श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर एवं भव्य स्वर्ण कलशारोहण समारोह
दिल्ली स्थित श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर जी भारत के शासन प्रतीक ऐतिहासिक लाल किला के सामने स्थित है। सन् १६५६ में निर्मित लाल मन्दिर भारतीय संस्कृति की धर्मनिरपेक्षता का एक ज्वलंत प्रतीक है। ‘‘लाल मन्दिर जी’’ के नाम से विश्व धर्म स्थलों में जाना जाता है। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित दिल्ली पर्यटन निर्देशिका में राष्ट्रमण्डल खेल २०१० (Common Wealth Games २०१०) के अवसर पर श्री लाल मन्दिर जी को दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहर बताते हुए दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित किया गया है। कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां की छावनी में एक फौजी अधिकारी श्री रामचन्द्र जैन ने अपने तम्बू में एक जैन मूर्ति स्थापना कर इस मन्दिर की नींव रखी थी। तत्पश्चात् समयानुक्रम से लाल किले के शिल्प को समावेश करते हुए लाल पत्थरों द्वारा मन्दिर का संवद्र्धन किया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब के समय में एक बार उनकी नमाज के समय उनका ध्यान श्री मन्दिर जी की सायं आरती के घण्टानाद की ओर आकृष्ट हुआ। उन्होंने रुष्ट होकर इसे बन्द करने का फरमान निकालकर पठान फोजदार को मन्दिर पर तैनात कर दिया, लेकिन यथासमय यह घटनाद स्वयमेव प्रखरित हो उठा। बादशाह के स्वयं जाकर जांचने पर कोई सूत्र हाथ नहीं आया। इस अतिशय को नमन करते हुए उन्होंने जारी शाही फरमान को वापस ले लिया। ऐसा इस मन्दिर जी का अतिशय बाताया जाता है। इसका संवद्र्धन ‘‘प्राचीन अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत दिल्ली’’ द्वारा किया जाता है। ३५० वर्ष प्राचीन लाल मन्दिर जी का जीर्णोद्धार प्रबन्धकारिणी समिति द्वारा योजनाबद्ध क्रम से समय-समय पर किया जा रहा है। लेकिन श्री मन्दिर जी के शिखरों का जीर्णोद्धार व नवीनीकरण के पश्चात् भव्यता में और भी निखार आया है। यह योजनाबद्ध प्रयास श्री चक्रेश जैन प्रधान प्रबन्धकारिणी समिति के अथक प्रयासों व कुशल नेतृत्व से ही संभव हो पाया है। श्री मन्दिर जी की इसी भव्यता में चहुँमुखी आभा बिखेरते हुए विशाल भव्य स्वर्णजड़ित मुख्य तीन शिखर कलशों का निर्माण श्रेष्ठी श्री भारत भूषण जैन एडवोकेट वरिष्ठ उपाध्यक्ष-वीर सेवा मंदिर एवं परिवार व श्री अभय जैन एडवोकेट (राजकिशन प्रेमचन्द्र जैन, अहिंसा मंदिर, शाकाहार,१-दरियागंज, नई दिल्ली) के सौजन्य से हुआ है।
आपने एक साल के अन्तराल में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेते हुए व तकनीकि मंत्रणाओं के अनुसार तथा धार्मिक दृष्टिकोण और परम्पराओं का अवलोकन करते हुए कलश-ताम्रपत्रों का स्वयं निर्माण कराया। स्वर्ण पत्रों का निर्माण एवं पत्रजड़ित कार्य भी पूर्ण रुचि व शुद्धता के साथ अपने पारिवारिक निवास स्थान में कराया। प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र. धर्मचन्द्र शास्त्री के अनुसार उन्होंने अपनी जानकारी में इतने विशाल व भव्य कलशों की स्थापना प्रथम बार देखी है। शिखरों और कलशों का माप निम्न प्रकार है :- ! क्रं. !! शिखरों की ऊँचाई कलश रहित (फुट) !! कलशों की ऊँचाई (फुट) !! कलशों का विस्तार (इंच) – १. ९१ ९ ४४ – २. ८१ ८ ३९ – ३. ८१ ८ ३९ } कलश पात्रों को एक ठोस ताम्रदण्ड के द्वारा आपस में तकनीकि रूप से सम्बद्ध किया गया है। तत्पश्चात् पीतल धातु की ध्वजा तथा विद्युत् निरोधक (अरेस्टर) दण्ड लगाया गया। कलशारोहण की धार्मिक प्रक्रिया को करने के लिए तीनों शिखरों पर मंच व पहुंचने के मार्ग का निर्माण भी तकनीकि रूप से किया गया। इस कार्य में पंचायत के श्री नवीन जैन (भारत नगर) की सक्रिय सहभागिता रही। इस समारोह की जिम्मेदारी को मानद मंत्री श्री पुनीत जैन ने सहजता से निभाया। मन्दिर जी प्रांगण में प्राचीन श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत