मंगलाचरण
शंभु छंद
नाभिराय के नन्दन श्री वृषभेश्वर प्रभु को नमन करूँ।
जो स्वयं मोक्ष के वासी उनको, मुक्ति प्राप्ति के हेतु नमूँ।।
जो गोमुखयक्ष और चके्âश्वरि यक्षी से नित वंदित हैं।
उनको मैं प्रणमूँ वे भुक्ती-मुक्ती देने में सक्षम हैं।।१।।
जय जय चव्रेâश्वरि देवी, सब जीवों की रक्षा करती हैं।
जय जय जगदम्बे! मातृ सदृश, सबके संकट परिहरती हैं।।
हे पूर्ण चन्द्र सम शीतल माता, मम पापों का हरण करो।
बुद्धि-ज्ञान दो, भव भय हर लो, मुझको मात! पवित्र करो।।२।।
इक सौ आठ नाम मंत्रों में, प्रथम नाम चव्रेâश्वरि है।
चक्रायुधा, चक्रिणी, चक्रधारिणी नाम सुशोभित हैं।।
अपने चक्रपराक्रम से तुम, सबके कार्य सिद्ध करतीं।
पुन: चन्द्रकान्ता व चन्द्रिका, चतुराश्रमवासिनी कहीं।।३।।
चंदा जैसा मुखड़ा है, अतएव चन्द्र आनना कहीं।
सब पर कृपादृष्टि रहती है, चतुर्मुखा है नाम सही।।
चैत्यमंगला कहते तुमको, पुन: चैत्यभक्ता कहते।
त्रिनेत्रा अरु त्र्यम्बिका, ये सार्थक नाम तुम्हारे हैं।।४।।
तपस्विनी हो तपनिष्ठा हो, त्रिपुरा भी कहलाती हो।
त्रिपुरसुन्दरी माता तुम, अतिशायी रूप धराती हो।।
धर्मरक्षणा में सक्षम हो, अत: धर्मपाला तुम हो।
पुन: धर्मरूपा-वसुन्धरा, शक्रपूजिता भी तुम हो।।५।।
गंभीरा वासवा तुम्हीं हो, अरु लोकेश्वरि हो माता।
सबके द्वारा पूजित तुमको, लोकार्चिता कहा जाता।।
मात! पवित्रा और पावना, हर मन पावन करती हो।
भक्तवत्सला भव्यरक्षिणी, सबकी रक्षा करती हो।।६।।
महीधरा तुमको कहते अरु, पात्रदात्री भी माना।
कहा मंगला भी तुमको, मांगल्यप्रदा सार्थक नामा।।
तुम्हीं जगन्माया कहलातीं, और जगत्पाला तुम ही।।
सोमाभा औ महीशार्चिता, सुन्दर नाम तुम्हारे ही।।७।।
वङ्कागा हो और गोमुखांगा कहलातीं मात! तुम्हीं।
हेमाभा गोमुखप्रिया, सुन्दरतम रूप तुम्हारा ही।।
वङ्कायुधा वङ्कारूपा, कामिनी कामरूपिणी कहीं।
ऐसी माँ के सच्चे भक्तों, को दु:ख-संकट कभी नहीं।।८।।
निज पति में ही संतुष्ट अत:, तुम शीलवती कहलाती हो।
तुम्हीं शीलभूषा व शीलदा, कामितप्रदा कहाती हो।।
निज पद में आए की रक्षा, करतीं अत: शरणरक्षी।
तुम्हें शरण्या सुज्ञाना व, कहते हैं माँ सरस्वती।।९।।
वरदात्री जिनभक्ता जिनयक्षी औ प्रशंकरी माता!
तीन लोक में पूज्य अत: हो, त्रिलोकपूज्या विख्याता।।
शुद्धा हो अरु हर मन में बसने से तुम सुप्रसिद्धा हो।
कहें सुशर्मदा नाम तुम्हारा, तुम गुण में अतिवृद्धा हो।।१०।।
तीन लोक की रक्षा करतीं, अत: त्रिलोकरक्षिणी हो।
तीन काल का ज्ञान तुम्हें, अतएव त्रिकालज्ञाना तुम ही।।
तुम्हीं भीतिहत्र्री सुसौरभा, भीमा और भारती हो।
मात भुजंगी भूतरक्षिणी, सबके भूत भगाती हो।।११।।
मंगलमूर्ति मंगला हो तुम, और तुम्हीं भद्रा भी हो।
तीन लोक तव वन्दन करता, अत: त्रिलोकवन्दिता हो।।
लीलावती ललामाभा भी, तुमको ही तो कहते हैं।
तुम्हीं भद्ररूपा व भद्रदा, सम्यग्दृष्टी कहते हैं।।१२।।
तुमको ही ॐकार कहें औ कहें तुम्हें ॐकारभक्ता।
अलका औ क्षेमदायिनी हो, नहिं तुमको कोई लांघ सकता।।
अतएव अलंघ्या हो माता! औ तुम्हीं चेतनादेवी हो।
कहें सुगन्धा गंधशालिनी, क्योंकि सुवासित रहती हो।।१३।।
माता तुम हो नृसुरार्चिता, करुणा पद्मप्रभा भी हो।
अर्थदायिनी और रोगनाशा, सब रोग भगाती हो।।
तुम्हीं शिष्टपाला हो माता! पुन: क्षेमभूषा तुम ही।
सुख-समृद्धि करती रहती हो, क्षेमंकरा नाम शुभ ही।।१४।।
करतीं भला सभी का हरदम, अत: इष्टदा नाम कहा।
हर अनिष्ट को हरने वाली, अनिष्टहत्र्री मात महा।।
तुम्हीं जगन्माता हो जगन्नुता श्रीकान्ता श्रीदेवी।
कल्याणी मंगलाकृति हो, सबका हित करती रहतीं।।१५।।
तीन ज्ञान से शोभित माता, अत: त्रिज्ञानधारिणी हो।
पद्माक्षी हो सर्वरक्षिणी, सबकी रक्षा करती हो।।
तीन लोक का पालन करतीं, अत: लोकपाला तुम ही।
तुम्हीं लोकमाता, सुवन्दिता, नमस्कार तुमको नित ही।।१६।।
ॐ ह्रीं फट्कार मंत्र देखो! अतिशायी महिमाशाली हैं।
इनके द्वारा ऋद्धियाँ सभी, सत्त्वर१ वश में हो जाती हैं।।
हे देवि! करो रक्षा मेरी, मैं पुन: पुन: प्रार्थना करूँ।
चक्रेश्वरि माँ! मुझे सुरक्षित, करो यही याचना करूँ।।१७।।
यह इक सौ आठ नाम मंत्रों का, स्तोत्र चमत्कारी माना।
सब विघ्नों का विनाश करके, सुख-शान्ती को देने वाला।।
जो नित्य तीन संध्याओं में, भक्ती से इसको पढ़ते हैं।
वे शीघ्र विजयश्री पाते हैं, कल्याण स्वयं का करते हैं।।१८।।
।। इति पुष्पांजलि:।।