििमत है। देव पद्मासन में है। इसका अग्रभाग आंशिक भग्न है। देव के दोनों ओर चांवर धारिणी नीचे पीठिका पर मध्य में धर्मचक्र जिसके दोनों ओर यक्ष मातंग एवं दायीं ओर देवी यक्षी सिद्धायिका का अंकन है।
खरगोन
खरगोन बरेली तहसील में बरेली से १७ कि. मी. दूरी पर स्थित है। यह २३० ०६’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८० १९’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में एक मढ़िया में लगभग १०वीं ११वीं शती ईस्वी की बलुआ पत्थर पर र्नििमत प्रतिमा रखी है, जिसमें पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा (७र्७ ७र्३ २० सें. मी.) तीर्थ।कर के पाश्र्व में चामरधारिणी, प्रभामण्डल से अलंकृत है। गांव में अमली के पेड़ से नीचे लगभग ११वीं १२वीं शती ईस्वी की बलुआ पत्थर पर र्नििमत पद्मासन में बैठी तीर्थंकर प्रतिमा (२१र्० १०र्७ ३८ सें. मी.) आदिनाथ की है। सिर के पीछे अलंकृत प्रभामण्डल, लंबे कर्णचाप कंधे तक फैले हुए है। पादपीठ पर विपरीत दिशा में मुख कियेसिंह प्रतिमा अंकित है। वितान में मालाधारी विद्याधर, त्रिछत्र अंकित है। नदी के किनारे पद्मासन में तीर्थ।कर (३ २४ १३ सें. मी. शंकरजी के स्थान पर पेड़ के नीचे तीर्थंकर प्रतिमा (५८ ५६ १९ सें. मी.) प्राचीन टीलों के निकट ग्वाल बाबा के नाम से ज्ञात स्थल पर तीर्थ।कर के ऊपर का भाग छत्र सहित (७५ ३७ २० सें मी.) पद्मासन में बैठे तीर्थंकर के ऊपरी भाग में प्रभामण्डल्, दोनों विद्याधर युगल का अंकन है।
चान्दना
चान्दना रायसेन तहसील में है। यह हिम्मतगढ़ के पास स्थित है। यह २३० २५’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७००४’ पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। यहाँ से तीर्थंकर प्रतिमा मिली है, जो पद्मासन में बैठी तीर्थकर प्रतिमा है, जो परमार कालीन है।
राजगढ़
रामगढ़ सिलवानी तहसील में बम्होरी से ३ कि. मी. उत्तर की ओर स्थित है। यह २३० १३’ उत्तरी अक्षांस ७८०१२’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव के उत्तर की ओर पहाड़ी पर ११वीं १२वीं शती ईस्वी का लाल बलुआ पत्थर पर र्नििमत स्तम्भ खण्ड (८र्० ८र्५ ३ सें. मी.) में जैन तीर्थकर के पैर का भाग एवं पादपीठ पर मानवाकार गरूड़ासीन जैन यक्षी चव्रेश्वरी का अंकन है। चव्रेश्वरी के मुख हाथ व पैर भग्न है।
भोडिया
भोडिया बरेली तहसील में बरेली से १३ कि.मी. उत्तर पूर्व में स्थित है। यह २३० ०४’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०१८’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में तालाब के किनारे १२वीं शती ईस्वी की पद्मासन में तीर्थंकर प्रतिमा (३८ ३७ १३ सें. मी.) तीर्थंकर पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में अंकित है। पाश्र्व में दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन प्रतिमा हैं पादपीठ पर विपरीत दिशा में मुख कियेसिंह का अंकन है।
मडखेड़ा टप्पा
मडखेडा टप्पा बेगमगंज तहसील में सुनहरा के पास स्थित है। यह २३०३०’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८० २४’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में परमार कालीन तीर्थंकर प्रतिमा है।
