-कर्मयोगी पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी
जैनधर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के पश्चात् का इतिहास देखने से ज्ञात होता है कि इन ढाई हजार वर्षों में किन्हीं आर्यिका माता के द्वारा साहित्य लेखन का कार्य नहीं हुआ। आज से ५० वर्ष पूर्व पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने अपनी लेखनी चलाकर इस परम्परा का सूत्रपात किया और यह गौरव की बात है कि वह परम्परा अद्यावधि निर्बाधरूप से चली आ रही है।
पूज्य माताजी ने इन वर्षों में अपनी लेखनी से १-२ नहीं अपितु ५०० से भी अधिक ग्रंथों की रचना करके एक कीर्तिमान स्थापित किया है। पूज्य माताजी द्वारा लिखित पुस्तकें, ग्रंथ तथा विशेषरूप से विधानों की तो आज सारे भारत में बहुत ही अधिक प्रसिद्धि है। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर उनकी शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने भी शताधिक कृतियों का सृजन किया है उसी की नवीन कड़ी के रूप में यह पुस्तक आपके हाथों में है जिसका नाम है ‘‘आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज-एक स्वर्णिम व्यक्तित्व’’, इसमें पूज्य माताजी ने आचार्यश्री के जीवनवृत्त को रोमांचकारी शैली में प्रस्तुत किया है, इस पूरे जीवन परिचय को पढ़ने के बाद आचार्यश्री के बारे में कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता है इसके बाद इस पुस्तक में आचार्यश्री वीरसागर चालीसा तथा संबंधित भजन-आरती आदि प्रकाशित हैं जिसके माध्यम से आप भी समय-समय पर आचार्यश्री के गुणों का स्मरण करके अपने जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करें, यही इसकी सार्थकता है।