जन्मभूमि की गुणगाथा गाएं। दीप घृतमय सजा करके लाए।।टेक.।।
नेमिनाथ प्रभू की जनमभूमि है। यमुना तट पर बसा शौरीपुर तीर्थ है।।
भक्ति शब्दों से हम दर्शाएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।१।।
शौरीपुर के थे राजा समुद्रविजय। शिवादेवी के संग, रहते महलों में वे।।
वही इतिहास सबको बताएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।२।।
पन्द्रह महीने महल में थे बरसे रतन। दो-दो कल्याणकों से वो पावन नगर।।
उसी तीरथ की महिमा को गाएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।३।।
नेमी जी ब्याह को जब चले जूनागढ़। पशुबंधन को लख चले दीक्षा को वन।।
बालयति प्रभु के पद सिर नमाएँ, दीप घृतमय सजा करके लाए।।४।।
सति राजुल ने भी, पति के ही पथ पे चल। घोर तप को किया, आर्यिका गणिनी बन।।
रत्नत्रय प्राप्ति के हेतु ध्याएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।५।।
कई मुनियों ने निर्वाण पद पाया है। सिद्धभूमि भी यह, तीर्थ कहलाया है।।
‘‘चंदनामती’’ वो पद हम भी पाएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।६।।