‘‘जिन्होंने आदिब्रह्मा ऋषभदेव एवं महारानी यशस्वती के ज्येष्ठ पुत्र होने का गौरव प्राप्त किया, जिन्होंने भगवान ऋषभदेव के श्रीमुख से संस्कारित होने का पुण्य प्राप्त किया, जिन्होंने पूजा, दानादि की भावना से चौथे ब्राह्मण वर्ण की स्थापना की, जो छह खण्ड वसुधा को जीतकर इस आर्यखण्ड के प्रथम चक्रवर्ती बने, जिनके नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा।
जो चक्रवर्ती के वैभव का उपभोग करते हुए भी ‘जल तें भिन्न कमल’ के समान निर्विकार रहे और दीक्षा लेते ही अन्तर्मुहूर्त में दिव्य केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। जो भगवान ऋषभदेव के समवसरण के मुख्य श्रोता थे। जिन्होंने उसी कैलाशपर्वत से मुक्तिधाम को प्राप्त किया जहाँ से भगवान ऋषभदेव मोक्ष गए।
ऐसे परम वंदनीय चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्मदिन भी अपने पिता श्री ऋषभदेव के जन्मदिवस चैत्र कृष्णा नवमी की पवित्र तिथि में आता है।’’ यह ऐतिहासिक वर्णन परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने आज ऋषभ जन्मजयंती के दिन अपने दिव्य उपदेशामृत में प्रगट किया। इसके साथ ही उन्होंने उनके समान बनने की भावना भाने की प्रेरणा प्रदान की।
इस पावन अवसर पर भगवान ऋषभदेव के साथ-साथ उनके ज्येष्ठ पुत्र भगवान भरत का जन्मदिवस आज पूरे उल्लासपूर्ण वातावरण में मनाया गया और उनका पंचामृत अभिषेक, पालना आदि का कार्यक्रम सम्पन्न किया गया।