द्वारा विश्व विख्यात देशों का प्रथम पक्षी अस्पताल चलाया जाता है, जहां ‘‘जीओ और जीने दो’’ सिद्धान्तानुसार घायल व बीमार पक्षियों का रखकर इलाज किया जाता है। इलाज के पश्चात् इन स्वच्छन्द परिन्दों को छोड़ दिया जाता है। द्विदिवसीय भव्य कलशारोहण समारोह का शुभारंभ दिनाक १६-१७ नवम्बर, २०११ को परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यानंद जी मुनिराज ससंघ व परम पूज्य आचार्य श्री १०८ धर्मसेन जी मुनिराज ससंघ के आशीर्वाद एवं सान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र. धर्मचन्द्र शास्त्री जी के निर्देशन में भारतवर्ष की धरोहर समेटे हुए लाल किला प्रांगण में किया गया। समस्त धार्मिक क्रियायें श्री लाल मंदिर जी के सभागार में पं. जी द्वारा कराई गई। उपस्थित जनसमुदाय ने श्री आदिनाथ भगवान् के जयघोष के साथ कार्यक्रम का सूत्रपात किया। तत्पश्चात् आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित किया। परमपूज्य आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज के पूर्ण संघ को एक साथ मंचासीन देखकर व आशीर्वाद पाकर जनसमुदाय पुलकित हो उठा। ध्यान रहे वर्तमान जनसमुदाय के हृदय में आ. देशभूषण जी महाराज का सदैव एक विशेष स्थान रहा है।
प्रथम दिवस बुधवार दिनांक १६ नवम्बर को झण्डारोहण, धर्मसभा कलश एवं ध्वजा, पूजन-विधान के पश्चात् कलशों के ताम्रदण्डों की स्थापना विधि-विधान से श्री अभय जैन सुपुत्र श्री भारत भूषण जैन एडवोकेट के द्वारा शिखर-मंच के ऊपर की गई। सायंकालीन श्री मन्दिर जी में इन्द्र रूप में भव्य आरती का आयोजन धर्मसभा लालकिला प्रांगण में मैनासुन्दरी नाटिका का मंचन किया गया। द्वितीय दिवस बृहस्पतिवार दिनांक १७ नवम्बर २०११ को प्रात: ६ बजे से विधि-विधान के पश्चात् निर्धारित मुहूर्त पर श्री भारत भूषण जैन सपरिवार ने शिखर पर स्थित मंच पर जाकर स्वर्णजड़ित भव्य कलशों की स्थापना की। इस संपूर्ण कार्यक्रम में सौधर्म इन्द्र के रूप में श्री अभय भारतभूषण जैन पूर्ण उत्साह व लगन से सम्मिलित हुए। श्री भारत भूषण जैन एडवोकेट ने सभी दर्शनार्थियों के लिए दोनों दिन स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था करके आतिथ्य सम्मान का उदाहरण पेश किया। इस ऐतिहासिक पल को अपनी आंखों में संजोने के लिए उपस्थित विशाल जनसमुदाय हर कलश-पात्र की स्थापना के साथ जिनेन्द्रदेव आदिनाथ भगवान्, श्री चन्द्रप्रभ भगवान्, श्री पाश्र्वनाथ भगवान् एवं शासन नायक श्री महावीर भगवान् के उद्घोष से स्वयं ही प्रतीत हो रही थी। इस पल की अनुभूति शब्दातीत है। आचार्य श्री १०८ धर्मसेन जी महाराज, ऐलाचार्य श्री १०८ श्रुतसागर जी महाराज व उपाध्याय श्री प्रज्ञसागर जी का सान्निध्य व ऊर्जा शिखर स्थित मंच पर भी प्राप्त हुई। श्री मंदिरजी की छत पर वयोवृद्ध परमपूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यानंद जी महाराज, ऐलाचार्य श्री १०८ वसुनन्दी जी महाराज, आर्यिका श्री मुक्तिलक्ष्मी माताजी, आर्यिका निर्वाणलक्ष्मी माताजी, अन्य साधु एवं आर्यिका संघ विद्यमान था। इस अविस्मरणीय पल को लेखक को भी अपनी चिरस्मृति में संजोने का अवसर प्राप्त हुआ। स्मरण रहे कि सन् १९३१ में ८वीं शताब्दी के बाद प्रथम बार दिगम्बर जैन आचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शान्तिसागर जी महाराज दिल्ली में इसी लाल मन्दिर में पधारे थे और उन्होंने वीतरागी-दिगम्बरत्व स्वरूप को लोकमानस में प्रचारित करने के उद्देश्य से फोटो खिंचवाकर उसे प्रचारित करने का शुभाशीष देकर जैनधर्म की अक्षुण्ण परम्परा को प्रवहमान रखा था। उसी परम्परा के संवाहक आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज के मंगल सान्निध्य में समारोह की गरिमा व गौरव को हिमालयीन ऊँचाई मिली। ८४ वर्ष की इस उम्र में महाव्रतों का निरतिचार पालन उनकी जीवन की तपतेजस्विता का सुयश है। उपस्थित मुनि संघ की ऊर्जा व जिनेन्द्रदेव की अनुकम्पा से समस्त कार्यक्रम सुचारु रूप से निर्विघ्न सम्पन्न हुए।