सुप्रभा– बहन कनकप्रभा ! आज मुझे सुलोचना की कोई चमत्कारिक घटना सुनाओ
कनकप्रभा– अच्छा बहन सुनो ! सचमुच में सुलोचना भी एक महान नारीरत्न हुई है
भरत चक्रवर्ती के सेनापति रत्न जयकुमार स्वयंवर विधि से सुलोचना के साथ पाणिग्रहण करके बनारस नगरी से चलकर अपनी राजधानी हस्तिनापुर नगरी की ओर जा रहे थे ” मध्य में अकस्मात् मगर ने हाथी का पैर पकड़ लिया और हाथी डूबने लगा ” यह दुर्घटना देख तट पर बैठी हुई सुलोचना घबरा गई ” वह शीघ्र ही गंगा में उतर पड़ी और पति कि रक्षा के लिए महामंत्र का ध्यान करने लगी,सुलोचना के मन्त्रध्यान के प्रभाव से गंगादेवी का आसन कंपित हो गया,उसने आकर मगर का रूप धारण करके उपसर्ग करने वाली काली देवी को खूब फटकारा और जयकुमार सुलोचना को तट पर ले आई
अनन्तर बहुत ही विनय भक्ति से उन्हें सिंघासन पर विराजमान करके उनकी पूजा करते हुए अपनी कृतज्ञता व्यक्त की और कहा की हे सुलोचना ! आपके दिए हुए महामंत्र के प्रभाव से मैं विन्ध्यश्री कन्या मरकर यहाँ गंगा देवी हुई हूँ ” इस घटना को सुनने के लिए जयकुमार ने इच्छा व्यक्त की,तब सुलोचना ने कहा – हे पतिदेव ! विन्ध्यपूरी के राजा विन्ध्यकेतु की पुत्री विन्ध्यश्री मेरी सहेली थी ” किसी दिन उपवन में क्रीड़ा करते समय उसे सर्प ने काट लिया ” तब मैनें उसे मरणासन्न देखकर णमोकारमन्त्र सुनाया और श्रवण करते हुए मरकर वह सौधर्म इन्द्र की नियोगिनी गंगादेवी की अधिष्ठात्री गंगादेवी हुई हैं और इसी धर्म वात्सल्य से इसने मेरी रक्षा करके पूजा की है
सुप्रभा– सखी ! यह तो बताओ उपसर्ग करने वाली यह काली देवी कौन थी ?
कनकप्रभा- बहन ! किसी समय जयकुमार ने एक सर्पिणी को अपने पति (सर्प ) के मरने के बाद दुसरे सर्प के साथ क्रीड़ा करते हुए देख लिया ” उसे ताड़ित किया,उस समय कर्मचारियों ने उन सर्प युगल को मार दिया ” विजातीय सर्प मरकर काली देवी हो गया और उसी वैर से उसने यह उपसर्ग किया था ” बहन सुप्रभा ! सुलोचना ने जयकुमार की दीक्षा के अनन्तर आर्यिका दीक्षा ले ली और ग्यारहअंगपर्यन्त ज्ञान प्राप्त कर लिया ” घोराघोर तपश्र्वरण करके स्त्रीलिंग को छेदकर अच्युत स्वर्ग में देव हो गईं
सुप्रभा– अच्छा बहन ! अब चलें ! ऐसी – ऐसी आदर्श नारियों के जीवनव्रत्त को विद्यालय में छोटी – छोटी कन्याओं को में अवश्य सुनाऊँगी,जिससे उनका जीवन आदर्श बने “