संयोग के साथ वियोग चला करता है
दुनिया में अपना नियोग चला करता है
वियोग में मानव दुखी बहुत रहता है
आगे सुखद संयोग की इन्तजारी करता है।
किन्तु सोचो तो, जड़ का ही वियोग है
और जड़ का ही संयोग है
दोनों में करना नहीं राग और शोक है
शिष्य का वियोग भी कभी अधिक खटकता है।
क्योंकि गुरु का भी उसके साथ राग का रिश्ता है
संसार में गुरु का शिष्य के साथ माता-पिता का अपनी संतान के सदृश बन जाता निश्चल सा रिश्ता है
इसीलिए संयोग और वियोग के क्षण सुख-दुख उत्पन्न कराते हैं। इसमें हम कर भी क्या सकते है?