संयुक्त परिवार का विघटन होता जा रहा है। इस विघटन के कारण दादा तथा दादी शनै: शनै: परिवार से दूर होते जा रहे हैं। माँ तथा पिता के सर्विस में होने के कारण घरों में बच्चे दिन में कुछ घंटों तक तो अकेले रहते ही हैं। यदि दादा तथा दादी घर में रहते हों तो स्कूलों से लौटने के बाद बच्चों की उचित देखभाल हो जाती है। बच्चों के माँ बाप भी चिंतित नहीं होते क्योंकि दादी—दादी के होने के कारण घरों में सूनापन नहीं रहता। बच्चे जब अकेले होते हैं तो वे गुमसुम रहने लग जाते हैं। घरों में दादा—दादी का होना आज के संदर्भ में बच्चों के लिए एक सुखद अनिवार्यता है। दादा दादी को बोझ समझना एक ऐसी भूल है जिसका परिणाम परिवार को लम्बे समय तक भुगतना पड़ता है। आर्थिक विषमताओं एवं उच्च स्तरीय जीवन जीने की लालसा ने घरों में तनाव एवं विषमतायें पैदा कर दी है। घरों में जो एक सहज जीवन होता है उसमें शन: शन: विकृति एवं परायापन आते जा रहें हैं। एक दूसरे को सुखी देखकर जो चेहरे पर प्रफुल्लता होती है। वह कम होती जा रही है। सुख दु:ख का परस्पर बांटना कम तो हो ही रहा है, किन्तु तटस्थता में वृद्धि होती जा रही है। तटस्थता परस्पर दूरी बढ़ती है। आज के नवयुवक स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं। यह एक अच्छी बात है। घरों में सदस्य एक दूसरे के साथ बात—चीत, मनोविनोद, मंत्रणा तथा सक्रिय सहयोग के द्वारा अपने अनुभवों, क्षमताओं एवं योग्यताओं में जो वृद्धि कर सकते हैं वह संयुक्त परिवार में ही संभव है। दूसरों के अनुभवों से जो जानकारी मिलती है वह जीवन को दिशा प्रदान करती है। परिवारों में छोटी उम्र के सदस्यों के लिए बड़ों से सीखने को बहुत है तथा यह प्रक्रिया जीवन भर चली चाहिए। सहन शीलता तथा दूरदृष्टि के अभाव के कारण परिवारों में परस्पर नाराजगी एवं मनमुटाव अधिक होने लगे हैं। सोचने तथा तर्क शक्ति का सहारा लिया जाय तो घर के छोटे सदस्यों को बड़ों की बातों को आदर तथा ध्यान से सुनना चाहिए।यह प्रक्रिया अनन्त काल से चल रही है तथा इसका निरन्तर चलना परिवार के हित में है। आपत्ति के दिनों में परिवार के लोग ही काम आते हैं। परस्पर वार्तालाप एवं स्नेहपूर्ण सद् व्यवहार परिवारों में सम्पन्नता की आधार शिलायें हैं। जहाँ परस्पर संवाद समाप्त हो जाता है वहाँ विनाश के बीज भी बिना प्रयास के उगने लगते हैं। अकेला आदमी ज्यादा लम्बी दूरी तय नहीं कर सकता है। जल्दी थक जायेगा और उसकी सहायता करने वाला कोई नहीं होगा। समय के साथ छोटी—मोटी विपत्तियाँ सब पर आती है जो अकेले आदमी को तोड़ सकती है । परिवार के सदस्य विपत्ति में बहुत याद आते हैं। काम भी वो ही आते हैं। परिवारों में वरिष्ठ नागरिकों का वर्चस्व कम होता जा रहा है। उनकी बातों पर नई पीढ़ी कम ध्यान देती है। वरिष्ठ नागरिकों को इस स्थिति को स्वीकारना चाहिए। इसमें उन्हें बुरा नहीं मानना चाहिए। फिर भी परिवार हित में आवश्यक हो तो सुझाव देना नहीं भूलना चाहिए। मैं कुछ समय पहले आदरणीय श्री तेजकरण डंडिया साहब से जयपुर में मिला था। उनकी आयु ९८ वर्ष है तथा वे एकदम स्वस्थ हैं। उन्होंने बताया कि परिवार में आवश्यक हो तो वे सुझाव तो जरूर देते हैं। लोग उनकी बात पर ध्यान नहीं दे तो उस सुझाव को कभी भी दुबारा नहीं देते हैं। लोग नहीं ध्यान दें तो उनकी मर्जी। बच्चों की शिक्षा पर परिवार में सब सदस्यों को पूरा ध्यान देना चाहिए। जो माँ बाप स्वयं घरों में अपने बच्चों को पाते हैं उनके बच्चे अधिक भाग्यशाली होते हैं। अच्छी शिक्षा एवं प्रभावशिक्षा परिवार में ही अधिक संभव है। व्यस्त रहने की बात करना अप्रासंगिक है। माँ तथा पिता को समय निकाल कर बच्चों का मार्ग दर्शन करना चाहिए। अहंकार परिवार में अशान्ति पैदा करता है। अहंकार केवल मात्र विनम्रता एवं मौन से कम किया जा सकता है। अहंकार एक मानसिक बीमारी है। अहंकारी व्यक्ति दूसरों को छोटा तथा हीन समझता है। अहंकार परिवार में विवाद पैदा करता है ।