काम वेदना से पीड़ित होकर सार्वजनिक व्यभिचारिणी स्त्रियों के पास जाना वेश्या सेवन है। वेश्यागामी लोग व्यभिचारी, लुच्चे, नीच, चाण्डालादि कहलाते हैं क्योंकि वेश्या सभी नीच लोगों के साथ समागम करती हैं। वे इस भव में कीर्ति-यश-धन का नाश करके दुर्गति में जाते हैं। उदाहरण-चम्पापुर के सेठ भानुदत्त एवं स्त्री देवीला के एक धनाढ्य पुत्र चारुदत्त को कौन नहीं जानता? जो भोला भाला एवं धार्मिक संस्कारों से परिष्कृत था परन्तु कुछ निमित्तों को पाकर वेश्या व्यसनी बन गया अर्थात् चाचा विषयों में फंसाने हेतु वेश्या के पास ले गये। चारुदत्त पत्नी माता-पिता, मित्रादि के समझाने पर भी वेश्या व्यसन को नहीं छोड़ सका। उसे यह लगने लगा कि सिर्फ बसंतसेना वेश्या ही मुझे प्यार करती है, बाकी सब झूठा प्रेम करते हैं। जब चारुदत्त का सारा पैसा वेश्या ने अपने कब्जे में ले लिया तो धीरे-धीरे प्रीति कम करने लगी। एक दिन स्वयं को खतरा समझकर बसंतसेना की मां ने रात्रि में सोते में बंधवाकर उसे पाखाने में डलवा दिया। सुबह नौकरों ने देखा कि सुअर उसका मुख चाट रहे हैं। उसे पाखाने से निकालकर खूब निंदा की अत: बंधुओं! तन-मन-धन तीनों को कष्ट देने वाले वेश्यागमन से सदा दूर रहना चाहिए। इसी पर एक लौकिक दृष्टांत है- एक वेश्यागामी थानेदार था। उसका किसी वेश्या से घनिष्ट प्रेम हो गया तो एक वर्ष तो उस गांव में गुजर गया, बाद में तबादले का हुकम आ गया। अब वह था बड़ा परेशान, थानेदार उसे मनावे कि तू चल, कोई दूसरे के साथ कैसे चल दें। बड़ी चिंता में था कोई समझदार दूसरी औरत वहाँ रहती थी जिससे थानेदार का परिचय था। उस औरत से पूछा कि क्या बात है, क्यों दुखी हो? थानेदान ने सारी बात बता दी कि यह नहीं चलने को राजी होती है। अच्छा मै। समझा दूंगी उस कुटिल (वेश्या) के पास वह स्त्री गई। दो तीन दिन रही बड़ी सेवा की और एक दिन बड़ी उदास हो गई, उस कुटिला ने पूछा-आज क्यों उदास हो? वह बोली-तुम एक बात बतलाओ, जब हमारी भीतर की शल्य मिटेगी। बोली क्या? कहा-यह बतलाओ कि तुम्हारी किस-किस से प्रीति है? लिख दो फलाने प्रसाद, फलाने नाथ, ऐसे ५० नाम लिख दिये, फलाने नाथ इस प्रकार लिखते-लिखते ६० नाम हो गये और ख्याल कर लो। ६० नाम हो गये और भी ख्याल किया तो दो नाम उनमें और मिले, ६२ हो गये सारी लिस्ट में उस थानेदार साहब का नाम ही नहीं आया। थानेदार के पास गई और कहती है कि मैं लिख देती कि पत्तर में तू सत्तर में न बहत्तर में यानि तू जिसके पीछे रात दिन स्वप्न देखा करता है उसके लिस्ट में तेरा नाम ही नहीं है। उसका ज्ञान जाग गया, समझ गया कि सब माया की बातें हैं वेश्या प्रेम बनावटी है अर्थात् जब तक धन है, तभी पुरुष से प्रेम करती है। निर्धन होने पर छोड़ देती है। अत: वेश्यागमन से सदा-सर्वदा दूर रहना चाहिए।