यह उक्ति इस तथ्य को रेखांकित करती है कि आपका खानपान जैसा होगा आपके मन में भी वैसा ही प्रभाव परिलक्षित होगा। क्योंकि भोजन से शरीर में शक्ति का निर्माण होता है क्रूरतम खाद्य पदार्थों के सेवन से क्रूरतम मन बनेगा। मन को निर्मल बनायें, शाकाहार अपनायें यही संदेश है इस आलेख में…….. शाकाहार समूची मानवता के लिए एक ऐसा ज्वलंत प्रश्न है, जो मानव की अंत: प्रेरणा से सम्बन्ध रखता है। आहार—स्वाद या स्वास्थ्य विषयक तथ्य मात्र नहीं है। यह संस्कृति एवं प्रकृति विषयक जीवन शैली मूलक सिद्धान्त है। भारतीय संस्कृति शाकाहार को शक्ति पुंज मानती है। यजुर्वेद में ऋषिगण कहते हैं कि शाकी शक्तिमान अर्थात् जो शाकाहारी है वही शक्तिमान है। यह लोक जीवन में ही नहीं लोकोन्तर जीवन में भी भारतीय संस्कृति शाकाहार का अत्यधिक महत्व स्वीकार करती है। छन्दोगोपनिषद में ऋषिगण कहते हैं कि आहार की शुद्धि (अहिंसक आहार) से प्राणी के विचार शुद्ध होते हैं।
शाकाहार सुखी जीवन की कुंजी है। यह ध्रुव सत्य है, क्योंकि शाकाहार सात्विक भोजन है, जो शांत सरल निश्छल एवं प्रगति शील चतन धारा को जन्म देता है। तभी तो प्रो. मेक्स मूलर को कहना पडा था कि ‘‘भारत सोते जागते धर्माचरण ही करता है।’’ विश्व में ऐसा कोई धर्म नहीं है जिसमें अहिंसा को आधार मानकर माँसाहार को वर्जित किया गया हो। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है, माँस भक्षण कर अपने उदर को कब्रिस्तान न बनाओ। वेद पुराण, बाइबिल, महाभारत, रामायण, गुरुग्रंथ, सभी विश्व प्रसिद्ध ग्रंथों एवं धर्माचायों ने, धर्म संस्कृतियों ने माँसाहार का विरोध तथा शाकाहार का समर्थन किया। है। इसीलिए यह मानव जाति का मात्र नैतिक पहलू ही नहीं है। आधुनिक शोधकर्ताओं वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शाकाहारी भोजन से न केवल उच्चकोटि के प्रोटीन प्राप्त होते हैं। अपितु भोजन से प्राप्त होने वाले सभी पोषक तत्व विटामिन, खनिज, ऊर्जा आदि प्राप्त होती है।
माँस एक अत्यधिक शीघ्र सड़ने गलने वाली वस्तु है। मृत्यु के तुरन्त बाद इसमें विकृति आने लगती है व बीमार पशुओं की बीमारियाँ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं। इसके साथ ही वध के भय से जो एक प्रकार का रसायन इन पशुओं के शरीर में उत्पन्न होता है वह माँस को जहरीला बनाता है। अण्डे और माँस में निहित यूरिक एसिड से माँसाहार में जहरीला प्रभाव होता है। माँस में खून मिला होने से इन्पैक्शन बहुत जल्दी होता है। इसके शरीर के रक्त में मिलकर हृदय रोग, टी. वी. एनीमिया, हिस्टीरिया, पेफड़े के रोग, इन्फ्लुएंजा जैसी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। इसके विपरीत शाकाहारी भोजन में यह यूरिक तथा यूरिया एसिड नाम का विष बिल्कुल नहीं पाया जाता है। शिकागो में हुए रिसर्च के अनुसार अधिकतम मानसिक रूप से अविकसित तथा शारीरिक रूप से अविकसित बच्चे भी माँसाहारी माता—पिता के ही अधिक होते हैं। शाकाहारी दीर्घायु शांत प्रकृति तथा सौम्य स्वभाव के होते हैं।