अहंकारी व्यक्ति दूसरों के अहंकार को जागृत करता है तथा टकराव की स्थिति पैदा करता है। अहंकार से क्रोध का जन्म होता है। अहंकारी व्यक्ति का मुकाबला मौन, धैर्य तथा सहनशीलता से संभव है। अहंकार को नियंत्रण में रखना परिवार में ही सीखा जा सकता है। बड़ों की बात ध्यान से सुनना तथा अपने से बड़ों का मान रखना अहंकारी व्यक्ति को विनम्रता सिखाता है। जहाँ लोग परिवार में मिल जुल कर परस्पर विश्वास से रहते हैं, उनके लिए कोई भी मकान छोटा नहीं पड़ता है। साथ—साथ रहने की भावना यदि प्रबल हो तो थोड़ी—सी जगह में अधिक लोग रह सकते हैं। भौतिकवाद तथा अलग रहने की प्रवृत्ति से घरों में रसोइयाँ अलग—अलग रखने का प्रचलन हो गया है। साथ—साथ बैठकर भोजन करने का आनंद परिवारों में लगभग समाप्त हो गया है। आज के लगभग चालीस साल वर्ष पहले संयुक्त परिवार में एक ही रसोई होती थी तथा सब मिलकर साथ—साथ प्रेम से भोजन किया करते थे। उस भोजन का आनंद अलग ही था। घर में दादी या ताई रसोई का सारा काम अकेले संभालती थी तथा उसका सारा दिन रसोई में ही बीतता था। परिवार में आनंद तथा एकात्मकता का वातावरण अत्यन्त ही उत्साह जनक था। अब यह सब व्यवस्था आधुनिकता के चक्र की शिकार हो गई है। परिवारों में परस्पर प्रेम तथा त्याग का विलोपन होता जा रहा है। संयुक्त परिवार में सुरक्षा का उच्चतम स्तर बना रहता है। कोई न कोई घर में रहता ही है।घर कभी सूना नहीं रहता है।अब थोड़े दिनों के लिए बाहर जाने पर चिंता रहती हैं। असुरक्षा बढ़ी है। सम्पन्नता के कारण घरों में कीमती वस्तुओं की संख्या बढ़ी है तथा समान इतना हो जाता है कि स्थान की कमी पड़ती है। सब लोग अपना अपना अलग सामान जुटाते हैं। बहुत बार घरों में एक ही प्रकार की जरूरत से ज्यादा वस्तुएं इकट्ठी हो जाती है। आधुनिकता ने जीवन स्तर को ऊँचा करने की दौड़ में चिंतायें भी बढ़ा दी है। यदि तनाव से बचना हो तो साथ मिलकर रहने की जीवन—कला को पुन: प्रस्थापित करने की आवश्यकता है। सहनशीलता, मौन तथा परस्पर साहचर्य से थोड़ी जगह में अधिक लोग शान्ति से रह सकते हैं। आराम से सुखी रहना प्रमुख है, न कि अलग रहकर दु:खी रहना। मिल बांट कर एक साथ रहने का आनंद अलग ही है। यदि छोटा बड़ों का आदर करे तथा बड़े छोटे का ध्यान रखें तो जीवन का आनंद बहुत विस्तार ले सकता है। छोटी—छोटी बातों पर लड़ना एक दूसरे की कमियों देखना, पुरानी बातें याद कर ओछे स्तर के कटाक्ष करना बड़े बूढ़ों की गल्तियों को बार—बार याद कर उन्हें दु:खी करना, परिवार की उन्नति का प्रयास नहीं करना, अपनी ही सुख सुविधाओं का विशेष ध्यान रखना, परिवार की समस्याओं की आपस में चर्चा नहीं करना, ईष्र्या भाव को प्रमुखता देना, बड़ों से यह अपेक्षा करना कि वे छोटों को प्रसन्न रखें तथा उनकी खुशामद करें, अपनी स्वयं की बातों को अत्यधिक गोपनीय रखना, परिवार की कमियों को पड़ौस में उजागर करना, आमदनी से अधिक खर्च कर शेखी दिखाना, नये विचारों को आत्मसात नहीं कर पुरानी तथा सड़ी गली बातों को सही मानना, परिवार में अत्यधिक औपचारिकता तथा झूठा दिखावा करना, अपनी असफलताओं को घर के दूसरे सदस्यों के लिए मढ़ना, दूसरों की देखादेखी कर परिवार में बिना बुलाई समस्याओं को इकट्ठा करना, होटलों तथा बाजारों के भोजन को पसंद करना, सफलता पाने पर अपने परिवार के लोगों को भूल जाना तथा उनकी गरीबी का तिरस्कार करना, अपनी बहनों तथा रिश्तेदारों से कन्नी काटना, अपने ही घर में पिताजी तथा दादाजी के द्वारा किये गये कामों में कमियाँ निकाल कर सारे दोष उनके सिर मंढना, अपने घर के मकान की बनावट में कमिया निकाल कर उनको ठीक नहीं करना घर के साधारण कामों में हाथ नहीं बटाना आदि संयुक्त परिवार को विघटित करते हैं। यह सब बातें शिक्षा सकारात्मक सोच, मन की विशालता, धैर्य, दूरदृष्टि सहनशीलता आदि से कम की जा सकती है।