एक गाँव के चारों तरफ किलेनुमा दीवार बनी हुई हैं प्राचीन काल में यहाँ एक विशाल नगरी थी जिसे गन्धर्वपुरी के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहते हैं कि किसी के श्राप द्वारा इस नगरी को उल्टा कर दिया गया तथा आज भी जो अवशेष खुदाई के दौरान निकलते हैं वे उल्टे निकलते हैं। ग्राम के समीप ही कालिया कोट करके एक चट्टान है जो गाँव के उत्तर में है। यह स्थान आज भी ग्रामवासियों द्वारा चमत्कारिक एवं आश्चर्यजनक माना जा रहा है। समीप ही ग्राम के पूर्व में एक पहाड़ी है जिसे गोराजी की टेकरी के नाम से जाना जाता है। यह टेकरी र्धािमक दृष्टि से आज भी विशेष महत्व रखती है। इस पहाड़ी पर जगत भेरू एवं भगवान श्री रामचन्द्र जी के पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं धर्म में आस्था रखने वाले लोग दूर—दूर से उन्हें पूजने के लिए आते हैं। धसोई ग्राम के दक्षिण में ४ कि. मी. की दूरी पर खेजड़ीया नामक ग्राम है। इस ग्राम के पास ही एक पहाड़ी है जा कि पुरातत्व की दृष्टि से अपना विशेष महत्व रखती है। इस पहाड़ी को काटकर अलग—अलग दो—तीन मीटर की दूरी पर करीबन ७०—८० कमरे नुमा गुफाएँ बनी हुई हैं। उक्त कमरों में कमरे हैं जिनमें दरवाजे व आलमारियाँ भी हैं। इन गुफाओं के सामने करीबन २ मीटर अर्धव्यास का तथा ५ मीटर ऊँचा एक शिविंलग एक ही पत्थर पर बना हुआ है। ये गुफाएँ एवं शिविंलग अपने प्राचीन गौरव की गाथा गा रहे हैं। आज ये प्राचीन धरोहर रख—रखाव के अभाव में नष्ट होती जा रही है तथा कुछ अमूल्य सामग्री चोरी—छिपे इधर—उधर ले जायी जा रही है। अगर पुरातत्व विभाग इस ओर ध्यान देकर खुदाई करे तो कई रहस्यमय गुत्थियाँ सुलझ सकती हैं तथा कई प्राचीन अमूल्य वस्तुएँ प्राप्त की जा सकती हैं एवं शोध के लिए एक नई कड़ी जुड़ सकती है। विभाग की लापरवाही के कारण यह क्षेत्र आज तक उपेक्षित रहा है। पुरातत्व विभाग को चाहिए कि इस क्षेत्र का सर्वे करके अपने अधीन ले एवं इधर—उधर बिखरी सामग्री को इकट्ठा करें ताकि इस प्राचीन धरोहर को नष्ट होने से बचाया जा सके।
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