क्षत्रिय वीरों की श्रेष्ठ भूमि राजस्थान के बूंदी जिले में गंभीरा ग्राम में श्रेष्ठी श्री बख्तावरमल के यहाँ उमरावबाई की कुक्षि से पौष शु. पूर्णिमा को एक शिशु ने जन्म लिया, जन्म नाम रखा गया चिरंजीलाल। युवावस्था में आचार्यकल्प श्री चन्द्रसागर महाराज से आपने सप्तम प्रतिमा रूप ब्रह्मचर्यव्रत धारण किया तथा चैत्र शु. सप्तमी वि.सं. २००१ को उन्हीं से क्षुल्लक दीक्षा धारणकर भद्रसागर बने। पुन: आचार्यश्री वीरसागर महाराज से ऐलक दीक्षा लेकर शीघ्र ही वि.सं. २००८ की कार्तिक शु. १४ को मुनि दीक्षा प्राप्त कर मुनिश्री धर्मसागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरुदेव की समाधि के पश्चात् श्री धर्मसागर महाराज ने एक मुनि पद्मसागर जी को साथ लेकर धर्मप्रभावना हेतु संघ से पृथक विहार किया। वि.सं. २०२५ (सन् १९६९) में बिजौलिया चातुर्मास के अनंतर महावीर जी शांतिवीर नगर में होने वाले पंचकल्याणक महोत्सव में आप पधारे थे। वहींं अचानक आचार्यश्री शिवसागर महाराज की समाधि हो गई। अत: आपको इस परम्परा के तृतीय पट्टाचार्य के रूप में चतुर्विध संघ ने स्वीकार किया। चालीस वर्ष की दीर्घ संयमसाधना के अनन्तर ईसवी सन् १९८७ की २२ मार्च को सीकर (राज.) में अत्यंत शांत भाव से आपने समाधिमरण को प्राप्त कर जीवन के अंतिम लक्ष्य को सिद्ध किया, ऐसे महान आचार्यश्री के पावन चरणयुगल में मेरा कोटिश: नमोस्तु।