तर्ज- झुमका गिरा रे
आरति करो रे, श्री शांतिनाथ सोलहवें जिन की आरति करो रे।।टेक.।।
प्रभु आरति से सब जन का, मिथ्यात्व तिमिर नश जाता है,
भव-भव के कल्मष धुलकर, सम्यक्त्व उजाला आता है,
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
श्री मोहमहामदनाशक प्रभु की आरति करो रे।।श्री शांति….।।१।।
प्रभु ने जन्म लिया जब भू पर, नरकों में भी शांति मिली।
ऐरादेवी के आंगन में, आनंद की इक लहर चली।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
जय विश्वसेन के प्रिय नन्दन की आरति करो रे।।श्री शांति…..।।२।।
शांतिनाथ निज चक्ररत्न से, षट्खंडाधिपती बने।
इस वैभव में शांति न लखकर, रत्नत्रय के धनी बने।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
श्री शांतिनाथ पंचम चक्री की आरति करो रे।।श्री शांति….।।३।।
जो प्रभु के दरबार में आता, इच्छित फल को पाता है।
आत्मशक्ति को विकसित कर, ‘चंदनामती’ शिव पाता है।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,