गौरवशाली प्रकाशपुंज आचार्य कुन्दकुन्द,स्वामी समंतभद्र, विद्यानंदी, जिनसेन इत्यादि आचार्यों की जन्मभूमि तथा उपदेश से पवित्र कर्नाटक प्रदेश में आचार्यश्री १०८ शांतिसागर महाराज का जन्म हुआ। बेलगाँव जिले में भोज ग्राम के भीमगौंडा पाटील की धर्मपत्नी सत्यवती थीं। सन् १८७२ में आषाढ़ कृष्णा षष्ठी के दिन माता सत्यवती ने अपने पीहर येळगुळ में पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र का नाम ‘सातगौंडा’ रखा गया। ये ही आगे प्रथमाचार्य शांतिसागर जी हुए हैं। ‘आचार्य शांतिसागर जी के माता-पिता भोजग्राम निवासी थे, लेकिन आचार्य शांतिसागर जी का जन्म येळगुळ ग्राम में नाना के घर हुआ। इसलिए दक्षिण में कुछ लोग येळगुळ को जन्मस्थान मान लेते हैं तथा कुछ लोग भोजग्राम को जन्मस्थान मान लेते हैं। किन्तु आज भी देखा जाता है कि यदि किसी बालक का जन्म ननिहाल, अन्य शहर या हास्पीटल में हुआ होवे, तो भी जन्मभूमि पैतृक स्थान को ही माना जाता है। इस दृष्टि से भोजग्राम को ही आचार्य श्री का जन्मस्थान मानना ठीक है।’ बाल्यावस्था में भगवान की भक्तिपूजा करना, त्यागीगणों को आहारदान देना, उनकी वैयावृत्य करना, दीन-दुखियों को सहायता पहुँचाना आदि कार्यों में उनकी विशेष रुचि थी। छोटे-बड़े व्यसनों से दूर पिताजी ने सोलह वर्ष तक दिन में एक ही बार भोजन करने का व्रत लिया था। आचार्यश्री का बाल-जीवन इस प्रकार से सदाचार सम्पन्न माता-पिता की छत्र-छाया में व्यतीत हुआ।