आंकलपुर
आंकलपुर गोहरगंज तहसील में होशंगाबाद—भोपाल पर औबेदुल्लागंज से ७ किमी. पूर्व में सडक के किनारे बसा है। गांव में स्थित प्राथमिक पाठशाला के समीप पेड़ के नीचे यक्षी पद्मावती प्रतिमा (७र्५ ५र्० १८ सें मी.) लगभग १६वीं शती ईस्वी की बलुआ पत्थर पर र्नििमत है। स्थानक मुद्रा में चतुर्हस्था देवी के हाथों के आयुध क्रमश: तलवार, ढाल एवं दो हाथ भग्न है। जटा मुकुट के ऊपर सर्पफण भग्न रूप से र्दिशत है। यद्यपि देवी सर्वाभूषण से शोभित रही है। इस देवी प्रतिमा के आयुध प्रतिमा शास्त्रीय ग्रंथों में दिये लक्षणों से साम्य नहीं रखते हैं, तथापि सिर पर फणों का छत्र पार्श्वनाथ की पक्षी पद्मावती होना इंगति करता है।
जामगढ़
जामगढ़ बरेली तहसील में बरेली से १५ किमी. उत्तर में स्थित है। यह २३००७’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०२०’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। यहां पर १२वीं १३वीं शती ईस्वी का जैन मंदिर स्थित है। यहाँ मात्र एक जैन मंदिर है, जो मुस्लिम काल में भी अस्तित्व में बना रहा।
अमरावद
अमरावद गोहरगंज तहसील में रायसेन से ३० किमी. की दूरी पर स्थित है। यह २३० १८’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७० ५८’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। यहाँ से प्राप्त तीर्थंकर आदिनाथ प्रतिमा (७१ ६३ १८ सें. मी.) नेमिनाथ प्रतिमा (७१ ५३ २७ सें. मी.) तीर्थंकर प्रतिमा (७र्० ७र्० ३८ सेंमी.) गोमंद अम्बिका (६२ ४८ १८ सें. मी.) आदि जिला संग्रहालय विदिशा में सुरक्षित हैं।
सरई
सरई गोहरगंज तहसील में औबेदुल्लागंज गोहरगंज मार्ग में औबेदुल्लागंज से लगभग ५ किमी. दूरी पर तामोट से २ किमी. पूर्व में स्थित है। यह २२० १५’ उत्तरी अक्षांस ७७०३८’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव के बाह्य भाग में पहाड़ की तलहटी में एक स्थान पर लगभग १२वीं शती ईस्वी की यज्ञी अम्बिका (८ ४ २५ सेंमी.) सफेद बलुआ पत्थर से र्नििमत यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। यह जैन तीर्थकर नेमिनाथ की शासन यज्ञी अम्बिका की प्रतिमा है। आम्र वृक्ष की शाखा के नीचे जटा मुकुट, चक्र, कुण्डल एवं आभूषणों से शोभित देवी बायें हाथ में एक शिशु एवं दायीं ओर गोद में अन्य शिशु को लिये है। ये उनके दोनों शिशु प्रियंकर एवं शुभंकर का अंकन है। प्रतिमा आंशिक भग्न है।
पाटन
पाटन गैरतगंज तहसील में हरदोर से २ किमी. पश्चिम में स्थित है। यह २३०३१’ उत्तरी अक्षासं एवं ७८०१५’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में पीपल के पेड़ के नीचे यक्षी अम्बिका की प्रतिमा रखी है। अम्बिका प्रतिमा (७३ ४५ १५ सेंमी.) द्विभुजी देवी के दाहिने हाथ में आम्र गुच्छ, बांये हाथ में बाल को पकड़े हुए है। नीचेसिंह एवं दोनों ओर एक—एक पुरुष प्रतिमा रखी है। प्रथामण्डल के दोनों ओर जिन पद्मासन में बैठे है। बलुआ पत्थर पर र्नििमत प्रतिमा १२वीं शती ईस्वी की है। यहाँ से तीर्थंकर प्रतिमा (३६ २५ १२ सेंमी.) तीर्थंकर शांतिनाथ (५२ २५ २४ सेंमी.) तीर्थंकर मस्तक (३४ ३ १५ सेंमी.) तीर्थंकर प्रतिमा ( २४ २२ २१सेंमी.) तीर्थंकर प्रतिमा सिर विहीन (२९ २८ १५ सेंमी.) तीर्थंकर कायोत्सर्ग प्रतिमा (६४ २६ २० सेंमी.) है।
