स्नेह, बातों में नहीं आँखों में रहता है गुरुओं का वात्सल्य हाथों में रहता है।
हाँ! इसीलिए तो वे नम्रीभूत शिष्यों को अपने वरदहस्त से आशीर्वाद देते हैं।
वही तो उनका स्नेह है, प्रेम है वात्सल्य है इसकी पहचान भी कुछ ही लोग करते हैं।