क्योंकि यह निश्चित है कि जैसा खाओ अन्न और वैसा होवे मन, जैसा पीओ पानी वैसी बोले वाणी। शाकाहार जीव दया की भावना से ओत प्रोत होेने के कारण वन्य जीवन और पर्यावरण से भी सम्बन्धित है। आजकल उन्नत चिकित्सा पद्धति ने अनेक खोजपूर्ण तथ्यों से यह सिद्ध कर दिया है कि दीर्घायु और स्वस्थ्य रहने के लिये शाकाहार सर्वोत्तम आहार है। आज शाकाहार के गुणों व माँसाहार के अवगुणों तथा वास्तविकताओं से अवगत होना प्रत्येक मानव के लिये आवश्यक हो गया है। क्योंकि यह निश्चित है जब तक व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान नहीं मिलेगा व्यक्ति अपना स्वभाव या विचार नहीं बदल सकता है। अत: सब कुछ जान समझ लेने के पश्चात इन निर्बल निसहाय मूक प्राणियों के लिये कुछ सोचने व स्वयं के स्वास्थ्य की और जीवन के लिए सोच समझकर निर्णय लेने का आपका अपना मत है कि आप माँसाहारी रहें या शाकाहारी। यह वहम भी माँसाहारी का झूठा है कि माँसाहारी अधिक चुस्त और फुर्तीले होते हैंं।
आज अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित भारत के गौरव गुरु हनुमान को कौन नहीं जानता, पूर्ण शाकाहारी रहकर आज वे अपने जीवन की लंबी पारी खेल रहे हैं, एवं उन्होंने विश्व प्रसिद्ध कई पहलवानों को अपनी शिक्षा से विभूषित किया है। एवरेस्ट पर विजय हासिल करने वाले शेरपाओं की तंदुरुस्ती का भी यही राज है शेरपा तेनिंसह अपनी पुर्ती और स्पूर्त के लिए शाकाहारी भोजन को श्रेय देते हैं। देश में बढ़ रहे माँसाहार एवं अण्डा व उनसे निर्मित वस्तुओं से आज हमारी संस्कृति खतरे में पड़ गई है। माँसाहार के प्रचार—प्रसार को रोकने के लिए यदि शाकाहारी समाज ठोस कदम नहीं उठाता है तो यह उनके लिए खतरे का बिगुल है। आज देश भर में बूचड़खाने खुलते जा रहे हैं तथा सरकारी माध्यम, आकाशवाणी, दूरदर्शन के लुभावने आकर्षक विज्ञापनों के चंगुल में आज का मानव पंâसता जा रहा है, कई राष्ट्रीय कापनियाँ भारत में इस प्रकार के पदार्थों के उत्पादन बढ़ाने लगी हैं। जो दिखने में आकर्षक लेकिन वास्तव में माँस, अण्डा आदि से निर्मित होते हैं। फैशन के नाम पर भारी संख्या में कृत्रिम प्रसाधन तैयार हो रहे हैं। आज सभी को जानने समझने की आवश्यकता है कि अिंहसा भाव हमें विरासत में मिले हैं, यह बात अलग है कि वे भौतिकवादी चकाचौंध से डगमगा गये हैं।
इसीलिये यथार्थता का बोध कराने मानव में अहिंसा भावों की पुर्नस्थापना के लिये वर्तमान में जगह—जगह शाकाहार के कार्यक्रम आयोजित कर समूची मानव जाति को आहार के माध्यम से जीवन पद्धति और जीवन शैली को समझाने का प्रयत्न किया जा रहा है जो प्रकृतिजन्य है और ऐसा चितन व्यक्ति, को जीवन जीने के अधिकार की स्वतंत्रता का पोषक है। जो किसी के जीवन को छीन कर अपनी उदर पूर्ति के लिये उसे आहार की वस्तु नहीं बनाते। भारतीयों में बढ़ता मांसाहार आज जीवन मरण का यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है। इसलिये आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गई है कि शाकाहार का सिंहनाद घर—घर तक पहुंचाने के लिये सभी कृत संकल्प लें।