इकलावन
इकलावन मोहरगंज तहसील में औबेदुल्लागंज से ३ किमी. पूर्व में सड़क से लगभग ३ किमी. दक्षिण दिशा में स्थित है। यह २२०५८’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७०३७’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में मनोहर नागर के खेत में अम्बिका प्रतिमा (८४ ४ १२ सेंमी.) लगभग १३वीं शती ईस्वी की है। स्थानक आसन में द्विभंग मुद्रा में देवी आम्रवृक्ष के नीचे बांये हाथ से बड़े बालक प्रियंकर का हाथ पकड़े हैं, दांयी गोद में अन्य शिशु शुभंकर दृष्टिगत है। दांयी ओर नीचे एक उपासक है। देवी आभूषणों से शोभित है। मुख घिसा हुआ है।
बैजलपुर
बैजलपुर गोहरगंज तहसील गोहरगंज—जबलपुर मार्ग पर गोहरगंज से २ किमी. पश्चिम में स्थित है। यह २३००२’ उत्तरी अक्षासं एवं ७४०४१’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में देव स्थान पर लगभग १२वीं १३वीं शती ईस्वी की तीर्थंकर प्रतिमा (६र्० े ३५ सेंमी.) बलुआ पत्थर पर र्नििमत पद्मासन में तीर्थंकर का ऊपरी परिकर का भाग भग्र है। नीचे पीठिका पर लांछन अस्पष्ट है। परिकर एवं पीठिका पर लघु प्रतिमाएं जिसमें देव के यक्ष—यक्षी रहे हैं। पूर्णत: अस्पष्ट है।
डूगरिया
डूगरिया उदयपुरा तहसील में देवरी से ११ किमी. दूरी पर स्थित है। यह २३०१०’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०४४’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। यहां गांव से २७ किमी. दूर उत्तर में ऊँचे पठार पर लगभग ११वीं १२वीं शती ईस्वी की प्रतिमा रखी है, जिनमें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा जिसके अलंकृत वितान है। दोनों भुजा भग्र अवस्था में है, ऊपर वितान पर चारों ओर छोटे—छोटे जैन तीर्थंकर दिखाये गये है। सुपार्श्वनाथ के सिर के ऊपर त्रिछत्र है। प्रतिमा दांये—बांये परिचारिकाओ का अंकन है। प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर पर र्नििमत है।
नया गांव कला
नया गांव कला बरेली तहसील में बरेली के निकट ३ किमी. पूर्व दिशा में स्थित है। यह २२०६०’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०१६’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में पूर्व दिशा की ओर खंडापति की मढ़िया स्थित है, जिसमें १७वीं शती ईस्वी की बलुआ पत्थर पर र्नििमत है। स्थापत्य खण्ड का निचला देव कोष्ठका स्तम्भ है जिसमें दो कायोत्सर्ग मुडा जैन प्रतिमा (२र्५ १र्६ ८ सेंमी.) है।
सेमरी खोजरा
सेमरी खोजरा बरेली तहसील में बरेली से २८ कि.मी. पश्चिम में स्थित है। यह २२०५६’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८००५’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में १४वीं शती ईस्वी की तीर्थंकर की पद्मासन प्रतिमा (१र्८ १० सेंमी.) है। श्री मनबोधसिंह के खेत में बलुआ पत्थर पर र्नििमत लगभग १४ वीं शती ईस्वी की प्रतिमाएं रखी हैं जिनमें प्रथम कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा (७र्८४र्७११ सेंमी.) तीर्थंकर का सादा पादपीठ है, जिस पर र्मूित लेख उत्कीर्ण है। दोनों पाश्र्व में पद्मासन में तीर्थंकर बैठे हैं। बितान में सात तीर्थंकर प्रतिमायें उत्कीर्ण है।
