दिनाँक-15.4.2023
प्रकाशनार्थ समाचार
जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव आदि पाॅंच तीर्थंकरों की जन्मभूमि बड़ी मूर्ति परिसर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में आज विशिष्ट शिक्षाविद जन पधारें और उन्होंने 31 फुट उत्तुंग भगवान के प्रतिमा के दर्शन करके गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस अवसर पर डाॅ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय-फैजाबाद से प्रो. आर.के. सिंह, डाॅ. हरिसिंह गौड विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) से, डाॅ. के. कृष्णा राव-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से, डाॅ. संजीव सर्राफ, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय-भोपाल से सम्बद्ध सागर केन्द्र के प्रिंट मीडिया निदेशक डाॅ. आशीष द्विवेदी एवं सांध्य महालक्ष्मी चैनल से श्री शरद जैन आदि ने अनेक भक्तों ने पधारकर आज इस अवसर पर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन और जैन संस्कृति के बारे में विशेष्ज्ञ जानकारियां प्राप्त की।
श्री दिगम्बर जैन अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी की ओर से महामंत्री श्री अमरचंद जैन, मंत्री श्री विजय जैन, डाॅ. जीवन प्रकाश जैन आदि महानुभावों ने पधारे अतिथियों का शाॅल और प्रतीकचिन्ह आदि से सम्मान किया। इस अवसर पर सभी शिक्षाविदों ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए एक ही बात विशेषरूप से रखी कि आज लौकिक शिक्षा में मात्र तीसरी कक्षा तक पढ़ाई करने के उपरांत साहित्य जगत में यदि 500 ग्रंथों का सृजन करके समाज को किसी ने प्रदान किया है, तो वह महान विदुषी श्री ज्ञानमती माताजी हैं। आज पूज्य माताजी देश के समक्ष, शिक्षाविदों के समक्ष एक महान आदर्श उदाहरण हैं, जिन्होने साहित्य उत्थान और आध्यात्मिक शिक्षा को सूर्य की भांति दैदीप्यमान किया है।
इस अवसर पर श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने उद्गार में सभी को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि अयोध्या शिक्षा के उद्भव भूमि है। आज पूरे विश्व में शिक्षा की जो आधारभूत शिला है, उसे अक्षर लिपि और अंक लिपि के माध्यम से ही समझा जा रहा है। और ये अक्षरलिपि और अंकलिपि युग की आदि में भगवान ऋषभदेव के द्वारा इसी अयोध्या तीर्थभूमि से अपनी दो कन्याओं ब्राह्मी और सुंदरी कन्याओं को सिखाकर इस जगत को प्रदान की थी।
इसके साथ ही भगवान ऋषभदेव ने भोगभूमि के समापन और कर्मभूमि के शुभारंभ पर जनता को जीवन जीने की कला सिखाते हुए असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प जैसी षट्क्रियाओं का उपदेश दिया था, जो आजतक पूरे विश्व के लिए जीवन जीने का मूलभूत आधार है। अत ऐसी शिक्षा की उद्भव भूमि और ज्ञान की उद्भव भूमि और तीर्थंकर तथा भगवान राम जैसे महापुरुषों की जन्मभूमि अयोध्या का सदैव-सदैव उत्थान और सम्मान इस समाज में बना रहना चाहिए।
इस अवसर पर संस्थान के पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी, मार्गदर्शिका प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी एवं अन्य साध्वीजनों का भी सान्निध्य प्राप्त हुआ।
आज के ही दिन भगवान मुनिसुव्रतनाथ के जन्मकल्याणक अवसर पर भी जैन श्रद्धालु भक्तों ने प्रातःकाल घंटानाद आदि करके हर्षोल्लास किया और अभिषेक तथा रत्नवृष्टि के माध्यम से भगवान की जन्मजयंती मनाई।
-डाॅ. जीवन प्रकाश जैन (मंत्री)