प्राचीन काल की बात है कि एक कुशल एवं निपुण चित्रकार जो अपनी कला में पारंगत था। चित्रकार की कला की प्रशंसा दूर—दूर तक फैल गई। कला की प्रशंसा सुनकर वहां के राजा ने चित्रकार को बुलाकर कहा कि मेरा एक सुंदर चित्र बनाकर लाओ जिसे देखकर सबका मन प्रसन्न हो जाये। तुम्हे मुंह मांगा इनाम दिया जायेगा। चित्रकार गहन चिंता में पड़ गया। क्योंकि राजा काणा था। वो सोचने लगा कि राजा का चित्र कैसे बनाया जाये यदि राजा का वास्तविक चित्र बनाउंगा तो राजा नाराज हो जायेगा। यह सोचकर चित्रकार ने राजा का अतिसुन्दर चित्र बनाया जिसमें दोनों ही आंखे सही दर्शायी गई। चित्र बनाकर खुशी—खुशी राजा के पास गया और चित्र निकाल कर बताया। चित्र देखते ही राजा नाराज हो गया, और कहने लगा, यह चित्र तो गलत है मेरे तो एक ही आंख है दो कैसे बना दी, जाओ दूसरा चित्र बनाकर लाओ। चित्रकार अपना सा मुंह लेकर घर आ गया सोचने लगा, अगर मैं एक आंख का वास्तविक चित्र बनाकर ले जाऊँ तो वास्तविक चित्र देखकर राजा प्रसन्न होगा। चित्रकार राजा का वास्तविक चित्र एक आँख का बनाकर राजा के पास गया और उस चित्र को दिखाया। चित्र देखकर राजा क्रोधित हुआ और कहने लगा कि तेरी यह हिम्मत जो तूने चित्र में मुझे काना बताया तुझे शर्म नहीं आयी तुम मेरा सुंदर चित्र बनाकर लाओ अन्यथा फांसी की सजा दी जायेगी। चित्रकार डर के मारे कांपने लगा और घबराते हुए अपने घर चला गया। घर पर चिन्ता करते—करते परेशान हो गया कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करूँ । अब तो निश्चित ही फांसी पर लटकना है, इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि अचानक अपने गुरू की याद आयी और घबराता हुआ गुरू जी के पास जाकर आपबीती सुनाई, गुरू जी ने कहा घबराने की क्या बात है यह तो साधारण सी बात है। यह तो कोई समस्या नहीं और कहा जैसे मैं बताऊं वैसे करो। गुरूजी ने बताया कि राजा को घोड़े पर बैठे हुए शिकार करते हुए दिखाओ जिससे फूटी आंख एक तरफ छिप जायेगी ओर एक आँख ही दिखाई देगी। चित्रकार खुशी—खुशी घर जाकर गुरूजी के द्वारा बताए अनुसार ही सुन्दर चित्र बनाकर राजा के पास गया। चित्र देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, और मुंहमांगा ईनाम देकर विदा किया अत: गुरू की उपेक्षा कभी नहीं करनी चाहिये सभी समस्याओं का समाधान गुरू ही हैं।