रसना इन्द्रिय की लोलुपता से या अपने मनोरंजन के लिए बाण, गोली आदि से बेचारे निरपराधी भयभीत ऐसे जंगली पशु-पक्षी एवं अन्य जीवों को मारना शिकार है, इसका अनंतकाल तक दु:ख है। इससे यह जीव प्रथम तो अपनी आत्मा का ही घात कर लेता है। दूसरे का घात हो चाहे न हो, इससे बुरी गति मिलती है तथा लोक में अपयश फैलता है। उज्जयिनी के ब्रह्मदत्त नाम का एक राजा शिकारी था, ये शिकार खेलने के बड़े शौकीन थे। एक बार जंगल में एक ध्यानी मुनिराज शिलातल पर ध्यान लगाये बैठे थे। ब्रह्मदत्त राजा शिकार के लिए वन को गया पर मुनिराज के प्रभाव से उसे सफलता नहीं मिली। कई दिनों तक ऐसा होता रहा। मुनिराज पर उसे बहुत क्रोध हुआ। एक दिन मुनिराज आहार को गये तब उसने शिला को भयंकर अग्नि से तप्तायमान कर दिया। मुनिराज नियमानुसार जलती हुई उसी शिलातट पर ध्यान के लिए बैठ गये। ध्यान की विशुद्धता से मुनिराज को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। वे अंतकृत केवली होकर मोक्ष चले गये। इधर कुष्ट रोग से पीड़ित होकर राजा पुन: पुन: तिर्यंच होकर नरकों में गया। राजा मरकर पुन: सप्तम नरक में गया इसलिए शिकार कभी नहीं खेलना चाहिए। सदैव इससे दूर रहना चाहिए। अन्यथा नरक के दु:ख उठाना पड़ेगा। इसी पर एक और कथा है- एक बार कोई बादशाह शिकार खेलने जंगल में गया। साथ में मंत्री भी गया, एक हिरणी के पीछे उसने दौड़ लगाना शुरू कर दिया। हिरणी कुछ तो दौड़ी और बाद में उसने सोचा कि मैं बच थोड़े ही सकती हूँ सो एक दया भरी निगाह से बादशाह को देखने लगी, खड़ी हो गई वहाँ से न हटी। बादशाह मंत्री से कहता है कि देखो! यह हिरणी अपने प्राण गंवाने के लिए यहाँ खड़ी हुई है। मंत्री बोला-महाराज! यह हिरणी आपसे दया चाहती है। यह निवेदन कर रही है कि मेरे बच्चे दो दिन से बिना दूध पिये हुए भूखे पड़े हैं। उन्हें मैं दूध पिला लाऊं और इसी जगह अपने प्राण देने के लिए आ जाऊँगी। बादशाह बोला-यह कैसे हो सकता है? मंत्री ने कहा-महाराज! एक बार देख तो लो क्या हर्ज है? बहुत से शिकार हैं दूसरे को मार डालना। देख तो लो कि आखिर भाव ठीक है कि नहीं। कहा-जाओ, अपने बच्चों को दूध पिला आओ। दौड़कर अपने बच्चों के पास पहुँची, अपने बच्चों से कहा-ऐ बच्चों! जल्दी दूध पियो, मैंने शिकार का वायदा किया है, तुम्हें दूध पिलाने के लिए शिकारी ने छोड़ दिया है। बच्चों ने कहा-जाओ! जल्दी मम्मी जावो, हमें दूध नहीं पीना है, हम भी तुम्हारे साथ प्राण देंगे। तुम जल्दी चलो, कहीं तुम्हारा वचन भंग न हो जाये, एक दिन हमने नहीं दूध पी लिया तो उससे क्या होगा? चलो, हम तुम जल्दी से शिकारी के पास पहुँचें। हिरणी तुरंत उसी स्थान पर बच्चों सहित पहुँची। बच्चे बोले-मामा! पहले मुझे खा लो, बाद में मम्मी को खा लेना। बादशाह ने यह दृश्य देखकर अपने हथियार नीचे डाल दिये और यह प्रण किया कि अब मैं कभी भी शिकार नहीं खेलूँगा।