कुरुमरी गाँव के एक ग्वाले ने एक बार जंगल में वृक्ष की कोटर में एक जैन ग्रंथ देखा। उसे ले जाकर उसकी खूब पूजा करने लगा। एक दिन मुनिराज को उसने वह ग्रंथ दान में दे दिया। वह ग्वाला मरकर उसी गाँव के चौधरी का पुत्र हो गया। एक दिन उन्हीं मुनि को देखकर जातिस्मरण हो जाने से उन्हीं से दीक्षित होकर मुनि हो गया। कालान्तर में वह जीव राजा कौंडेश हो गया। राज्य सुखों को भोगकर राजा ने मुनि दीक्षा ले ली। ग्वाले के जन्म में शास्त्र दान किया था, उसके प्रभाव से वे मुनिराज थोड़े ही दिनों में द्वादशांग के पारगामी श्रुतकेवली हो गये। वे केवली होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। इसलिए ज्ञानदान सदा ही देना चाहिए।