६.१ जो पुरुष पीड़ित किये जाने पर भी अपशब्द या कठोर वचन नहीं बोलते हैं और रत्न-त्रय धारण करके अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं, वे महापुरुष कहलाते हैं। जैन आगम में १६९ महापुरुष बताये गये हैं। इनमें ६३ शलाका पुरुष हैं और १०६ अन्य महापुरुष हैं। इन्हें उत्तमपुरुष, दिव्यपुरुष अथवा पुराणपुरुष भी कहते हैं।
शलाका पुरुष (Shalaka Purushas)- धर्मतीर्थ सेवन करने वाले अत्यन्त पुण्यवान पुरुष शलाका पुरुष कहलाते हैं। भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड में अंतिम कुलकर के पश्चात् पुण्योदय से मनुष्यों में श्रेष्ठ और लोक में प्रसिद्ध ६३ शलाका पुरुष होने लगते हैं। ये हैं-२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ नारायण और ९ प्रतिनारायण।
ये सभी शलाका पुरुष वज्रवृषभ-नाराच-संहनन सहित उत्तम शरीर के धारी होते हैं। इनके दाढ़ी-मूँछ के बाल नहीं होते हैं। इनके निहार (मल-मूत्र) भी नहीं होता है।
भरत क्षेत्र की भाँति ऐरावत क्षेत्र में भी ६३ शलाका पुरुष होते हैं। भरत व ऐरावत क्षेत्रों के आर्यखण्डों में ये शलाका पुरुष प्रत्येक अवसर्पिणी के चतुर्थ काल में और उत्सर्पिणी के तृतीय काल में होते हैं। विदेह क्षेत्र के ३२ आर्यखण्डों में ये तीर्थंकर आदि शलाका पुरुष होते रहते हैं।
१ . तीर्थंकर (२४ ) (Teerthankars)- इनके नाम व परिचय अगले पाठ में दिये गये हैं।
ये छः खण्डों (१ आर्य और ५ म्लेच्छ) के अधिपति होते हैं, ३२,००० मुकुटबद्ध राजाओं के स्वामी होते हैं, इनके १४ रत्न (चक्र, दण्ड, मणि आदि) और ९ निधियाँ (काल, पटह, शंख, नाना रत्न आदि) होती हैं। इनके पट-रानी सहित ९६,००० रानियाँ होती हैं। पट-रानी बंध्या होती है। वर्तमान अवसर्पिणी काल में १२ चक्रवर्ती हुए हैं जिनके नाम निम्न हैंः-
(१) भरत | (७) अरनाथ |
(२) सगर | (८) सुभौम |
(३) मघवा | (९) पद्म |
(४) सनत्कुमार | (१०) हरिषेण |
(५) शांतिनाथ | (११) जयसेन |
(६) कुंथुनाथ | (१२) ब्रह्मदत्त |
यदि चक्रवर्ती संयम के साथ मरण करता है तो स्वर्ग अथवा मोक्ष जाता है, अन्यथा नरक में जाता है। इन चक्रवर्तियों में से मघवा और सनत्कुमार स्वर्ग गये हैं, सुभौम और ब्रह्मदत्त नरक गये हैं और शेष ८ मोक्ष गये हैं।
ये नारायण के बड़े भाई होते हैं। इन दोनों में प्रगाढ़ स्नेह होता है। इन्हें बलभद्र या हलधर भी कहते हैं। ये बल में श्रेष्ठ अर्थात् बलशाली और भद्र परिणाम वाले होते हैं। इनके चार महारत्न होते हैं। इन रत्नों के नाम हैं – हलायुध, बाण, गदा और माला। इनके अपार वैभव होता है, इनके ८००० रानियाँ होती हैं। ये अत्यन्त पराक्रमी, रूपवान व यशस्वी होते हैं। इनके नाम हैंः-
(१) विजय | (६) नन्दीषेण |
(२) अचल | (७) नंदिमित्र |
(३) धर्म | (८) राम |
(४) सुप्रभ | (९) बलराम |
(५) सुदर्शन |
ये मरकर स्वर्ग या मोक्ष जाते हैं। उपरोक्त ९ बलदेवों में से बलराम स्वर्ग गये हैं और शेष ८ मोक्ष गये हैं।
ये प्रतिनारायण को मारकर तीन खण्डों (एक आर्य व दो म्लेच्छ खण्ड) के स्वामी होते हैं। इन्हें वासुदेव भी कहते हैं। ये अर्द्धचक्री होते हैं। इनके सात रत्न (चक्र, गदा, खड्ग, शक्ति, धनुष, शंख और महामणि) होते हैं, १६ हजार रानियाँ होती हैं, इनका वैभव अपार होता है। ये बलभद्र के छोटे भाई होते हैं। लेकिन भव्य होने के कारण बाद में मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। इनके नाम हैंः-
(१) त्रिपृष्ठ | (६) पुरुष-पुण्डरीक |
(२) द्विपृष्ठ | (७) पुष्पदंत |
(३) स्वयंभू | (८) लक्ष्मण |
(४) पुरुषोत्तम | (९) श्रीकृष्ण |
(५) पुरुष सिंह |
