बालक चंद्रगुप्त खेल रहे थे। उसी समय चाण्क्य नाम के ब्राह्मण वहां आए। चाणक्य ने देखा कि खेल में बच्चों का दरबार लगा हुआ है। उनमें एक तेजस्वी बालक राजा बना हुआ है। सामने एक बालक अपराधी के रूप में खड़ा है। राजा बना बालक न्याय कर रहा है। बालक के न्याय का तरीका देखकर चाणक्य को काफी हैरानी हुई। चाणक्य आगे बढ़े और उस राजा बने बालक से बोले कि महाराज आपकी जय हो । मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ । मुझे कुछ भिक्षा मिल जाए । इस पर राजा बने बालक चंद्रगुप्त गर्व से बोलने लगे, ‘‘मैं तुम्हें सौ गाय भिक्षा में देता हूँ। वे सामने जो गाय चर रही हैं। तुम उनमें से ले लो। इस पर चाणक्य बोले, महाराज, ये गाय तो दूसरे की है वह मैं कैसे ले सकता हूँ ? और कोई और अपनी गाय भला मुझे ऐसे कैसे लेने देगा। इस पर चंद्रगुप्त बोलने लगे, ‘‘ कौन कहता है, यह गाय दूसरे की है। वे उनकी है जो इन्हें लेने की ताकत रखता है। यदि तुम्हारे में शक्ति है तो सब कुछ तुम्हारा है। चाणक्य बालक से और उसकी बातों से प्रभावित हो गए। उन्होंने बालक चंद्रगुप्त को अपने साथ चलने को कहा। आगे चलकर इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य इतने प्रसिद्ध हुए कि उन्होंने नंदराजा को पराजित किया और वह भारतवर्ष के सम्राट भी बने।