आज आया शरण पार्श्व प्रभुवर तेरी।
विनती करता हूँ मैं सुन लो विनती मेरी।।
पौष कृष्णा एकादशी थी शुभ तिथि।
जन्में प्रभुवर नगर वाराणसि धन्य थी।।
मात वामा की गोदी में खेले प्रभू ।
पालनें में झुलावें माँ झूलें प्रभू ।।
नाग नागिन का उद्धार तुमने किया।
तुम हो सर्वज्ञ उपदेश हित का दिया।।
तीस वर्ष की आयु में छोड़ा महल।
दीक्षा धारण किया धारा चारित सकल।।
कमठ ने दुख दिये भव-भव में तुम्हें।
तुमने कीया क्षमा हर भव में उसे।।
तुममें राग नहीं तुममें द्वेष नहीं।
निज में रहते हो लीन सदा आप ही।।
मेरी नैय्या भंवर में है कबसे पड़ी।
पार उसको लगा दो प्रभू शीघ्र ही।।
जब तलक मेरा इस जग से वास रहे।
आप मेरे सदा दिल के पास रहें।।
पार्श्व प्रभुवर करूँ मैं तेरी वंदना।
तव कृपा से ‘प्रदीप’ मिटे दुख सदा।।