भगवान विमलनाथ के तीर्थ में सुधर्म बलभद्र एवं स्वयंभू नारायण हुए हैं। उन्हीं का संक्षिप्त चरित कहा जा रहा है-जम्बूद्वीप के पश्चिमविदेह में मित्रनंदी राजा धर्मन्यायपूर्वक प्रजा का पालन कर रहे थे। किसी समय सुव्रतजिनेन्द्र के पादमूल में धर्मोपदेश सुनकर भोगों से विरक्त हुए जैनेश्वरी दीक्षा ले ली और आयु के अंत में श्रेष्ठ समाधि से मरण करके अनुत्तर विमान में तेंतीस सागर की आयु वाले अहमिन्द्र हो गए। वहाँ से चयकर द्वारावती के राजा भद्र की रानी सुभद्रा से जन्मे। इनका नाम ‘सुधर्म’ रखा गया। इसी भरतक्षेत्र के कुणाल देश की श्रावस्ती के राजा सुवेतु थे। वे जुआ आदि सातों व्यसनों में लगे हुए थे। किसी समय राजा जुआ में सब कुछ हार कर व्याकुल हुआ। सुदर्शनाचार्य गुरु की शरण में पहुँचा, धर्मोपदेश सुनकर संसार से विरक्त होकर दीक्षा ले ली और तपश्चरण करते हुए चातुर्य, बल आदि का निदान कर लिया। अंत में समाधि से मरणकर लांतव स्वर्ग में देव हो गया। वहाँ की चौदह सागर की आयु पूर्णकर वहाँ से चयकर द्वारावती के राजा भद्र की दूसरी पृथिवीमती रानी से पुत्र हो गया, उसका नाम ‘स्वयंभू’ रखा गया। यह पुत्र राजा को अत्यधिक प्रिय था। ये दोनों भाई सुधर्म और स्वयंभू बलभद्र और नारायण के अवतार थे। पूर्वभव में राजा सुकेतु के जुआ में हार जाने पर एक राजा ने उसका राज्य छीन लिया था। वह राजा धर्म आचरण करके मरकर रत्नपुर नगर में राजा मधु हो गया। यह चक्ररत्न का स्वामी प्रतिनारायण था। पूर्व जन्म के बैर के संस्कार से राजा स्वयंभू मधु का नाम सुनते ही कुपित हो जाता था। किसी समय किसी राजा ने मधु के लिए बहुत कुछ भेंट भेजी। राजा स्वयंभू ने दूत को मारकर वह भेंट स्वयं छीन ली। जब मधु ने नारद के द्वारा यह समाचार ज्ञात किया, तब वह अपनी सेना के साथ नारायण से युद्ध करने चल पड़ा। दोनों राजाओं में घमासान युद्ध हुआ। अंत में मधु राजा ने अपना चक्र स्वयंभू राजा के ऊपर चला दिया। वह उनकी प्रदक्षिणा देकर उन्हीं के पास ठहर गया, उसी समय ये ‘स्वयंभू’ नारायण प्रसिद्ध हो गये और उसी चक्र से प्रतिनारायण को मार दिया। ये बलभद्र और नारायण बहुत काल तक तीन खण्ड का राज्य करते रहे हैं। कालांतर में सुधर्म बलभद्र ने श्री विमलनाथ भगवान के चरण सान्निध्य में दीक्षा लेकर घोर तपश्चरण करके केवलज्ञान प्राप्त किया है और अंत में मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। इन्हें शतश: नमस्कार होवे।