प्रभु अनंत गुण के धनी, शुद्ध सिद्ध भगवंत।
मुख्य आठ गुण को नमूँ, पाऊं भवदधि अंत।।१।।
(तर्ज-आवो बच्चों तुम्हें दिखायें……)
आओ हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
दर्शनमोहनीय है त्रयविध, चार अनंतानूबंधी।
मोहकर्म को नाश जिन्होंने, पाया क्षायिक समकित भी।।
इस गुण से अगणित गुण पाये, उन गुणमणि श्रीमान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
वर्ण स्पर्श गंध रस विरहित, शुद्ध अमूर्तिक आत्मा है।
जिनने प्रगट किया निज गुण को, वे प्रबुद्ध परमात्मा हैं।।
गुण गाथा हम गायें निशदिन, ज्योतीपुंज महान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
ज्ञानावरण कर्म को नाशा, पूर्णज्ञान प्रगटाया है।
युगपत् तीन लोक त्रयकालिक, जान ज्ञान फल पाया है।।
शत इन्द्रों से वंद्य सदा जो, उन आदर्श महान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
चौदह गुणस्थान से विरहित, शुद्ध निरंजन आत्मा है।
जिनने निज का ध्यान किया है, वे विशुद्ध सिद्धात्मा हैं।।
मुनियों से भी वंद्य सदा हैं, उन प्रभु ज्योतिर्मान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
सर्व दर्शनावरण घात कर, केवल दर्शन प्रगट किया।
युगपत् तीन लोक त्रैकालिक, सब पदार्थ को देख लिया।।
जिनको गणधर गुरु भी ध्याते, उन दृष्टा भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
चौदह जीव समास सहित ये, संसारी जीवात्मा हैं।
इनसे विरहित नित्य निरंजन, शुद्ध बुद्ध परमात्मा हैं।।
योगीश्वर भी वंदन करते, सर्वदर्शि भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
अंतराय शत्रू के विजयी, शक्ति अनंती प्रगटाई।
काल अनंतानंते तक भी, तिष्ठ रहे प्रभु श्रम नाहीं।।
हम भी करते निज उपासना, अनंत शक्तीमान की।
सिद्धशिला पर राज रहे जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
दशों द्रव्य प्राणों से प्राणी, जन्म मरण नित करता है।
निश्चयनय से शुद्ध चेतना, प्राण एक ही धरता है।।
एक प्राण के हेतु वंदना, शुद्धचेतनावान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंतगुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
सूक्ष्मत्व गुण पाया जिनने, नामकर्म का नाश किया।
सूक्ष्म और अंतरित दूरवर्ती, पदार्थ को जान लिया।।
योगीश्वर के ध्यानगम्य जो, अचिन्त्य महिमावान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
आहारेन्द्रिय आयू श्वासोच्छ्वास वचन मन पर्याप्ती।
इनसे विरहित शुद्ध चिदात्मा, में असंख्य गुण की व्याप्ती।।
मुनि के हृदय कमल में तिष्ठें, उन गुणरत्न निधान की।
सिद्धशिला पर राजे रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्ध शिला पर राज रहें जो, उन अनन्त गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
आयु कर्म से शून्य जिन्होंने, अवगाहन गुण पाया है।
जिनमें सिद्ध अनंतानंतों ने, अवगाहन पाया है।।
भविजन कमल खिलाते हैं जो, उन अतुल्य भास्वान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
संज्ञा हैं आहार व भय, मैथुन परिग्रह संसार में।
इनसे शून्य सिद्ध परमात्मा, तृप्त ज्ञान आहार में।।
सिद्धों का वंदन जो करते, मिले राह कल्याण की।
सिद्ध शिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।आवो.।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
ऊँच नीच विध गोत्रकर्म को, ध्यान अग्नि में भस्म किया।
अगुरुलघू गुण से अनंत युग, तक निज में विश्राम किया।।
त्रिभुवन के गुरु माने हैं जो, उन अविचल गुणवान की।।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
चतुर्गती के नाना दु:खों, से जो जन अकुलाये हैं।
वे ही श्रद्धा भक्ती करने, चरण शरण में आये हैं।।
मैं भी भक्ती करके छूटूँ, उन श्रीसिद्ध महान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
सात असाता द्विविध वेदनी, ध्यान अग्नि से जला दिया।
अव्याबाध सुखामृत पीकर, निज से निज को तृप्त किया।।
भक्ति नाव से भव्य तिरें जो, उन शुद्धात्म महान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
शारीरिक मानस आगंतुक, नाना दु:ख उठाये हैं।
जो इन दु:खों से विरहित हैं, शरण उन्हीं की आये हैं।।
स्वात्म सुखामृत पीने हेतू, शरण सिद्ध भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
आवो हम सब करें वंदना, सिद्धचक्र भगवान की।
सिद्धशिला पर राज रहें जो, उन अनंत गुणखान की।।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।१।।
शुक्लध्यान की अग्नि जलाकर, आठ कर्म को भस्म किया।
केवलज्ञान सूर्य को पाकर, आठ गुणों को व्यक्त किया।।
सिद्धों का जो वंदन करते, मिले राह कल्याण की।
सिद्धशिला पर तिष्ठ रहे जो, उन अनंत गुणखान की।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।२।।
यह अपार भवसागर भव्यों, दु:ख नीर से भरा हुआ।
इसको पार करें हम सब जन, भक्ति नाव अवलंब लिया।।
सिद्धों का जो वंदन करते, मिले राह कल्याण की।
सिद्धशिला पर तिष्ठ रहे जो, उन अनंत गुणखान की।
सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन, सिद्धों को नमन।।३।।
सिद्ध अनंतानंत को, नमत मिटे दु:ख शोक।
‘ज्ञानमती’ कलिका खिले, सुरभित हो तिहुँलोक।।४।।