आरती करने आए जिनवर द्वार तिहारे-हाँ द्वार तिहारे ।।
शीतल जिन की आरति से, भव-भव के ताप निवारें ।। आरती करने………….।।टेक.।।
भद्दिलपुर नगरी स्वामी, तुम जन्म से धन्य हुई थी,
दृढ़रथ पितु अरु मात सुनन्दा, संग प्रजा हरषी थी।
जन्मकल्याणक इन्द्र मनाएं, जय-जयकार उचारें। आरती करने………….।।१।।
चैत्र वदी अष्टमी गर्भतिथि, माघ वदी बारस जन्मे,
माघ वदी बारस को दीक्षा, ले मुनियों में श्रेष्ठ बने।
शीतलता देते उन प्रभु के, गुण स्तवन उचारें।। आरती करने………….।।२।।
पौष कृष्ण चौदस को केवलरवि किरणें प्रगटी थीं,
आश्विन सुदि अष्टमि को प्रभु ने मुक्तिसखी वरणी थी।
मोक्षधाम सम्मेदशिखर के, गुण भी सतत उचारें। आरती करने………….।।३।।
पुण्य उदय से स्वामी जो, तव शीतल वाणी पाऊं,
मन का कमल खिलाकर, अपनी आतम निधि विकसाऊं।।
शाश्वत शीतलता के हेतू, भक्ति भाव से ध्याएं। आरती करने………….।।४।।
सुना बहुत है प्रभुवर कितनों, को भवदधि से तारा है,
कितनों ने पाकर तुम शरणा, मुक्तिधाम स्वीकारा है।
उसी मुक्ति की प्राप्ति हेतु, अब ‘‘इन्दु’’ चरण चित लाए । आरती करने………….।।५।।