जीराबाडा
जीराबाडा बरेली तहसील में नया गांव खुर्द के पास स्थित है। यह २३००५’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०२०’ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। गांव में १०वीं शती ईस्वी की बलुआ पत्थर पर र्नििमत जैन मस्तक (३र्० २० सेंमी.) है।
बाडी खुर्द
बाडी खुर्द बरेली तहसील में बरेली से १८ किमी. पूर्व में स्थित है। यह २३००२’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०२०’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। यहां आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर बाडी ग्राम के किले के निकट प्राचीन जैन मंदिर है, इसे जैन अतिशय क्षेत्र माना जाता है। यद्यपि मंदिर का पीछे का भाग भग्र है, जो द्वितलीय था, मंदिन मूलत: १२वीं १३वीं शती ईस्वी का रहा है। यहां पर स्थित कलाकृतियां इसी काल की है। मुख्य कक्ष में स्थापित जैन तीर्थंकर प्रतिमा विक्रम संवत् १२८१ (ईस्वी सन् १२२४) कालेख है, जिसमें विक्रमादित्य की पत्नी आकलय देवी द्वारा प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख है। यहां पर स्थित प्रतिमाओं में प्रथम कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा है, जिसका आकार है। प्रतिमा १२वीं शती ईस्वी की है। कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर के पाश्र्वचरों में चाकर धारी सेविका यक्ष—यक्षी विद्याधर आदि का परिकर पीठिका एवं वितान पर आलेखन है। वितान पर व्यालाकृतियां भी अंकित है। छत्रावली के ऊपर बनी राधिकाओं में ध्यानस्थ जिनाकृतियां अंकित है। मालाधारी गंधर्व गजारोही भी शिल्पांकित है। सफेद बलुआ पत्थर पर र्नििमत यह प्रतिमा परमारकला की महत्वपूर्ण देन है। द्वितीय प्रतिमा भी कायोत्सर्ग तीर्थंकर की है, जिसका आकार है। बलुआ पत्थर पर र्नििमत त्रितीर्थी कायोत्सर्ग प्रतिमा का काल शैलीगत आधार पर १२ वीं शती ईस्वी की है। कायोत्सर्ग प्रतिमा में तीन तीर्थंकर अंकित हैं। मध्य के तीर्थंकर के दोनों ओर नीचे चांवरधारी एवं छत्रावली के दोनों ओर मालाधारी एवं वितान पर पद्मासनस्थ तीर्थंकर के दोनों ओर गजारोही अंकित हैं। गजों के नीचे मृदंगवादक का आलेखन है। इसके अतिरिक्त तीन सिरविहीन पद्मासस्थ तीर्थंकर प्रतिमाएं लगभग १२वीं शती ईस्वी की है, इसका आकार क्रमश: २७ सेमी. है। प्रतिमाएं बलुआ पत्थर पर र्नििमत है, अन्य कलाकृतियों में मुख्य द्वार शाखा का पाश्र्व भाग (५र्० ४र्६ ३४ सेंमी.) एवं चौकोर स्तम्भ में उत्कीर्ण शिला लेख है। मुख्य मंदिर के कक्ष में जैन तीर्थंकर की निम्न प्रतिमाएं स्थापित है। पद्मासन तीर्थंकर अभिलिखित, पार्श्वनाथ, कायोत्सर्ग एवं छोटी दो तीर्थंकर की प्रतिमायें लगभग १७वीं १८वीं शती ईस्वी की है।
मल्हारपुरा
मल्हापुरा गैरतगंज तहसील में गैरतगंज से दक्षिण—पश्चिम में ३० किमी. की दूरी पर रायसेन से पूर्व में १४ किमी. की दूरी पर स्थित है। यह २३०१७’ उत्तरी अक्षांस एवं ७७०१६’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित हैं। यह विशाल जैन प्रतिमा ग्राम के पास जंगल में स्थित है। संभवत: यह जैन प्रतिमा जो आज भग्रप्राय है एक समय अलंकृत एवं सुन्दर प्रतिमा रही है।