जो कर्म भूमि के नीचे के तीन खण्डों (एक आर्य व दो म्लेच्छ खण्ड) को जीतते हैं, प्रतिनारायण कहलाते हैं। इन्हें प्रतिवासुदेव भी कहते हैं। ये अर्द्धचक्री नारायण के जन्मजात शत्रु होते हैं। इनके द्वारा नारायण पर चक्र चलाने पर चक्र नारायण की तीन परिक्रमा करके नारायण के हाथ में आ जाता है। नारायण इस चक्र को प्रतिनारायण पर चला देते हैं जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है और प्रतिनारायण की सारी विभूति व राज्य नारायण का हो जाता है।
इनके नाम हैंः-
(१) अश्वग्रीव | (६) बलि |
(२) तारक | (७) प्रहरण |
(३) मेरक | (८) रावण |
(४) मधुकैटभ | (९) जरासंध |
(५) निशुम्भ |
परस्पर मिलाप (Mutual Meeting)-किसी भी एक समय में इन शलाका पुरुषों में से प्रत्येक १-१ ही हो सकते हैं अर्थात् २ या अधिक तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि शलाका पुरुष एक समय में नहीं हो सकते हैं। इस प्रकार एक तीर्थंकर का दूसरे तीर्थंकर से अथवा एक चक्रवर्ती आदि का दूसरे चक्रवर्ती आदि से मिलाप नहीं हो सकता है। चक्रवर्ती और नारायण/प्रतिनारायण का भी मिलाप नहीं होता है। बलदेव, नारायण और प्रतिनारायण का मिलाप होता है।
अधिकतम शलाका पुरुष(Maximum Great Personages)-एक कर्म-भूमि में ६३ शलाका पुरुष होते हैं। अढ़ाई-द्वीप की १० कर्म भूमियों में होने वाले शलाका पुरुषों की अधिकतम संख्या (६३*१०)=६३० है। पांच विदेह क्षेत्रों की १६० कर्म-भूमियों में शलाका पुरुष होते रहते हैं।
६३ शलाका पुरुषों के अतिरिक्त १०६ महापुरुष (दिव्यपुरुष) और होते हैं। ये निम्न हैंः-
(१) तीर्थंकरों के पिता | २४ |
(२) तीर्थंकरों की माता | २४ |
(३) रुद्र | ११ |
(४) नारद | ९ |
(५) कामदेव | २४ |
(६) कुलकर | १४ |
१. तीर्थंकरों के पिता (२४) (Fathers of Teerthankars)-तीर्थंकर चौबीस होते हैं। इनके पिता भी २४ हुए। ये भी दिव्यपुरुष होते हैं।
२. तीर्थंकरों की माता (२४) (Mothers of Teerthankars)-चौबीस तीर्थंकरों की मातायें भी २४ होती हैं। इन्हें भी दिव्य महान आत्माओं में गिना जाता है। इनके तीर्थंकर अकेली संतान होती है।
जिन दीक्षा लेने के उपरान्त कर्म के तीव्र उदय से विषय-वासना वश संयम से भ्रष्ट होकर रौद्र कार्य करने वाले को रुद्र कहते हैं। इन्हें ११ अंगों का ज्ञान हो जाता है। लेकिन ये दसवें पूर्व (विद्यानुवाद) का अध्ययन करते समय विद्याओं के ग्रहण करने के निमित्त से तप से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्व को ग्रहण कर नरक गामी होते हैं। इनके नाम हैंः-
(१) भीमावलि | (७) पुंडरीक |
(२) जितशत्रु | (८) अजितंधर |
(३) रुद्र | (९) अजित नाभि |
(४) वैश्वानर | (१०) पीठ |
(५) सुप्रतिष्ठ | (११) सात्यकि पुत्र |
(६) अचल |
ये कलह प्रिय और युद्ध प्रिय होते हैं। एक स्थान की बात को दूसरे स्थान पर पहुँचाने में कुशल होते हैं। नारायण व प्रतिनारायण को लड़ाने में अहम् भूमिका निभाते हैं। बाल ब्रह्मचारी होते हैं। धर्म-कार्य में तत्पर रहते हुए भी हिंसा व कलह आदि में रुचि रखने के कारण नरक गामी होते हैं। जिनेन्द्र भक्ति के प्रभाव से शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। इनके नाम निम्न हैंः-
(१) भीम | (६) महाकाल |
(२) महाभीम | (७) दुर्मुख |
(३) रुद्र | (८) नरमुख |
(४) महारुद्र | (९) अधोमुख |
(५) काल |
तत्कालीन पुरुषों में सबसे सुन्दर आकृति अर्थात् अनुपम सौन्दर्य को धारण करने वाले कामदेव होते हैं। ये उसी भव से मोक्ष जाते हैं। अन्य मत के अनुसार ये मोक्ष/स्वर्ग जाते हैं। इनके नाम हैंः-
(१) बाहुबली | (७) अग्नि मुख | (१३) कुंथुनाथ | (१९) बलिराज |
(२) प्रजापति | (८) सनत्कुमार | (१४) अरनाथ | (२०) वसुदेव |
(३) श्रीधर | (९) वत्सराज | (१५) विजयराज | (२१) प्रद्युम्न |
(४) दर्शनभद्र | (१०) कनक प्रभ | (१६) श्रीचंद | (२२) नागकुमार |
(५) प्रसेन चन्द्र | (११) मेघप्रभ | (१७) नलराज | (२३) जीवन्धर |
(६) चन्द्रवर्ण | (१२) शांतिनाथ | (१८) हनुमान | (२४) जम्बू स्वामी |