तर्ज-ना कजरे की धार…………..
शिवपथ की ओर चलीं, नाजों में हैं जो पली, नाजुक सी हैं जो कली,
वही हैं चन्दनामति माता, हाँ चन्दनामति माता।
लेखनि है जादूभरी, वाणी है सरस बड़ी, अनुपम अनमोल मणी,
यही हैं चन्दनामति माता, हैं चन्दनामति माता।।
बचपन से ही गुरु के संग। रहकर पाया विद्या धन।।-२
ये कहतीं, संस्कृति की, सब रक्षा करो भवि प्राणी। शिवपथ की ओर चलीं………………।।१।।
परवाह नहीं जीवन की। नहिं चाह है धन यौवन की।।-२
प्रभु भक्ती, से शक्ती, मिलती यह बात बताई। शिवपथ की ओर चलीं…………।।२।।
युग युग तक तेरी कीरत। गाएगा ‘‘मालती’’ नवयुग।।-२
हर मन में, कण कण में, इक तेरी छवी समाई। शिवपथ की ओर चलीं……………।।३।।