देवरी जागीर
देवरी जागीर सिलवानी तहसील में मनकापुर से लगभग एक किमी. पूर्व की ओर कच्चे मार्ग पर स्थित है। यह २३०१५’ उत्तरी अक्षांस एवं ७८०३२’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। यहां से किसी जैन मंदिर के वितान का भग्र शिल्प खण्ड मिला है, जिसमें पद्मासन मुद्रा में महावीर तथा उनके पाश्र्व में दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थकर प्रतिष्ठित है। प्रतिमा के नीचे कलाकृतियाँ का अंकन है। महावीर की मुखाकृति के पीछे प्रभामण्डल का आलेखन है। हल्के लाल बलुआ पत्थर खण्ड पर ३६ १९ १३सेंमी. आकार में र्नििमत होकर यह प्रतिमा लगभग ११वीं १२वीं शती ईस्वी की प्रतीत होती है। यहीं से ललितासन मुद्रा में अंकित देवी यक्षी अम्बिका अपने दाहिने हाथ में पद्म तथा बायें हाथ से बांयी जंघा पर बैठे हुए पुत्र प्रियंकर को सम्हाले हुये है। प्रियंकर देवी के उरोज को स्पर्श कर रहा है, जिससे पुत्र के वात्सल्य भाव व्यक्त होते हैं। देवी के मस्तक के ऊपर तथा पाश्र्व में आम्र लुम्बी का आलेखन है। देवी की केश राशि कुन्तलित होकर जुड़े में व्यवस्थित है। आभूषणों में देवी ने कुण्डल, हारावली, स्नतसूत्र दोनों उरोज के मध्य में लटकता हुआ तरल सूत्र, कटिसूत्र तथा पायजेब इत्यादि धारण किये है। प्रतिमा वितान पर दोनों ओर मालाधारी एवं तीर्थकर की प्रतिमाये शिल्पांकित है। पाठपीठ पर परिचारिका तथा बायी ओर व्याल तथा मध्य में महावीर स्वामी का चित्रण है। बलुआ पत्थर खण्ड पर ७३ ५५ १७ सेंमी. आकार में र्नििमत यह प्रतिमा लगभग ११वीं १२वीं शती ईस्वी की प्रतीत होती है। प्रतिमा विज्ञान की दृष्टि से यह प्रतिमा उच्च स्तरीय है। देवी का सौम्य भाव तथा पुत्र की वात्सल्य को प्रर्दिशत करने के लिये शिल्पी ने बड़ी तन्मयता तथा निपुणता से तराशा है।
मुरारी
मुरारी गोहरगंज तहसील में गोहरगंज—भोजपुर मार्ग पर आशापुरी से २ किमी. दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यह २३००५ उत्तरी अक्षांस एवं ७७०३९’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। गांव में माताबाई नामक स्थान से प्राप्त तीर्थंकर पद्मासन में हैक्। अलंकृत प्रभामण्डल है, दांये बांये चांवरधारी है। पीठिका का चिन्ह स्पष्ट है एवं अन्य तीर्थकर प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। वितान पर तीर्थकर के ऊपर छत्र जिसके दोनों ओर मालाधारी युग्म हैं। नीचे चंवरधारी हैं।
आशापुरी
आशापुरी गोहरगंज तहसील में गोहरगंज से उत्तर—पश्चिम में करीब ७ किमी. दूरी पर है। यह २२००५’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। आशापुरी से जैन मंदिर के अवशेष सतमसिया से मिले है। परमार कालीन मंदिर स्थापत्य की यह एक—एक अनुपम कृति रही होगी। इसके गर्भगृह के चारों ओर बाह्य दीवारों पर स्तम्भों पर जैन शासन देवताओं यक्षिणियों की प्रतिमाएं बनी थी। इनमें चव्रेश्वरी, गोमेघ—अम्बिका की प्रतिमा महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त जैन प्रतिमाएं जैन चतुष्टिका आदि भी प्राप्त हुई है। इस मंदिर के प्रागंण में महाकाथिक तीर्थंकर प्रतिमा स्थापित रही होगी, जिसे सम्प्रति मंदिर के अवशेषों के समीप ही देखा जा सकता है। आशापुरी से तीर्थंकर आदिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में पांच प्रतिमाएं एक आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा चतुष्टिका जिसके चारों ओर पद्मासन में तीर्थंकर पार्श्वनाथ अंकित है। यक्षी चव्रेश्वरी प्रतिमा, यक्ष—यक्षी गोमेद—अम्बिका, यक्षी अम्बिका प्रतिमा आदि उल्लेखनीय हैं।
