जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी , ज्ञानवृद्ध , तपोवृद्ध , ज्येष्ठ – श्रेष्ठ , इस युग की साक्षात् सरस्वती , दिव्यशक्ति , गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने आज से ६७ वर्ष पूर्व कुमारी कन्याओं के लिए आर्यिका दीक्षा का मार्ग प्रशस्त करते हुए वैशाख कृष्ण दूज को प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टाचार्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज के कर-कमलों से माधोराजपुरा [राज०]में नारी जीवन की सर्वोत्कृष्ट आर्यिका दीक्षा प्राप्त कर ” ज्ञानमती ” नाम प्राप्त किया और गुरु प्रदत्त उस नाम को सार्थक करते हुए अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से जिनशासन की गुण गरिमा को विश्व के मानसपटल पर पहुंचाने में अपना अतुलनीय योगदान दिया |” मैना से वीरमती और वीरमती से ज्ञानमती माताजी ” के रूप में उस लौहबाला के कार्यकलापों से आज भी जिनशासन सुवासित है | ऐसी महाविभूति को पाकर सम्पूर्ण जैन समाज महान गौरव का अनुभव करता है |
वस्तुतः ऐसी गुरुमाता का जितना भी गुणानुवाद किया जावे कम है | इसी क्रम में पूज्य माताजी के ६८वें आर्यिका दीक्षादिवस वैशाख कृष्ण दूज – ८ अप्रैल २०२३ को पूज्य माताजी के प्रति विनम्र विनयांजलि अर्पित करने हेतु त्रिदिवसीय कार्यक्रम [ ६-७-८ अप्रैल ] का आयोजन शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या तीर्थ की पुण्य धरा से पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी की पावन प्रेरणा व सानिध्य में एवं स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के निर्देशन में आयोजित किया गया है |
– त्रिदिवसीय कार्यक्रम –
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा – ६ अप्रैल २०२३ -(3.30P.M) दीक्षा गुरु आचार्य श्री वीरसागर महाराज की पूजन
वैशाख कृष्ण एकम – ७ अप्रैल २०२३-(3.30P.M.) दीक्षातीर्थ माधोराजपुरा तीर्थ की पूजन
वैशाख कृष्ण दूज – ८ अप्रैल २०२३ – (3.30P.M.) गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के चरण प्रक्षालन , पूज्य माताजी की पूजन एवं विनयांजलि सभा