जलोद्धतगति: छन्द:-(१२ अक्षरी)
निजात्मसमतारसैर्गुणनिधिं। भृतं सुखसुधाकरं शिवमयं।।
उपैमि तव भक्तितो जिनप! त्वां!। अनन्तजिन! ते नमोऽस्तु सततं।।१।।
प्रियंवदा छन्द:-(१२ अक्षरी)
त्रिविधकर्ममलदोषनाशकृत्। त्रिभुवनेऽग्रशिखरे विराजते।
त्रिभुवनाधिप! सदा पुनीहि मां! सहजमात्मजसुखं प्रदेहि मे।।२।।
ललिता छन्द:-(१२ अक्षरी)
य: सिंहसेननृपज: सुकार्तिके। गर्भेऽसिते प्रथमवासरे त्वित:।।
तत्र त्रिबोधयुत एव पुण्यवान्! तस्य प्रभाववशत: प्रसू: बभौ।।३।।
क्षमा छन्द:-(१३ अक्षरी)
जिनजनिमसिता ज्येष्ठजा द्वादशी। त्रिदशपतिनुतां प्राप्तवत्यर्थिनां।।
अतुलविभवदा-तत्तिथावंतहृत्। व्रतगुणनिधिभुक् दीक्षितोऽभूज्जिन:।।४।।
प्रहर्षिणी छन्द:-
चैत्रस्यासित इति तीर्थकर्तुरेकं। केवल्यं विलसितमंतिमे दिने वै।।
संप्राप्त: स्वशिवपदं स तत्तिथौ च। त्वद्भक्ते: फलमिदमेव मेऽपि भूयात्।।५।।
अनुष्टुप् छन्द:-
त्रिंशल्लक्षसमात्मायु: पंचाशच्चापसत्तनु:।
कनत्कनकसंकाश: त्वमंतकांतकं गत:।।६।।
अनंतगुणराशिस्त्वं, सेधालाञ्छनलाञ्छित:।
देहि मेऽनंतधीसौख्यं, जयश्यामात्मज! प्रभो !।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीं वद वद वाग्वादिनि! भगवति! सरस्वति! ह्रीं नम:।