कोटि सूरज चन्द्रमा सम विशद जिसकी मूर्ति है।
चंद्रिकासम वस्त्र निर्मल धारती सङ्कीर्ति है।।
कामना सब सिद्ध करती हंस पर आरूढ़ है।
वागीश्वरी रक्षा करो नित भक्ति भाव प्रारूढ है।।१।।
नमती सुरासुर मौलिमाला जटिल मणिगण क्रांति से।
जिसके चरणरज अतिसुशोभित दीखते संदीप्ति से।।
मत्तगजसम चाल जिसकी केश नीले धारती।
वागीश्वरी रक्षा करो नित सकल क्लेश निवारती।।२।।
केयूर हार सुरत्न कुण्डल मुद्रिकादिक भूषिता।
सर्वांग में, सब नृपति मुनिजन सुर असुरगण पूजिता।।
विविध रत्न जड़े मनोहर मुकुट से जो अंकिता।
वागीश्वरी रक्षा करो निज सर्व विद्यालंकृता।।३।।
स्वर्ण के मंजीर कंकण शब्द करते हैं सदा।
घूंघरे भी बजते हैं कमरबन्धा सर्वदा।
जिनराज भाषित धर्म जलनिधि तत्व बोध प्रर्विधनी।
वागीश्वरी रक्षा करो निज भव्य मोद विर्विधनी।।४।।
मृदुताभरे जिसके करों से सतरूपल्लव लाजते।
ककेलितरु के कमल आसन अशुचिता सब मांजते।।
दिन कमल सम है सुमुख जिसका जिनमुखोद्नत पूजिता।
वागीश्वरी रक्षा करो निज विविधभाषा राजिता।।५।।
अत्यन्त सुन्दर रूप जिसका अर्धचन्द्र जटायुता।
करती प्रकाशन शास्त्र का जो सब कला विधिसयुक्ता।।
चिन्मुद्रिका जप मालिका कृत अभयकर कर पुस्तिका।
वागीश्वरी रक्षा करो निज सदा मंगल स्वास्तिका।।६।।
उदधि के सित झाग सम शंख हिम मणि हार से।
पूर्णेन्दुबिंबसमान तन से कुमतिहर व्यवहार से।।
मृगशावनयन समान चंचल नेत्र और ललाट है।
वागीश्वरी रक्षा करो नित हरै क्लेश सुपाठ है।।७।।
नागपति गरुडेन्द्र पूजित किन्नरादिक पूजिता।
पतितपावन सकल इच्छा पूरिका गुणराजिता।।
इन्द्र सुरपतियज्ञ पूजित सकल विद्याधर नमैं।
वागीश्वरी रक्षा करो नित चरण में बुधजन रमे।।८।।
वाणी के सुप्रसाद से करें काव्य कविवृन्द।
पूजा निश्चल भक्ति से काटे जड़ता फद।।९।।
श्री सर्वज्ञमुखौद्नता है बहुभाषीरूप।
नाशै सब अज्ञानतम बहु विद्यासद्रूप।।१०।।
देखी आज सरस्वती कमललोचना कस्य।
हंसस्कंध पर बैठती बाण पुस्तक रम्य।।११।।
नाम भारती प्रथम है सरस्वती रु द्वितीय।
नाम तीसरा सारदा हंसगामिनी चतुर्थ।१२।।
विद्वन्माता पांचवां वाक् ईश्वरी षष्ठ।
नाम कुमारी सातवां ब्रह्मचारिणी अष्ट।।१३।।
नाम जगन्माता नवम दशम ब्राह्मिणी जान।
ब्रह्माणी एकादशम वरदा द्वादश मान।।१४।।
तेरहवां शुभ नाम है वाणी जिसका शुद्ध।
भाषा चौदहवां कहा पन्द्रहवां श्रुत बुद्ध।।१५।।
गौ सोलहवां नाम है कहते जिन आचार्य।
इस वाणी के स्तवन से सध जाते सब कार्य।।१६।।
उठ कर प्रात: काल जो पढ़ता सोलह नाम।
उससे माता तुष्ट हो देती वर अभिराम।।१७।।
है प्रणाम माता तुझे तू है मंगलरूप।
कामरुपिणी तू वरद विद्या सिद्धि स्वरूप।।१८।।
।।इति श्री हिन्दी सरस्वती भाषा स्तोत्र समाप्तम्।।