पूज्यश्री का नाम | परम पूज्या आर्यिका १०५ श्री विज्ञानमति माताजी |
जन्मस्थान | भिण्ड —उदयपुर, (राज.) |
जन्मतिथि व दिनाँक | मिनि आश्विन शुक्ला पंचमी सन् १९६३ |
जाति | नरिंसह पुरा |
गोत्र | हाथी |
माता का नाम | श्रीमति कमला जी |
पिता का नाम | श्री बालूलाल जी |
लौकिक शिक्षा | १० वीं कक्षा पास |
आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत/प्रतिमा-व्रत ग्रहण करने का विवरण | र्आियका विशालमति माताजी की दीक्षा पर ७ मार्च,१९८४ इसी समय में ५ र्पूिणमा, ९ प्रतिमा व्रत ग्रहण किये |
द्वारा | आचार्य कल्प श्री विवेकसागर जी महाराज (समाधिस्थ) |
आर्यिका दीक्षा तिथि, दिनाँक व स्थान | माद्य शुक्ला द्वादसी, २ फरवरी, १९८५ कूकनवाली (राज.) |
आर्यिका दीक्षा गुरु | आचार्य कल्प श्री विवेकसागर जी महाराज (समाधिस्थ) |
आचार्य/उपाध्याय/गणिनी आदि पदारोहण तिथि व स्थान | गणिनी पद तीन बार मिलने पर भी ग्रहण नहीं किया। |
साहित्यिक कृतित्व | पद्यात्मक—तत्त्वार्थ सूत्र विधान, सम्मेद शिखर विधान, चौंसठ ऋद्धि विधान, पाश्र्वनाथ विधान, शांति विधान, भूषणद्वय महाकाव्य, भ्क्ति पुंज अंजुबा, सम्मेदशिखर महात्म्य पूजन मंजूषा, मनोरमा चारित्र।गद्यात्मक—तत्त्वार्थ सम्मूषा १, २, अच्छी सास बहू केसी अनर्थदण्ड क्या, समझदार बेटा, विवेक मंजूषा |
अन्य विशेष जानकारी | प्रश्नों का जीवनभर के लिए त्याग, १०८ बेला करने का संकल्प, २५ बार ५—५ उपवास करने का संकल्प, अध्ययन साधना तमिलनाडु, सहित संपूर्ण क्षेत्र की वंदना वर्षायोग को छोड़कर किसी गाँव में २७ दिन से ज्यादा नहीं तप—त्याग मधुर, पौराणिक शैली में प्रवचन, गुरुभक्ति, चटाई का त्याग,ज्ञान—ध्यान मत्र जीवन प्रत्येक क्षण स्व—पर कल्याण परक, चिंतन मनन। |