प्रीति छन्द:-(५ अक्षरी)
कर्मजित्योऽभूत्, सोऽजित: ख्यात:।
तीर्थकृन्नाथ:, तं नुवे भक्त्या।।१।।
सती छन्द:-(५ अक्षरी)
पुरी विनीता, भुवि प्रसिद्धा।
त्रिलोक-पूज्या, सुरेन्द्रवंद्या।।२।।
मन्दा छन्द:-(५ अक्षरी)
माता विजया, धन्या भुवने।
देवैर्महितं, पुत्रं जनिता।।३।।
तनुमध्या छन्द:-(६ अक्षरी)
इक्ष्वाकुकुलस्य, सूर्यो गजचिन्ह:।
स्वर्णाभतनु: स:, मां रक्षतु पापात्।।४।।
शशिवदना छन्द:-(६ अक्षरी)
खयुगदिशैक:, करतनुतुंग:।
भुवि जितशत्रु:, तव जनक: स्यात्।।५।।
सावित्री छन्द:-(६ अक्षरी)
द्वासप्तत्या लक्ष-पूर्वाण्यायु: प्राप्त:।
ज्ञानानंदापूर्ण:, पायात् मे संसारात्।।६।।
ज्येष्ठेऽमावस्या शुभदा, दशमी माघ-शुक्लके।
तन्मासे नवमी, पुण्यै-कादशी पौषशुक्लके।।७।।
पंचमी चैत्रशुक्ला च, पंचकल्याणकै: क्रमात्।
तिथयोऽजितनाथस्य, ता मे दद्यु: परां गतिं।।८।।
नुद नुद भवदु:खं, रोगशोकादिजातं।
कुरु कुरु शिवसौख्यं, वीतबाधं विशालं।।
तनु तनु मम पूर्ण-ज्ञानसाम्राज्यलक्ष्मीं।
भव भव सुखसिद्ध्यै, ज्ञानमत्यै जिनेश!।।९।।