अथ मेरो: पूर्वापरदक्षिणोत्तरदिक्षु स्थितानां ह्रदानां प्रमाणमेवैकस्य ह्रदस्य
तीरद्वयस्थितानां काञ्चनशैलानां संख्यां च तदुत्सेधेन सह गाथाचतुष्टयेनाह-
गमिय तदो पंचसयं पंचसरा पंचसयमिदंतरिया।
कुरुभद्दसालमज्झे अणुणदिदीहा हु पउमदहसरिसा।।६५६।।
गत्वा तत पञ्चशतं पञ्च सरांसि पञ्चशतमितान्तरिता:।
कुरुभद्रशालमध्ये अनुनदिदीर्घाणि हि पद्मह्रदसदृशानि।।६५६।।
गमिय।
यमकगिरिभ्यां पञ्चशतयोजनानि ५०० गत्वा कुरुक्षेत्रयो: पूर्वापर
-भद्रसालयोश्च मध्ये पंचशतयोजनान्तराणि पञ्च पञ्च सरांसि।
अनुनदिस्वयोग्य-दीर्घाणि आयामकमलादिना पद्मह्रदसदृशानि संति।।६५६।।
णीलुत्तरकुरुचंदा एरावदमल्लवंतणिसहा य।
देवकुरुसूरसुलसाविज्जू सीददुगदहणामा।।६५७।।
णीलु।
नीलोत्तरकुरुचन्द्रैरावतमाल्यवन्त इत्येता: पञ्च निषधदेवकुरुसूर-सुलसविद्युत:
इत्येता: पञ्च सीतासीतोदयो: ह्रदनामानि।।६५७।।
णइणिग्गम्मदारजुदा ते तप्परिवारवण्णणं चेसिं।
पउमव्व कमलगेहे णागकुमारीउ णिवसंति।।६५८।।
नदीनिर्गमद्वारयुतानि तानि तत्परिवारवर्णनं चैषां।
पद्ममिव कमलगेहेषु नागकुमार्यो निवसन्ति।।६५८।।
णह।
तानि सरांसि नदीप्रवेशनिर्गमद्वारयुतानि।
एतेषां तत्परिवारवर्णनं च पद्मसर इव
तत्रस्थकमलोपरिमगृहेषु सपरिवारा: नागकुमार्यो निवसन्ति।।६५८।।
दुतडे पण पण कंचणसेला सयसयतदद्धमुदयतियं।
ते दहमुहा णगक्खा सुरा वसंतीह सुगवण्णा।।६५९।।
द्वितटे पञ्च पञ्च काञ्चनशैला: शतशततदर्धमुदयत्रयम्।
ते ह्रदमुखा नगाख्या: सुरा वसन्ति इह शुकवर्णा:।।६५९।।
दुतडे।
तेषां सरसां द्वितटे पञ्च पञ्च काञ्चनशैला:
तेषामुदयभूमुखव्यासा यथासंख्यं शत १०० शत
१०० पञ्चाश ५० द्योजनानि च शैला ह्रदसम्मुखा:।
कथमेतत्। तदुपरिस्थनगरद्वाराणां ह्रदाभिमुखत्वात्।
शुकवर्णास्तत्तन्नगाख्या: सुरास्तेषामुपरि वसन्ति।।६५९।।
मेरु पर्वत की पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर इन चारों दिशाओं में स्थित द्रहों का प्रमाण तथा एक-एक ह्रद के दोनों तटों पर स्थित काञ्चनशैलों की संख्या तथा उत्सेध चार गाथाओं द्वारा कहते हैं-
गाथार्थ – यमक गिरि से पाँच सौ योजन आगे जाकर कुरु और भद्रशाल क्षेत्रों में पाँच-पाँच द्रह हैं, जिनमें प्रत्येक के बीच पाँच-पाँच सौ योजन का अन्तराल है। ये द्रह नदी के अनुसार यथायोग्य दीर्घ हैं तथा इनमें रहने वाले कमल आदि का आयाम पद्मद्रह के सदृश है।।६५६।।
विशेषार्थ – यमक गिरि पर्वतों से पाँच सौ योजन आगे जाकर सीता और सीतोदा नदी में देवकुरु, उत्तरकुरु, पूर्व भद्रशाल और पश्चिम भद्रशाल इन चार क्षेत्रों के मध्य पाँच-पाँच अर्थात् २० द्रह हैं। ये द्रह नदी के अनुसार यथायोग्य दीर्घ हैं। अर्थात् ये द्रह सीता-सीतोदा नदी के बीच-बीच में हैं, अत: नदी की जहाँ जितनी चौड़ाई है, उतनी ही चौड़ाई का प्रमाण द्रहों का है। इन द्रहों की लम्बाई पद्म द्रह के सदृश १००० योजन प्रमाण है। जिस प्रकार पद्म द्रह में कमलादिक की रचना है, उसी प्रकार इन द्रहों में भी है।
गाथार्थ – नील, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यवन्त ये पाँच द्रह सीता नदी के हैं तथा निषध, देवकुरु, सूर, सुलस और विद्युत ये पाँच सीतोदा नदी के द्रहों के नाम हैं।।६५७।।
गाथार्थ – ये सभी सरोवर नदी के प्रवेश एवं निर्गम द्वारों से सहित हैं तथा इन सरोवरों के परिवार आदि कमलों का वर्णन पद्मद्रह के सदृश ही हैं किन्तु सरोवर स्थित कमलों के गृहों में नागकुमारी देवियाँ निवास करती हैं।।६५८।।
विशेषार्थ – दोनों नदियों के प्रवाह के बीच में सरोवर हैं और इन सरोवरों की वेदिकाएँ हैं, जो नदी के प्रवेश और निर्गम द्वारों से युक्त हैं। इन सरोवरों के परिवार कमलों का वर्णन पद्मद्रह के परिवार कमलों के सदृश ही हैं। विशेषता केवली इतनी है कि इन कमलों पर स्थित गृहों में नागकुमारी देवियाँ सपरिवार निवास करती हैं।
गाथार्थ – उन सरोवरों के दोनों तटों पर पाँच-पाँच काञ्चन पर्वत हैं, जिनका उदय, भूव्यास और मुखव्यास क्रमश: सौ योजन, सौ योजन और पचास योजन प्रमाण है। ये सभी पर्वत ह्रदाभिमुख अर्थात् ह्रदों के सम्मुख हैं। इन पर्वतों के शिखरों पर पर्वत सदृश नाम एवं शुकसदृश कान्ति वाले देव निवास करते हैं।।६५९।।