सिलवानी
सिलवानी इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है। जो रायसेन से १०० किमी. उत्तर पूर्व में स्थित है। यह २३०१८’ उत्तरी अक्षास एवं ७८०२९’ पूर्वी देशान्तर पर अवस्थित है। इस गांव के मध्य में लगभग १५वीं शती ईस्वी में र्नििमत जैन मंदिर है। इसमें पार्श्वनाथ, बाहुबली एवं महावी स्वामी की प्रतिमायें स्थापित हैं। यहाँ स्थित जैन मंदिर एक जगति पर बना है जो अद्र्ध पत्तीनुमा वंâगूरों से अलंकृत है। दरवाजे के सामने दालान है जो दोनों ओर चार—चार स्तम्भों पर आधारित है। ऊपर गजपृष्ठाकृत शिखर है, जिसके तीन दरवाजे मेहरावदार हैं, मंदिर में दो गर्भगृह है, जो जंघा गुम्बदाकार शिखर आमलक एवं कलश से अलंकृत हैं। मंदिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित हैं, तीर्थकर के सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्ण चाप, वक्ष पर श्रीवत्स सिर के ऊपर ग्यारह फण की नाग मौलि है। पाश्र्व में परिचारक खड़े हैं। लगभग १५वीं शती ईस्वी की प्रतिमा काले पत्थर पर र्नििमत है। सामान्यत: ग्यारह फन नाग मौलि युक्त प्रतिमा नहीं मिलती है इस कारण यह प्रतिमा प्रतिमा विज्ञान की दृष्टि से दुर्लभ है। ग्यारह नागफण युक्त प्रतिमा का उल्लेख डॉ. मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी ने जैन प्रतिमा विज्ञान में एवं बी. सी. भट्टाचार्य ने दि. जैन आईकनोग्राफी में वर्णन किया है। अत: यह प्रतिमा विशेष महत्वपूर्ण है। यहां से प्राप्त तीर्थकर आदिनाथ के पुत्र बाहुबली की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है, सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कर्णचाप हैं। हाथ एवं जंघाओं पर बेल (द्राक्षा) बल्लरी) उनके चरणों ओर भुजाओं का आलिंगन कर रही है। बाहुबली में दांये बांये कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर प्रतिमायें है। सपेâद बलुआ पत्थर पर र्नििमत प्रतिमा लगभग मध्यकालीन प्रतीत होती है। मंदिर की एक वेदी पर सपेâद पत्थर पर र्नििमत तीर्थकर महावीर की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में तीर्थंकर के सिर पर कुन्तलित केश, लम्बे कणग्चाप वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है, नीचे पादपीठ पर ध्वज लाछनसिंह का अंकन है। प्रतिमा मध्यकालीन प्रतीत होती है। रायसेन जिले के उपरोक्त पुरातत्वीय एवं ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त जैन पुरावशेष स्थापत्य एवं र्मूित कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, प्रस्तुत आलेख में जैन पुरावशेषों का सूचना मात्र विवरण है। उक्त स्थलों का विस्तार से अध्ययन किया जाय तो जैन पुरातत्व पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ सकता है।