यह भारत वसुधा ऋषि-मुनियों के, तप से पावन मानी है।
इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा से, शक्ती पाते नर-नारी हैं।।
इक श्रेष्ठी छोटेलाल नाम के, जिनका परिचय बहुत बड़ा।
ज्यादा कहने की शक्ति नहीं, किञ्चित् प्रयत्न का भाव जगा।।१।।
जैसे सुन्दर उपवन लखकर, माली को योग्य समझते हैं।
घर सुन्दर-सजा देख करके, गृहिणी की प्रशंसा करते हैं।।
बस उसी तरह से योग्य पुत्र-पुत्री को लखकर हर मन में।
सहसा विचार आता है इनके, मात-पिता अच्छे होंगे।।२।।
ऐसी ही इक प्रतिभाशाली, व्यक्तित्व ज्ञानमति माताजी।
जिनके पितु छोटेलाल, मोहिनी माता जगत्प्रसिद्ध हुई।।
मैंने उन चेतन रत्नाकर को, निज नेत्रों से नहिं देखा।
लेकिन उनका महान जीवन, बहुतेक बार है पढ़ा-सुना।।३।।
उन पूज्य जनक की जन्म शताब्दी, का शुभ अवसर आया है।
जिनने अपना सारा जीवन, श्रावक की भाँति बिताया है।।
युग-युग तक उनकी कीर्ति सुगंधी, चारों ओर प्रसारित हो।
‘‘सारिका’’ शीघ्र ही वे भी सिद्धों, की श्रेणी में शामिल हों।।४।।